चैत्र नवरात्रि 2017: चौथे दिन मां कुष्माण्डा की उपासना से मिलेगा मनवांछित फल
मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग,शोक नष्ट हो जाते हैं और उनके घर में सुख-शांति आती है।
नई दिल्ली:
आज नवरात्र में मां दुर्गा के चतुर्थ रूप कुष्माण्डा देवी की पूजा की जा रही है। आदिशक्ति श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कुष्माण्डा हैं। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। पौराणिक कथाओं में कुष्माण्डा देवी ब्रह्मांड को पैदा करती हैं।
अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्माण्डा देवी के नाम से पुकारा जाता है। मां कुष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग, शोक नष्ट हो जाते हैं और उनके घर में सुख-शांति आती है। वहीं मां कुष्माण्डा के पूजन से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इनकी भक्ति से व्यक्ति की आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।
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इस दिन ऐसे करें आराधना
दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कुष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। इससे मां आपको मनवांछित फल देती हैं। माना जाता है कि जो भी साधक प्रयास करते और मां की सच्चे दिल से भक्ति करते हैं उन्हें भगवती कुष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं। इससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
कुष्माण्डा देवी की कल्पना एक गर्भवती स्त्री के रूप में की गई है अर्थात् जो गर्भस्थ होने के कारण भूमि से अलग नहीं है। इन देवी को ही तृष्णा और तृप्ति का कारण माना गया है। संस्कृत भाषा में कुष्माण्ड कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण भी इन्हें कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है।
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इन मंत्रों के जाप से दूर होंगी समस्याएं
कुष्माण्डा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
कुष्मांडा मंत्र ध्यान
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥
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