ऐसी व्यवस्था बनाएं कि कोई ठेकेदार बच्चों को काम पर न रख सकें : सुप्रीम कोर्ट
प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे और न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों से लॉकडाउन के दौरान बाल तस्करी मामलों की संख्या में अचानक वृद्धि के संबंध में जवाब मांगा है.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को कहा कि एक ऐसी व्यवस्था का विकास आवश्यक है जहां कोई ठेकेदार बाल श्रमिकों को काम पर न रख सके और इस नियम को संविदात्मक एंगेजमेंट का हिस्सा बनाया जाना चाहिए. प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे और न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों से लॉकडाउन के दौरान बाल तस्करी मामलों की संख्या में अचानक वृद्धि के संबंध में जवाब मांगा है.
पीठ ने सुझाव दिया कि ठेकेदारों को पंजीकृत होना चाहिए और उनके कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा जाना चाहिए कि किसी बच्चे को काम पर नहीं रखा जाए. पीठ ने कहा, केवल पुलिसिंग से काम नहीं चलेगा. हम उन्हें बाजार मुहैया कराते हैं, क्योंकि बाल श्रम सस्ता है. हमें ठेकेदारों के साथ शुरुआत करनी होगी. अदालत ने नोटिस जारी किया और मामले को दो सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए तय किया. शीर्ष अदालत की यह प्रतिक्रिया नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा दायर जनहित याचिका पर आई है.
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एनजीओ की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील एच.एस. फूलका ने कहा कि शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया कि सरकार को उन ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट करना चाहिए जो बाल श्रमिकों को काम पर रखते पाए जाते हैं. शीर्ष अदालत ने फूलका से उन तरीकों का पता लगाने के लिए कहा, जिससे बच्चों का शोषण न हो और इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए जाएं. अदालत ने कहा, हम चाहते हैं कि आप इस पर कुछ होमवर्क करें..
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पीठ ने फूलका और केंद्र सरकार के वकील से पूछा, क्या निजी काम करने वाला हर ठेकेदार भी कहीं पंजीकृत हो सकता है? .. यह मुद्दा बना हुआ है, क्योंकि बाल श्रम के लिए एक बाजार है. पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इस खतरे पर अंकुश लगाने के उपाय सुझाने को कहा. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हां हमें पता है. वेश्यावृत्ति और बाल श्रम के लिए तस्करी की जा रही. मेहता ने अदालत में कहा कि वह इस मामले पर फूलका के साथ बातचीत करेंगे और सुझावों का आदान-प्रदान करेंगे. फूलका ने अदालत के समक्ष कहा कि सभी जिला बाल कल्याण समितियों, विशेष रूप से कमजोर जिलों में एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है. पीठ ने सुझाव दिया कि वह इस मामले पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन भी कर सकती है.
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