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SC का फैसला, आर्य समाज से जारी विवाह प्रमाणपत्र को कानूनी मान्यता नहीं

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है.

Updated on: 03 Jun 2022, 03:59 PM

highlights

  • अदालत का कहना है कि विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का काम सक्षम प्राधिकरण करते हैं
  • युवक का कहना था कि लड़की ने अपनी मर्जी और अधिकार से विवाह का निर्णय लिया 

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (SC) ने आर्यसमाज की ओर से विवाह प्रमाणपत्र को कानूनी मान्यता देने से साफ इनकार कर दिया है. शुक्रवार को प्रेम विवाह से संबंधित एक मामले में कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया. जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं हैं. अदालत का कहना है कि विवाह प्रमाणपत्र जारी करने का काम सक्षम प्राधिकरण करते हैं. अदालत के सामने असली प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया जाना चाहिए. 

इस मामले में घरवालों ने अपनी लड़की को नाबालिग बताते हुए अपहरण और रेप की एफआईआर दर्ज की थी. लड़की के घर वालों ने युवक के खिलाफ भारतीय दंड विधान की  धारा 363, 366, 384, 376(2)(n) के साथ 384 के साथ पॉक्सो एक्ट की धारा 5(L)/6 के तहत मामला दर्ज किया था. वहीं युवक का कहना था कि लड़की बालिग है. उसने अपनी मर्जी और अधिकार से विवाह का निर्णय लिया है. आर्य समाज मंदिर में विवाह हुआ.

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युवक ने मध्य भारतीय आर्य प्रतिनिधि सभा की ओर से जारी विवाह प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत किया. सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानने से पूरी तरह से इनकार कर दिया. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने की हामी भर दी थी. तब जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय ने आर्य प्रतिनिधि सभा से स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 की धाराओं 5, 6, 7 और 8 प्रावधानों को अपनी गाइड लाइन में एक माह के भीतर अपने नियमन में शामिल करे.