आखिर क्यों मुश्किल में फंस गई है भारत-रूस की S-400 की डील
दरअसल भारत और रूस के बीच एस-400 सिस्टम की डिलीवरी को लेकर पेमेंट का मसला फंस गया है. भारत का 3 अरब डॉलर का भुगतान रुका पड़ा है और इसी के चलते डिलीवरी में देरी हो रही है. भारत और रूस पुराने पार्टनर हैं और भारत रूस के हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक है.
नई दिल्ली:
यूक्रेन का युद्ध भले ही दो देश लड़ रहे हों लेकिन इस जंग से दुनिया के बाकी देशों की भी फौजी तैयारियों पर भी असर पड़ रहा है और इनमें सबसे अहम देश है भारत.. भारत अपने हथियारों का एक बड़ा हिस्सा रूस से खरीदता है और पिछले डेढ़ साल से भी ज्यादा वक्त से जंग में उलझे रूस के हालात ऐसे हो गए हैं कि भारत के साथ उसकी कई बड़ी डिफेंस डील्स खटाई में पड़ती नजर आ रही हैं. इनमें सबसे अहम है एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम एस-400 की डील. एस-400 को दुनिया का सबसे कारगर एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम माना जाता है और भारत ने साल 2018 में रूस के साथ करीब 5.43 अरब डॉलर की डील की थी जिसके तहत भारत को इसकी पांच रेजीमेंट्स मिलनी थीं जिसमें से तीन की डिलीवरी हो भी चुकी है.. लेकिन दो रेजीमेंट्स की डिलीवरी अटक गई है. S-400 की तयवक्त पर डिलीवरी भारत के लिए कितनी जरूरी है ये बताने से पहले हम आपका बताते हैं कि आखिर क्यों रूस के साथ भारत का इतना बड़ा सौदा खटाई में पड़ता नजर आ रहा है.
दरअसल भारत और रूस के बीच एस-400 सिस्टम की डिलीवरी को लेकर पेमेंट का मसला फंस गया है. भारत का 3 अरब डॉलर का भुगतान रुका पड़ा है और इसी के चलते डिलीवरी में देरी हो रही है. भारत और रूस पुराने पार्टनर हैं और भारत रूस के हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक है. लेकिन इसके बावजूद दोनों देशों के व्यापार में पेमेंट की जो समस्या आ रही है उसकी वजह यूक्रेन युद्ध और उसके बाद रूस पर लगाई गई अमेरिका और उसके साथी देशों की आर्थिक पाबंदियां. अमेरिका ने रूस की इकोनोमी की कमर तोड़ने के लिए उस पर कई तरह की आर्थिक पांबदियां लगाई है जिनके तहत उसे डॉलर में पेमेंट के इंटरनेशनल सिस्टम स्विफ्ट से बाहर कर दिया गया है.
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भारत ने रिकॉर्ड मात्रा में रूस से कच्चा तेल खरीदना शुरू किया
अमेरिका के इस दांव की काट के लिए भारत और रूस ने रुपया-रूबल समझौता लिया था. यानी भारत रूस से खरीदे गए सामान का भुगतान रुपए में करने लगा और रूस भारतीय सामान का भुगतान रूबल में लगने लगा, लेकिन ये समझौता ज्यादा दिन नहीं चल सका. क्योंकि दोनों देशों के बीच व्यापार में असंतुलन पैदा हो गया और इसकी वजह थी रूस का कच्चा तेल. दरअसल अमेरिकी पाबंदियों के चलते रूस के लिए यूरोपीय देशों को कच्चा तेल और गैस बेचना भी मुश्किल हो गया था जिसके बाद उसने अपने कच्चे तेल के लिए भारत और चीन के साथ ऑयल डील कर ली, जिसके तहत भारत ने रिकॉर्ड मात्रा में रूस से डिस्काउंट पर कच्चा तेल खरीदना शुरू कर दिया. मौजूदा वक्त में रूस भारत सबसे ज्यादा कच्चा तेल बेचने वाला देश बन गया है, लेकिन इस ऑयल डील के चलते भारत-रूस के बीच का व्यापार इकतरफा हो गया. रूस के पास भारतीय रुपए का भंडार इकट्ठा हो गया जिसका वो इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है. रूस का कहना है कि ये व्यापार चीन की मुद्रा युआन में हो सकता है, लेकिन भारत इसके लिए राजी नहीं है. हालांकि, कुछ खबरें ऐसी आई थीं जिनके मुताबिक भारत की कुछ कंपनियाों ने कच्चे तेल के लिए रूस को युआन में भुगतान किया है लेकिन भारत पूरी तरह से रूस के साथ अब दोनों देशों के अधिकारी इस मसले को सुलझाने की कोशिश में जुटे हैं. लेकिन इसकी वजह से भारत को एस-400 की डिलावरी मिलने में देरी हो रही है.
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अगले साल की शुरुआत में डिलीवरी होने का अनुमान
साल 2019 में सरकार की ओर से पार्लियामेंट में कहा गया था कि भारत को S-400 की सभी रेजीमेंट्स की डिलीवरी अप्रैल 2023 तक मिल जाएगी, लेकिन अब कहा जा रहा है कि ये डिलीवरी अगले साल की शुरुआत तक पूरी हो सकेगी. एस-400 देश की सुरक्षा के लिओए एक बेहद अहम एयर डिफेंस सिस्टम है. चीन और पाकिस्तान जैसे ताकतवर दुश्मन देशों से घिरे भारत की हवाई सुरक्षा के लिए S-400 जेसे सिस्टम का होना जरूरी है. इस सिस्टम का रडार 400 किलोमीटर की दूरी से अपने करीब आते 40,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ते फाइटर जेट, ड्रोन या मिसाइल को डिटेक्ट करके उसे मार गिराने के लिए ऑटोमैटिक कमांड दे सकता है. इस सिस्टम एक यूनिट एक ही वक्त में 160 ऑब्जेक्ट्स को ट्रैक करके एक ही टारगेट के लिए दो मिसाइल दाग सकती है.
दूसरे देशों के साथ डील्स करने पर विचार कर रहा भारत
S-400 की इन्हीं खूबियों के चलते भारत ने रूस के साथ करोड़ो डॉलर्स की डील की थी. भारत के अलावा रूस ने ये सिस्टम बस चीन और टर्की को ही बेचा है. एस -400 के अलावा रूस के साथ इंडियन नेवी की डील भी मुश्किल में फंस गई है और अब दो तलवार क्लास के युद्धपोतों की डिलीवरी में भी देरी हो रही है.रूस, भारत के लिए हथियारों का एक बड़ा सप्लायर्स देश रहा है .साल 2018 से 2021 के बीच भारत रूस के बीच 15 बिलियन डॉलर की डिफेंस डील्स हुई हैं, लेकिन अब रूस पर लगी पाबंदियों के चलते भारत उस पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश भी कर रहा है और इस लिहाज से फ्रांस भारत का एक भरोसेमंद साथी बनकर उभर रहा है. साल 2018 से 2022 के बीच भारत ने रूस के बाद सबसे ज्यादा हथियार फ्रांस के खरीदे हैं. अगर भारत और फ्रांस के बीच की डिफेंस डील्स की बात करें तो राफेल फाइटर जेट्स, मिराज-2000 बॉम्बर्स,चेतक और चीता हेलीकॉप्टर्स, स्कॉर्पियन पंडुब्बी, हैमर मिसाइल और मिलान एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल ऐसे फ्रांसीसी हथियार हैं जिन्हें भारत की फौजें बड़ी कामयाबी के साथ इस्तेमाल कर रही हैं. यानी साफ है भारत की समझ में आने लगा है कि बड़े हथियारों को लेकर अब भारत के अलावा दूसरे देशों के साथ डील्स करनी होंगी.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
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