जानिए मदन लाल ढींगरा को जिन्होंने ब्रिटिश अधिकारी को मारी थी गोली, पिता ने तोड़ लिया था नाता
कोर्ट के फैसले के बाद ढींगरा को ब्रिटिश जेल में 17 अगस्त 1909 को फांसी पर लटकाया गया। बाद में उनके पिता ने उनसे नाता तोड़ लिया क्योंकि ढींगरा ने उनके दोस्त की हत्या की थी।
नई दिल्ली:
ब्रिटिश अधिकारी को लंदन में गोली मारकर फांसी के फंदे पर झूल कर शहीद होने वाले मदन लाल ढींगरा के स्मारक बनाने का रास्ता साफ हो गया है। लंदन में 1909 में फांसी की सजा पाए मदन लाल ढींगरा के स्मारक बनाने को पंजाब सरकार ने मंजूरी दे दी है। ब्रिटिश अधिकारी सर विलियम कर्जन वायली की हत्या के बाद ढींगरा के पिता ने उनसे नाता तोड़ दिया था। आजादी के आंदोलन में अपनी तरह की यह पहली घटना थी।
मदन लाल ढींगरा का जन्म एक सर्जन पिता के घर में 18 सितंबर 1883 में पंजाब के अमृतसर में हुआ था। ढींगरा के पिता गीता मल अमृतसर में मुख्य मेडिकल अधिकारी थे। ढींगरा ने 1900 तक अमृतसर के एमबी इंटरमीडिएट कॉलेज में पढ़ाई की थी। जिसके बाद वे लाहौर के सरकारी कॉलेज में पढ़ाई के लिए गए।
साल 1904 में ढींगरा को प्रिंसिपल के आदेश के खिलाफ छात्रों के विरोध प्रदर्शन करने के कारण कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था। वे स्वदेशी आंदोलन से काफी प्रभावित थे। इसके बाद 1906 में बड़े भाई की सलाह पर वे उच्च शिक्षा के लिए लंदन चले गए।
कर्जन वायली भारत में लंबे समय से तैनात थे और सीक्रेट पुलिस के प्रमुख थे। वायली ढींगरा के पिता के अच्छे दोस्त माने जाते थे। 1 जुलाई 1909 को लंदन में कई भारतीयों के साथ ढींगरा एक कार्यक्रम में इकट्ठा हुए थे। उसी कार्यक्रम के बाद जब कर्जन वायली बाहर निकल रहे थे तो ढींगरा ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।
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गोली मारने के तुरंत बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। मदन लाल ढींगरा को जब कोर्ट में लाया गया था तो उन्होंने कहा था कि उन्हें कर्जन वायली की हत्या का कोई दुख नहीं है। ढींगरा ने कहा था कि उन्होंने अमानवीय ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराने के लिए अपनी भूमिका निभाई।
हालांकि कोर्ट के फैसले के बाद ढींगरा को ब्रिटिश जेल में 17 अगस्त 1909 को फांसी पर लटकाया गया। बाद में उनके पिता ने उनसे नाता तोड़ लिया क्योंकि ढींगरा ने उनके दोस्त की हत्या की थी।
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मजबूत आंदोलनकारी ढींगरा से नाराज होने के कारण परिवार ने कई वर्षों तक उनकी अस्थियां नहीं लायी। हालांकि बाद में लोगों के दवाब पर केंद्र सरकार की पहल से उनकी अस्थियों को लाया गया।
मदन लाल ढींगरा के पिता के पुस्तैनी घर को ढहाने के 6 साल बाद अमरिंदन सिंह सरकार ने स्मारक बनाने का फैसला किया था। इस अपार्टमेंट को साल 2012 में बेच दिया गया था और उसके बाद उसे ध्वस्त कर दिया गया था।
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