Israel-Lebanon ऐतिहासिक सीमा समझौते की शर्तें... समझें इसका महत्व
इजरायल काफी पहले से अपने आस-पास के क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस का उत्पादन कर रहा है. ऐसे में यह समझौता पूर्वी भूमध्य सागर में क्षेत्रीय विवाद को हल करने की दिशा में उठा कदम है. गौरतलब है इस क्षेत्र में लेबनान भी प्राकृतिक गैस का पता लगाना चाहता है.
highlights
- इजरायल और लेबनान के बीच समुद्री सीमा विवाद को हल करता समझौता हुआ
- अब लेबनान भी अपने हिस्से के समुद्र तट से प्राकृतिक गैस का पता लगा सकेगा
- आर्थिक संकट से जूझ रहे लेबनान को यहां से मिलने वाली रॉयल्टी करेगी भारी मदद
तेल अवीव:
वैश्विक स्तर पर एक बड़ी कूटनीतिक सफलता के रूप में देखे जा रहे इस घटनाक्रम के तहत इजरायल (Israel) ने मंगलवार को लेबनान (Lebanon) के साथ एक 'ऐतिहासिक समझौते' (Historic Deal) की घोषणा की है. इस समझौते का उद्देश्य भूमध्यसागर (Mediterranean Sea) के जल पर लंबे समय से चले आ रहे समुद्री सीमा विवाद (Border Dispute) का पटाक्षेप करना है. यह समझौता इसलिए भी ऐतिहासिक है कि इजरायल और लेबनान के बीच आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं. यही नहीं, ये दोनों देश तकनीकी रूप से युद्धरत हैं. ऐसे में विश्लेषकों को उम्मीद है कि यह ऐतिहासिक समझौता दोनों देशों के बीच तनाव कम करने में भी मददगार बनेगा.
आखिर यह ऐतिहासिक समझौता है क्या
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मामलों के समन्वयक-विशेष दूत और ब्यूरो ऑफ एनर्जी रिसोर्सेज के प्रमुख की भी जिम्मेदारी निभा रहे अमेरिकी राजनयिक एमोस जे होचस्टीन ने इस समझौते का मसौदा जारी किया है. इस समझौते का मकसद ऑफशोर गैस क्षेत्रों पर इजरायल और लेबनान के प्रतिस्पर्धी दावों को खत्म करना है. टाइम्स ऑफ इजरायल की रिपोर्ट के मुताबिक इजरायल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और प्रमुख वार्ताकार इयाल हुलाता ने मंगलवार सुबह एक बयान जारी कर कहा, 'हमारी सारी बातें मान ली गई हैं. हम जो बदलाव चाहते थे वह भी मान लिए गए. हम इजरायल के सुरक्षा हितों की रक्षा करते हुए एक ऐतिहासिक समझौते की राह पर हैं.' इयाल हुलाता का यह बयान लेबनान के प्रतिनिधि इलियास बोउ साब के उस बयान के कुछ देर बाद आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि समझौते ने उनके देश की प्रारंभिक चिंताओं को दूर कर दिया है और वे संतुष्ट हैं. रॉयटर्स समाचार एजेंसी से चर्चा में उन्होंने कहा 'समझौता लेबनान की सभी जरूरतों को ध्यान में रखता है और हमारा मानना है कि दूसरे पक्ष को भी ऐसा ही महसूस करना चाहिए.' यह मसला एक दशक से कुछ ज्यादा पुराना है, जब दोनों देशों ने 2011 में भू-मध्य सागर पर अपनी-अपनी सीमाएं घोषित कर दी, जो एक-दूसरे के क्षेत्र में एक-दूसरे की सीमाओं में कुछ क्षेत्रों पर दावा करती थीं. तभी से दोनों देश तकनीकी तौर पर युद्धरत हैं. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र से मध्यस्थता की मांग की गई थी. एक दशक पहले इजरायल को अपनी सीमा के तट पर दो गैस फील्ड मिलने से सीमा विवाद का मसला और भी महत्वपूर्ण हो गया. विशेषज्ञों का मानना था कि इससे इजरायल को ऊर्जा निर्यातक देश बनने में मदद मिल सकती है.
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आखिर क्या पेश करता है ऐतिहासिक समझौता
इजरायल पहले से ही अपने आस-पास के क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस का उत्पादन कर रहा है. अब यह समझौता पूर्वी भूमध्यसागर सागर में एक क्षेत्रीय समुद्री सीमा विवाद को हल करने का वायस बन रहा है. खासकर उस समुद्री इलाके में जहां लेबनान भी प्राकृतिक गैस का पता लगाना चाहता है. जिस गैस फील्ड की बात हो रही है, वह दोनों देशों की समुद्री सीमा पर स्थित है. इस समझौते के तहत दोनों देश उत्पादित गैस से रॉयल्टी प्राप्त कर सकेंगे. यही नहीं, यह समझौता पहली बार इजरायल और लेबनान के समुद्री जल पर एक सीमा का निर्धारण भी करता है. न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक इजरायल और लेबनान के बीच हुए इस ऐतिहासिक समझौते से लेबनान में इजरायल और हिजबुल्लाह आतंकियों के बीच टकराव का खतरा भी तुरंत टलने में मदद मिलेगी. गौरतलब है कि समझौते को लेकर चल रही वार्ता के नाकाम होने पर हिजबुल्लाह की ओर से हमले तेज होने की आशंका जताई जा रही थी. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्लेषकों को उम्मीद है कि इस समझौते से दोनों ही देशों के लिए ऊर्जा और आय के नए स्रोत सामने आएंगे. खासकर लेबनान के लिए यह एक लिहाज से बेहद जरूरी था, क्योंकि वह गंभीर ऊर्जा संकेट समेत आर्थिक दुश्वारियों से जूझ रहा है. यही नहीं, इस समझौते के और भी व्यापक प्रभाव सामने आएंगे. यह क्षेत्र रूस-यूक्रेन युद्ध से उपजे ऊर्जा संकट के बीच यूरोप के लिए ऊर्जा का नया स्रोत बनेगा, जहां से उसे ऊर्जा की आपूर्ति हो सकेगी.
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समझौता अब भी किन बातों को नहीं छूता
इस ऐतिहासिक समझौते ने समुद्री सीमा का मसला तो हल कर दिया है. फिर भी इजरायल-लेबनान के बीच अभी भी कुछ विवादस्पद मसले विद्यमान हैं, जिन पर यह समझौता कोई प्रकाश नहीं डालता या उनका जिक्र तक नहीं करता. मसलन इस समझौते में विवादित साझी भूमि सीमा का कोई जिक्र नहीं है. हालांकि दोनों देश इस विवादित सीमा विवाद पर संघर्ष विराम जारी रखने के लिए पहले से प्रतिबद्धता जता चुके हैं. इस विवादित सीमा को 'ब्लू लाइन' भी कहा जाता है, जिसे 2000 में दक्षिणी लेबनान से इजरायल के पीछे हटने के बाद खींचा गया था. फिलवक्त इस विवादित जमीनी सीमा विवाद पर संयुक्त राष्ट्र बल गश्त करते हैं. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक इजरायल और लेबनान के बीच इस जमीनी सीमा विवाद को सुलझाना कहीं ज्यादा जटिल है. इस विवाद से ऊर्जा की जरूरत की तात्कालिकता को जोड़कर नहीं देखा गया. यही नहीं, इस सीमा विवाद से जुड़ा कोई भी प्रस्ताव बहुत हद तक कहीं ज्यादा व्यापक शांति समझौते पर निर्भर करेगा. यह फिलवक्त या आने वाले कुछ समय के लिहाज से कहीं भी यथार्थवादी प्रतीत नहीं होता है.
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