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म्यांमार: पीएम मोदी ने बहादुर शाह जफ़र को दी श्रद्धांजलि, जानें कैसे पहुंचा अंतिम मुग़ल बादशाह यांगून

यांगून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। 1857 के संग्राम के बाद ब्रिटिश ने उन्हें यांगून की जेल में कैद कर दिया था।

Updated on: 07 Sep 2017, 12:24 PM

नई दिल्ली:

म्यांमार दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यात्रा के आखिरी दिन गुरुवार को बागान और यांगून गए। यांगून में वह भारत के आखिरी मुगल बादशाह मिर्जा अबू जफर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जफर यानी बहादुर शाह जफर की मजार पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। 

बता दें कि 2012 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और 2006 में पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम भी अपनी-अपनी यात्राओं के दौरान अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर गए थे।

दरअसल एक दौर में भारत का हिस्‍सा रहे म्‍यांमार के साथ हमारे सदियों पुराने ऐतिहासिक और सांस्‍कृतिक संबंध हैं। 19वीं सदी में तीन आंग्‍ल-बर्मा युद्ध के बाद यह ब्रिटिश भारत का एक प्रांत बन गया।

उस दौर में म्‍यांमार को बर्मा कहा जाता था और इसकी राजधानी रंगून थी। रंगून को अब यंगून कहा जाता है। गुलामी के उस दौर में 1857 के पहले स्‍वतंत्रता संग्राम के बाद हिंदुस्‍तान के अंतिम मुगल बादशाह को सजा के तौर पर देश से बाहर कर दिया गया था और उन्हें यंगून भेजा गया था।

बादशाह बहादुर शाह जफर एक प्रसिद्ध शायर और गजल लेखक भी थे। मशहूर शायर ग़ालिब उनके दरबारी थे। ज़फ़र की कितनी ही नज्मों पर बाद में फिल्मी गाने बने। उनकी कब्र दुनिया की मशहूर और एतिहासिक कब्रगाहों में गिनी जाती है।

यांगून की जेल में कैद बहादुर शाह ज़फर ने लिखा था-

'दिन ज़िंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गई
फैला के पांव सोएंगे कुंजे मज़ार में
कितना है बदनसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीं भी मिल न सकी कू-ए-यार में'

फिर 1862 में यांगून की उसी जेल में उनकी मौत हो गयी, लेकिन उनकी मजार 132 साल बाद 1994 में बनी। मजार को कुछ इस तरह से बनाया गया है कि उसमे मुग़ल काल और बहादुर शाह जफर के जीवन की झलक मिलती है।

बहादुर शाह ने अपने आखिरी समय में भारत आना चाहते थे। लेकिन उसे इसकी मंजूरी नहीं मिली। उन्होंने लिखा था 'मेरी ओर से कौन प्रार्थना करेगा? मेरे लिए कौन लाएगा फूलों का गुलदस्ता? मेरी कब्र पर मोमबत्ती कौन लाएगा? मैं एक उदास कब्र के अलावा कुछ भी नहीं हू !'

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2006 में अपनी यात्रा के दौरान कलाम जब इस मजार पर गए थे तब उन्होंने बहादुर शाह की कब्र पर सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के दरगाह से लाई गई चादर चढ़ाई थी।

कलाम ने विज़िटर्स बुक में लिखा था, 'आपने लिखा है कि मेरी कब्र पर कौन आएगा। आज अपने देश की ओर से मैंने आकर प्रार्थना की और मोमबत्तियां जलाईं, चादर चढ़ाई और और फातिहा पढ़ा। आपकी आत्मा को शांति मिले।'

म्यांमार की यात्रा करने वाले ज्यादातर लोग, खासतौर पर भारतीय, मुस्लिम और राजघरानों में रुचि रखने वाले लोग बहादुर शाह जफर की दरगाह जरूर जाते हैं। मजार में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग प्रार्थना घर है।

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