नोएडा के ट्विन टॉवर्स तो मिल गए खाक में, अब 80 हजार टन मलबे का क्या होगा...
नोएडा अथॉरिटी की सीईओ ऋतु माहेश्वरी के मुताबिक बेहद वैज्ञानिक तौर-तरीकों से शेष मलबे को कांस्ट्रक्शन और डिमोलिशन वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में प्रोसेस्ड किया जाएगा.
highlights
- ट्विन टॉवर्स के ध्वस्तीकरण से निकले 80 हजार टन मलबे के निस्तारण का काम शुरू
- 50 हजार टन मलबे से भरे जाएंगे ट्विन टॉवर्स के नीचे बनाए गए विशालकाय बेसमेंट
- बाकी मलबे को वैज्ञानिक तौर-तरीके से दोबारा इस्तेमाल में लाने को किया जाएगा प्रोसेस
नई दिल्ली:
सुपरटेक के ट्विन टॉवर शाब्दिक तौर पर सही मायने में खाक में मिल चुके हैं. रविवार को दोपहर ढाई बजे से पहले नोएडा (Noida) के सेक्टर 93-ए में जहां यह भ्रष्टाचार से ताकत पाकर सीना तान खड़े थे, वहां अब पहाड़ जितनी ऊंचाई लिए मलबा पड़ा है. ट्विन टॉवरों (Twin Towers) को धूल-धूसरित करने वाली एडीफाइस इंजीनियरिंग कंपनी के साझेदार उत्कर्ष मेहता के मुताबिक फिलवक्त साइट पर 80 हजार टन मलबा है. अब इसे सुरक्षित ढंग और प्रभावी तरीके जल्द से जल्द हटाने की मुहिम शुरू हो जाएगी. मलबे (Debris) की इतनी मात्रा को देखते हुए सहज सवाल कौंधता है कि इस हटाने वाला काम कैसे होगा और इसे कैसे पूरा किया जाएगा.
आखिर कितना होता है 80 हजार टन मलबा
ट्विन टॉवर्स को ध्वस्त करने वाली एडीफाइस इंजीनियिरिंग कंपनी के साझेदार उत्कर्ष मेहता के मुताबिक वजन के लिहाज से बात करें तो 80 हजार टन मलबा साइट पर पड़ा है. गौरतलब है कि एक टन में एक हजार किलो होते हैं. अब अगर वॉल्यूम के लिहाज से बात करें तो नोएडा अथॉरिटी को 24 अगस्त को दी गई मलबा प्रबंधन कार्ययोजना में दिए आंकड़े के मुताबिक ट्विन टॉवर्स के ध्वस्तीकरण के बाद 36 हजार क्यूबिक मीटर मलबा की बात की गई थी. इसके सबसे बड़े टॉवर एपेक्स की ऊंचाई 102 मीटर थी और इसमें 32 मंजिल थीं. इससे छोटे टावर सीआने की ऊंचाई 95 मीटर थी और इसमें 29 मंजिल थीं. इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि कुतुब मीनार 73 मीटर ऊंचा है, तो इंडिया गेट की ऊंचाई 42 मीटर है. इन दोनों टावरों में 915 फ्लैट थे. हालांकि ट्विन टॉवर्स के ध्वस्तीकरण से पहले हर फ्लैट की दीवार और ईंटें हटाई जा चुकी थी. रविवार को ढहाने के लिए वहां महज कांक्रीट का ढांचा ही रह गया था.
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मलबे के इस पहाड़ का क्या होगा
नोएडा के इन ट्विन टॉवर्स में दो विशालकाय बेसमेंट भी थे. एडीफाइस की मलबा प्रबंधन कार्ययोजना के मुताबिक रविवार को निकले 36 हजार क्यूबिक मीटर मलबे में से 23,133 क्यूबिक मीटर से इन दोनों बेसमेंट को भरा जाएगा. वजन के आधार पर बात करें तो 80 हजार टन मलबे में से 50 हजार टन मलबा इन दोनों बेसमेंट को भरने में ही लग जाएगा. इस मलबे के एक छोटे हिस्से से साइट पर कुछ जरूरी निर्माण कार्य किया जाएगा. शेष 30 हजार टन मलबे को ही साइट से हटाया जाएगा. इस मलबे की जो सामग्री फिर से इस्तेमाल में आ सकती है, उसे अलग कर लिया जाएगा. नोएडा अथॉरिटी की सीईओ ऋतु माहेश्वरी के मुताबिक बेहद वैज्ञानिक तौर-तरीकों से शेष मलबे को कांस्ट्रक्शन और डिमोलिशन वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में प्रोसेस्ड किया जाएगा.
कौन करेगा मलबे का निस्तारण और कितना लगेगा समय
हैदराबाद के रामकी समूह को यह काम सौंपा गया है, जिसे नागरिक और पर्यावरण अधोसंरचना विकास और अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं का विशेषज्ञ माना जाता है. रेसिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) और सरकारी विभाग के मुताबिक मलबे को साइट से हटाने में तीन महीने का समय लगेगा.
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2020 में मराडू ध्वस्तीकरण के बाद क्या हुआ था
कोच्चि के मराडू में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जनवरी 2020 में अवैध करार दिए गए चार अपार्टमेंट्स को गिराया गया था. ये चार अपार्टमेंट्स कोस्टल रेग्युलेशन जोन नियमों की अनदेखी कर बनाए गए थे. इन अपार्टमेंट्स के ध्वस्तीकरण के बाद 76,250 टन मलबा निकला था. इसके अलावा एक हजार टन भार की थर्मो मैकेनिकली ट्रीटेड लोहा के विशलकाय स्तंभ थे. इस मलबे को हटाने की जिम्मेदारी प्रॉम्प्ट एंटरप्राइजेज को सौंपी गई थी. कंपनी को इस मलबे को साइट से पूरी तरह से हटाने में चार महीने लगे थे. होली फैथ एच20 और जैन कोरल कोव इमारत से निकले मलबे से ईंटें और फुटपाथ के टाइल्स बनाए गए थे. अन्य दो साइट के मलबे से साइट पर जमीन का भराव कर अन्य कामों में उपयोग किया गया था. पश्चिमी देशों में किसी इमारत के ध्वस्तीकरण के बाद साइट से निकलने वाले कांक्रीट के मलबे को दोबारा इस्तेमाल में लाना बेहद सामान्य प्रक्रिया है. अब अगर इस उद्योग के विशेषज्ञों की मानें तो यह चलन भारत में भी तेजी पकड़ रहा है. यानी ध्वस्तीकरण के बाद निकलने वाले मलबे का दोबारा इस्तेमाल.
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