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SC ने समलैंगिक विवाह का मामला 5 जजों की संविधान पीठ को भेजा, 18 अप्रैल को सुनवाई

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह मसला एक ओर संवैधानिक अधिकारों और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम जैसे विशेष विधायी अधिनियमों के बीच परस्पर प्रभाव का है.

Updated on: 13 Mar 2023, 06:42 PM

highlights

  • समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता का मसला 5 जजों की संविधान पीठ को भेजा गया
  • 18 अप्रैल को होगी सुनवाई, जिसकी अन्य मामलों की तरह ही होगी लाइव स्ट्रीमिंग
  • केंद्र ने रविवार को हलफनामा दाखिल कर समलैंगिक विवाह को मान्यता का किया विरोध

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली कई याचिकाओं को पांच जजों की संविधान पीठ के पास भेज दिया. याचिकाओं पर सुनवाई 18 अप्रैल से शुरू होगी. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह मुद्दा 'बुनियादी महत्व' का है, जो एक ओर संवैधानिक अधिकारों और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम जैसे विशेष विधायी अधिनियमों के बीच परस्पर प्रभाव को सामने लाता है. तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, 'हमारा सुविचारित मत है कि यह उचित होगा कि उठाए गए मुद्दों को संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के संबंध में पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा हल किया जाए. इस प्रकार हम मामले को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष रखने का निर्देश देते हैं'. यह निर्देश देने वाली पीठ में मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला भी शामिल रहे.

केंद्र के हलफनामे पर जवाब दाखिल करने के लिए भी 3 हफ्ते का समय
शीर्ष अदालत ने मामले पर बहस के लिए 18 अप्रैल को अगली तारीख दी और कहा कि कार्यवाही लाइव-स्ट्रीम की जाएगी जैसा कि संविधान पीठों के समक्ष सुनवाई के मामले में किया जाता है. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार के रविवार को दाखिल किए गए हलफनामे पर जवाब दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं को तीन हफ्ते का समय भी दिया है. सोमवार को केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से आग्रह किया कि वह दलीलें कम न करें, क्योंकि फैसले से पूरे समाज पर असर पड़ेगा. इस बीच केंद्र ने कहा कि यह संसद को तय करना है कि भारत में समलैंगिक विवाह को वैधानिक मान्यता दी जा सकती है या नहीं.

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रविवार को केंद्र ने हलफनामे में किया समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता का विरोध
गौरतलब है कि रविवार को हलफनामा दायर कर केंद्र ने शीर्ष अदालत में समान-सेक्स विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं का विरोध किया है, जिसमें दावा किया गया है कि वे व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन के साथ 'पूर्ण विनाश' का कारण बनेंगे. भारतीय परिवारों की अवधारणा का हवाला देते हुए केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया कि समलैंगिक संबंध और विषमलैंगिक संबंध अलग किस्म के हैं. रिश्तों की श्रेणी में इसे समान रूप से नहीं माना जा सकता है. केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा, 'शादी की धारणा अनिवार्य रूप से विपरीत लिंग के दो लोगों के मिलन को पूर्व निर्धारित करती है. यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी रूप से शादी के मूल विचार में है. ऐसे में शादी की अवधारणा को बाधित नहीं करते हुए न्यायिक व्याख्या से इसे कमजोर नहीं करना चाहिए. कानूनी तौर पर शादी स्त्री-पुरुष विवाह यानी पति-पत्नी पर केंद्रित है.'