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क्या खतरे में है Cheetah प्रोजेक्ट? क्यों मर रहे हैं चीते? Kuno national park में क्या कमी है? सबके सवाल जान लीजिए

भारत में चीतों को बसाने के लिए मोदी सरकार महत्वाकांक्षी योजना चला रही है. नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीते लाए जा चुके हैं. लेकिन 45 दिनों के अंदर ही तीन चीते दम तोड़ चुके हैं. इससे पूरे चीता प्रोजेक्ट पर ही सवाल उठने लगे हैं

Updated on: 22 May 2023, 01:26 PM

New Delhi:

भारत में चीतों को बसाने के लिए मोदी सरकार महत्वाकांक्षी योजना चला रही है. नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीते लाए जा चुके हैं. लेकिन 45 दिनों के अंदर ही तीन चीते दम तोड़ चुके हैं. इससे पूरे चीता प्रोजेक्ट पर ही सवाल उठने लगे हैं. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी चीतों की मौत पर चिंता जताते हुए सरकार से तीखे सवाल किए हैं. यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या कूनो नेशनल पार्क इन चीतों के लिए छोटा पड़ रहा है? क्या सरकार ने चीतों को लाने में जल्दबाजी कर दी? इनके जवाब के साथ ये भी जानेंगे कि सरकार कूनो के अलावा किस जगह पर चीतों को रखने की तैयारी कर रही है.

भारत में चीतों का इतिहास

चीता इकलौता ऐसा बड़ा नरभक्षी प्राणी बताया जाता है, जो भारत से पूरी तरह विलुप्त हो गया था. इससे पहले सैकड़ों वर्षों तक चीते भारत में शाही शानोशौकत का हिस्सा रहे थे. चीतों को पालतू बनाना आसान होता है. ये टाइगर की तरह खतरनाक भी नहीं होते. इसलिए राजे-रजवाड़े अपनी शान बखारने और शिकार के लिए इनका इस्तेमाल किया करते थे. भारत में चीतों के शिकार का आखिरी रिकॉर्ड 1948 में मध्य प्रदेश में दर्ज हुआ था. माना जाता है कि कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने जिन तीन चीतों का शिकार किया था, वो आखिरी थे. उसके बाद साल 1952 में भारत सरकार ने चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया था. इसकी मुख्य वजह अत्यधिक शिकार और उनके रिहाइश में कमी बताई जाती है.


विदेश से भारत आए चीते
इसके बाद सरकार ने विदेश से चीते लाने की कवायद शुरू की. पिछले साल से अब तक 20 चीते भारत लाए जा चुके हैं. 17 सितंबर 2022 को नामीबिया से 8 चीते भारत आए थे. स्पेशल विमान से इन्हें लाया गया था. पीएम मोदी ने खुद कूनो जाकर इन्हें रिलीज किया था. उसके बाद इस साल 18 फरवरी को 12 चीते दक्षिण अफ्रीका से लाए गए. आपको बता दें कि इससे पहले 2009 में गुजरात सरकार सिंगापुर से चीते लेकर आई थी. इन्हें जूनागढ़ के चिड़ियाघर में रखा गया था. जूनागढ़ जू की चीफ कंजरवेटर आराधना साहू के हवाले से आई खबरों में बताया गया कि तीन शेरों के बदले दो मादा और दो नर चीते लाए गए थे. लेकिन ये अपना परिवार बढ़ाने में नाकाम रहे. कुछ साल के बाद इनकी मौत हो गई. अब मोदी सरकार ने नए सिरे से चीता प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया है. सरकार की योजना अगले पांच साल में 50 चीते लाने की है.

 
सरकार चीतों को भारत में बसाने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन महज सवा महीने के अंदर ही तीन चीते दम तोड़ चुके हैं. भारत लाए गए चीतों की मौत की मुख्य वजह क्या है? इसके बारे में वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे ने जो बताया, पहले वह देख लीजिए.  

45 दिन में 3 चीतों की मौत
नामीबिया से लाई गई फीमेल चीता साशा की 27 मार्च को मौत हुई. बताया गया कि किडनी की बीमारी की वजह से उसकी मौत हुई है. उसके बाद 23 अप्रैल को दक्षिण अफ्रीका से लाए गए उदय नाम के चीते ने दम तोड़ दिया. उसकी मौत की वजह कार्डियो पल्मोनरी फेल्योर बताया गया. एक के बाद एक, दो चीतों की मौत से हर कोई हैरान था कि एक और चीते की मौत हो गई. 9 मई को दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता दक्षा मेटिंग के दौरान संघर्ष में मारी गई. यह घटना तब हुई, जब कूनो के अधिकारियों ने दक्षिण अफ्रीकी एक्सपर्ट्स के सुझाव पर दक्षा के बाड़े में दो मेल चीतों को छोड़ा था. उन्हें लगा था कि दक्षा इन चीतों के साथ मेटिंग करेंगी, लेकिन हुआ कुछ और. उनके बीच संघर्ष हो गया. परिणाम ये हुआ कि दक्षा बुरी तरह घायल हो गई और कुछ ही घंटों में मर गई. 45 दिनों के अंदर तीन चीतों की मौत से पूरे चीता प्रोजेक्ट पर सवाल उठ रहे हैं. हालांकि राहत की एक बात ये रही कि मार्च में ज्वाला नाम की चीता ने चार शावकों को जन्म दिया.

विदेश से लाए गए 20 चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में रखा गया है. कुछ एक्सपर्ट दावा करते हैं कि इतनी संख्या में चीतों को रखने के लिहाज से कूनो पर्याप्त नहीं है. यादवेंद्र देव झाला वाइल्डलाइफ साइंटिस्ट हैं. चीता एक्शन प्लान बनाने वालों में से एक हैं. उनका कहना है कि चीतों का मुख्य शिकार चीतल होता है. 2014 में कूनो में प्रति वर्ग किलोमीटर इलाके में औसतन 60 चीतल हुआ करते थे, लेकिन अब इनकी संख्या घटकर लगभग 20 रह गई है. उनका दावा है कि ये ज्यादा से ज्यादा 15 चीतों के लिए पर्याप्त है. ऐसे में बाकी चीतों को कहीं दूसरी जगह शिफ्ट कर देना चाहिए.

कूनो में क्या खास

चीतों को कूनो में ही क्यों रखा गया, इसके बारे में भी चीता एक्शन प्लान में बताया गया है. अफ्रीका से चीते लाने से पहले करीब 10 जगहों का सर्वे किया गया था. गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जहां पर पहले चीते रहा करते थे, उन्हें तवज्जो दी गई. 10 जगह सर्वे के बाद कूनो नेशनल पार्क चुना गया. कूनो के बारे में बताएं तो यह भोपाल से लगभग 345 किलोमीटर की दूरी पर है. यह 784 वर्ग किलोमीटर एरिया में फैला है. यह 6800 वर्ग किलोमीटर में फैले श्योपुर-शिवपुरी ओपन फॉरेस्ट का हिस्सा है. कूनो को चीतों के रहने और शिकार के लिहाज से बेस्ट माना गया था. कहा गया था कि यहां का लैंडस्केप ऐसा है कि 21 चीते आराम से रह सकते हैं. यहां चीतों से इंसानों को भी खतरा नहीं है क्योंकि उनकी बस्तियां पहले ही हटाई जा चुकी हैं.

कूनो में क्या कमी है, अब इस पर भी बात कर लेते हैं. अफ्रीका से चीते लाकर जब कूनो में छोड़ने की बात चल रही थी, तब भी कुछ एक्सपर्ट्स ने आगाह किया था. उनका कहना था कि कूनो इन चीतों के लिए मुफीद नहीं रहेगा. उन्होंने इसके पीछे शिकार की कमी को वजह बताया था. चीते खुले मैदानों में रहते हैं. उनकी रिहाइश मुख्य रूप से ऐसी जगहों पर होती है, जहां उनके शिकार रहते हैं, जैसे कि घास के मैदान, झाड़ियां और जंगल आदि. गर्म स्थानों में इनके लिए रहना आसान होता है. कई एक्सपर्ट्स कूनो में चीतों की मौत के लिए इंतजाम में कमी और तालमेल के अभाव को जिम्मेदार ठहराते हैं. एक्सपर्ट्स पहले ही आगाह कर चुके हैं कि चीतों को भारत के माहौल में ढलने में कई बरस लग सकते हैं. इसकी वजह ये है कि उन्हें जहां से लाया गया है, वहां का और भारत का क्लाइमेट अलग है. उनकी रिहाइश का माहौल अलग है.

ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या भारत सरकार ने चीतों को लाने में जल्दबाजी कर दी? क्या उन्हें लाने से पहले उनके अनुकूल माहौल नहीं बनाया गया? इन सवालों के जवाब दिए वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे ने. अजय का कहना है कि चीतों को भारत लाना गलत नहीं है. जो लापरवाही हो रही है, उनकी देखरेख में हो रही है. उनका ये भी कहना है कि कुछ चीतों की मौत तो होगी, ये तो पहले से अंदाजा था. लेकिन इतनी जल्दी जल्दी मौतें होना घातक है.


सरकार ने पिछले साल जनवरी में डिटेल में चीता एक्शन प्लान जारी किया था. इसमें बताया गया है कि कूनो में चीते लाए जाने से पहले खासी तैयारियां की गई थीं. करीब 500 हेक्टेयर का इलाका खासतौर से उनके लिए तैयार किया गया. दावा किया गया कि वहां 15 से 20 हजार हिरन रहते हैं. पेंच नैशनल पार्क से चीतल भी लाए गए. इनके अलावा नीलगाय, कृपाण, चिंकारा और जंगली सूअर भी वहां पर काफी संख्या में हैं. सरकार का इरादा मानसून से पहले जून में कूनो के जंगलों में में पांच और चीतों को छोड़ने का है. पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 8 मई को एक बयान में यह बात कही थी. इनमें तीन फीमेल और दो मेल चीते होंगे.

चीतों की मौत पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई थी. सरकार से कहा था कि वह राजनीति से ऊपर उठकर चीतों को किसी दूसरी जगह शिफ्ट करने पर विचार करे. कोर्ट ने एक्सपर्ट्स के बयानों और मीडिया में आई उन खबरों पर भी गौर किया, जिनमें कहा गया है कि इतनी तादाद में चीतों को रखने के लिए कूनो पर्याप्त नहीं है. इस पर केंद्र सरकार ने बताया कि चीतों की मौत की टास्क फोर्स जांच कर रही है. जहां तक चीतों को शिफ्ट करने का सवाल है तो उस पर भी विचार किया जा रहा है. सरकार ने इसके लिए राजस्थान के मुकुंदरा नेशनल पार्क का नाम लिया. बताया कि मुकुंदरा पार्क चीतों को रखने के लिए तैयार हो चुका है. मध्य प्रदेश में भी कुछ अन्य जगहों पर विचार किया जा रहा है.

चीतों को धरती पर सबसे तेज रफ्तार जानवर माना जाता है. महज 3 सेकंड के अंदर ये जीरो से 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़  सकते हैं. चीते विशाल इलाके में रहना पसंद करते हैं. एक चीते की औसत रेंज लगभग 100 किलोमीटर होती है. उन्हें बाड़े से छोड़ने पर वे दूर तक निकल जाते हैं. यही वजह है कि मार्च में जब नामीबिया से लाए गए दो चीते आशा और पवन को जंगल में छोड़ा गया था, तब वो नेशनल पार्क से बाहर चले गए थे. बाद में आशा को कूनो के विजयपुर रेंज से पकड़ा गया. पवन यूपी बॉर्डर पर शिवपुरी और झांसी के बीच मिला था.

एक ये बात भी निकलकर आई कि भारत में अभी कोई चीता एक्सपर्ट नहीं है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि अभी जो अधिकारी चीतों की देखभाल कर रहे हैं, वे दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से ट्रेनिंग लेकर आए हैं. बहरहाल इतना तो तय है कि सरकार को भी अंदाजा है कि कूनो इन चीतों को लिए पर्याप्त नहीं है. इसीलिए वह अन्य जगहों पर उन्हें शिफ्ट करने की तैयारी कर रही है. लेकिन ये सवाल कि भारत में चीता प्रोजेक्ट कितना सफल रहा, इसका जवाब ढूंढने में अभी थोड़ा इंतजार करना होगा.

भारत में चीतों का इतिहास
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चीते सैकड़ों वर्षों तक शानोशौकत का हिस्सा रहे
चीतों के शिकार का आखिरी रिकॉर्ड 1948 में दर्ज
कोरिया के राजा ने तीन चीतों का शिकार किया था
1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया
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विदेश से भारत आए चीते
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17 सितंबर 2022 को नामीबिया से 8 चीते भारत आए
18 फरवरी 2023 को 12 चीते द.अफ्रीका से लाए गए
केंद्र की योजना अगले 5 साल में 50 चीते लाने की है
2009 में गुजरात सरकार सिंगापुर से 4 चीते लाई थी
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45 दिन में 3 चीतों की मौत
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27 मार्च को साशा की किडनी फेल होने से मौत
23 अप्रैल को दिल फेफड़े बेकार से उदय की मौत
9 मई को दक्षा मेटिंग के वक्त संघर्ष में मारी गई
29 मार्च को ज्वाला ने चार शावकों को जन्म दिया
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कूनो में क्या खास
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784 वर्ग किमी में फैला है कूनो नेशनल पार्क
6800 वर्ग किमी के ओपन फॉरेस्ट का हिस्सा
10 जगहों के सर्वे के बाद चुना गया कूनो को
21 चीतों के रहने लायक बताया गया था

-रिपोर्ट- मनोज शर्मा