भारत ने चीन के वाटर बम की काट निकाली, जानें दिबांग मल्टीपरपज प्रोजेक्ट बारे में
आपने एटम बम सुना होगा, लेकिन कभी वाटर बम सुना है? चाइना बना रहा है, वह भी भारत की सीमा के बेहद करीब. ब्रह्मपुत्र नदी में चीन ऐसे बांध को बनाने का प्रयास कर रहा है.
नई दिल्ली:
आपने एटम बम सुना होगा, लेकिन कभी वाटर बम सुना है? चाइना बना रहा है, वह भी भारत की सीमा के बेहद करीब. ब्रह्मपुत्र नदी में चीन ऐसे बांध को बनाने का प्रयास कर रहा है. जिससे पूर्वोत्तर भारत का बड़ा हिस्सा बाढ़ और सूखे से गिरफ्त होगा, लेकिन अब भारत सरकार ने इस वाटर बम की काट निकाला ली है. ये है दिबांग मल्टीपरपज प्रोजेक्ट. कहते हैं कि जियो पॉलिटिक्स में सबसे पहले जियोग्राफी आती है और उसके बाद पॉलिटिक्स यानी आप का भूगोल तय करेगा कि आप की नीति और राजनीति क्या होगी?
भारत को कभी भी ब्लैकमेल किया जा सके
चलाक चीन बहुत अच्छी तरह से समझता है, यही वजह है कि कैलाश मानसरोवर रेंज से शुरू होने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का 60 फीसदी हिस्सा जब चीन से गुजरता है, तो चीन ऐसे बांध का निर्माण कर रहा है जिससे पूर्वोत्तर भारत के बड़े हिस्से में गर्मियों में सूखा और बारिशों में भयंकर बाढ़ आ जाएगी. जिस ग्रैंड कैनयन से ब्रह्मपुत्र नदी भारत के अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है वहां पर चीन बनाने जा रहा है. 60 गीगावाटस हाइड्रो पावर जेनरेशन का सुपर डेम. जिस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर ड्रैगन की मंशा है कि भारत को कभी भी ब्लैकमेल किया जा सके, जानिए कैसे?
ब्रह्मपुत्र नदीं का 50 प्रतिशत केचमेंट एरिया चीन के पास है, जिससे गर्मियों के समय तिब्बत के ग्लेशियर से आने वाले पानी को रोककर के असम और अरुणाचल प्रदेश में सूखा ला सकता है चीन. प्री मॉनसून और पोस्ट मॉनसून को मिलाकर के लगभग 9 महीने तक होती है ब्रह्मपुत्र घाटी में वर्षा, ऐसे में अगर चीन ने इस बांध से पानी छोड़ दिया तो बाढ़ में बह सकती हैं लाखों हेक्टेयर जमीन बाढ़ और सूखे का डर दिखाकर नासिर स्थानीय स्तर पर असंतोष पैदा कर सकता है, बल्कि उग्र पंथियों को भी बढ़ावा दे सकता है चीन. तनाव की स्थिति में अगर चीन अपने बांध के सभी द्वार खोल देता है, तो भारतीय सेनाओं का सीमावर्ती क्षेत्र तक पहुंचना बेहद मुश्किल हो जाएगा, सीमावर्ती सड़कें और पुल बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं.
पानी को वाटर बम के रूप में इस्तेमाल कर सकता है
अब आपको भी इस बात का एहसास हो गया होगा कि चीन किस तरीके से ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को वाटर बम के रूप में इस्तेमाल कर सकता है, जो स्थानीय राजनीतिक से लेकर के भारत की राष्ट्रीय सामरिक दृष्टि से बड़ी समस्या पैदा कर सकता है. अप्पर रिपेरियन स्टेट यानी वह देश जहां से ऊपर की तरफ से नदी बहती हुई आती है का एडवांटेज तो चीन के पास है, लेकिन भूगोल की शक्ति से संपन्न है भारत. दरअसल अगर आंकड़ों को गौर करें तो जहां गर्मियों में ब्रह्मपुत्र के जलस्तर में बड़ा हिस्सा तिब्बत के ग्लेशियर का पानी है, तो वही 9 महीनों ज्यादा में हालात भारत के पक्ष में आ जाते हैं.
यहीं वजह है कि मंगलवार को भारत ने अब तक का सबसे बड़े हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है. पूर्वोत्तर भारत के विकास के लिए बिजली चाहिए पावर चाहिए और इसी पावर की बढ़ती डिमांड के कारण सरकरान ने यह प्रोजेक्ट बनाने का फैसला किया है. आपको जानकारी के लिए बता दें ये प्रोजेक्ट नेशनल हाईड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के जरिए बनाया जा रहा है.
मल्टीपरपज प्रोजेक्ट को अपनाया
ब्रह्मपुत्र नदी का केचमेंट एरिया भले ही 50% चीन और 34% भारत के पास है, लेकिन लंबी मॉनसून सीजन में इस नदी का 70% जल भारत की छोटी जल धाराओं से ही निकलता है. यही वजह है कि भारत ने दिबांग मल्टीपरपज प्रोजेक्ट को अपनाया है, जिसके जरिए चीन के वोटर बम को ना सिर्फ फेल किया जा सकता है, बल्कि असम ही नहीं बांग्लादेश को भी मानसून की बाढ़ से मिल सकती है बड़ी राहत.
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