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पूरे साल नोटबंदी से लेकर कॉरपोरेट जगत के विवादों पर कोर्ट में हुई बहस

नोटबंदी की घोषणा के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिकाओं की बाढ़ आ गई।

Updated on: 31 Dec 2016, 09:53 PM

नई दिल्ली:

दिल्ली हाई कोर्ट में इस साल आम लोगों से जुड़े और कॉरपोरेट मामलों से संबंधित कई जनहित याचिकायें सुर्खियों में रही। ये सभी याचिकायें देश की अर्थव्यवस्था और सामाजिक सरोकार के नज़रिये से काफी महत्वपूर्ण है। इसलिये चलते-चलते हम नोटबंदी, टाटा समूह की लड़ाई और एयरएशिया जैसी कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों का ज़िक्र करते हुए आपको याद दिलाते चलते हैं कि साल-2016 में कौन सी जनहित याचिकायें सुर्खियों में रही।

नोटबंदी की घोषणा के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिकाओं की बाढ़ आ गई। हालांकि अदालत ने नरेंद्र मोदी सरकार को एक तरह से राहत देते हुए ऐसी याचिकाओं में हस्तक्षेप से इनकार किया और कहा कि अदालत को नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

हालांकि बाद में उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार की उस याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें उसने एक निर्देश देने का आग्रह किया था कि नोटबंदी से जुड़ी याचिका की सुनवाई देश में केवल उच्चतम न्यायालय ही करेगा।

वहीं दवाओं पर प्रतिबंध से जुड़े एक मामले में केंद्र सरकार को झटका लगा। फाइजर, ग्लेनमार्क, प्रोक्टर एंड गेंबल व सिप्ला जैसी बहुराष्ट्रीय दवा व हेल्थकेयर कंपनियों ने 344 तय मात्रा मिश्रण दवाओं पर प्रतिबंध संबंधी मामला जीत लिया। अदालत ने कहा कि सरकार ने इस बारे में फैसला अकस्मात तरीके से ही किया।

सौभाग्य से अदालत ने कोयला ब्लाकों की नीलामी से जुड़े एक मामले में भी सरकार के फैसले को ही सही ठहराया।

जब टाटा और मिस्त्री का विवाद देश में सुर्खियां बटोर रही थी उसी वक़्त टाटा को एक बड़ा झटका लगा, अदालत ने उनके लुटियन ज़ोन स्थित होटल ताज़ मान सिंह को नीलाम करने का आदेश जारी किया। दिल्ली हाई कोर्ट ने ताज मानसिंह होटल की नीलामी के आदेश पर रोक लगाने की टाटा की अपील ठुकराते हुए नई दिल्ली नगर निगम को इसकी नीलामी की इजाजत दे दी।

उन्होंने कहा टाटा को होटल का लाइसेंस बरकरार रखने के लिए नीलामी में भाग लेना होगा। इससे पहले टाटा ग्रुप की सहायक कंपनी इंडियन होटल्स कंपनी लि. (IHCL) ने जस्टिस वी. कामेश्वर राव के 5 सितंबर के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की थी। इसमें जस्टिस राव ने आईएचसीएल को ताज मानसिंह का लाइसेंस रीन्यू करने से इनकार कर दिया था।

वहीं टाटा को दूसरा झटका तब लगा जब फेडरेशन ऑफ एयरलाइंस (एफआईए) ने टाटा-एयर एशिया को एविएशन परमिट दिए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। फेडरेशन का कहना था कि टाटा-एयर एशिया के बीच हुआ समझौता डीजीसीए के नियमों और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की नीतियों का उल्लंघन करता है। यह मामला 14 अप्रैल से दिल्ली हाई कोर्ट में अटका पड़ा है। इसलिए फेडरेशन ने देश की सर्वोच्च अदालत से निर्देश देने की दरख्वास्त की।

इससे पहले टाटा संस बोर्ड के चेयरमैन पद से हटाए गए सायरस मिस्त्री ने बोर्ड सदस्यों और ट्रस्टों को लिखे ईमेल में आरोप लगाया था कि ग्रुप पर भारी-भरकम कर्ज के बावजूद उन्हें दो एविएशन वेंचर्स में निवेश करने के लिए मजबूर किया गया। यहां तक कि उनसे 22 करोड़ रुपये के फ्रॉड को नजरंदाज करने को कहा गया।