COP 27: भारत को जलवायु वित्त से संबंधित चर्चाओं पर पर्याप्त प्रगति की उम्मीद
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव 6-18 नवंबर, 2022 तक मिस्र के शर्म अल-शेख में होने वाले यूएनएफसीसीसी (सीओपी 27) के दलों के सम्मेलन के 27वें सत्र में भाग लेने के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे. जून 2022 में बॉन (जर्मनी) में आयोजित सहायक निकायों के 56वें सत्र में विकासशील देशों ने स्पष्ट किया कि यूएनएफसीसीसी जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर सामूहिक और बहुपक्षीय प्रतिक्रिया का केंद्र है.
नई दिल्ली:
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव 6-18 नवंबर, 2022 तक मिस्र के शर्म अल-शेख में होने वाले यूएनएफसीसीसी (सीओपी 27) के दलों के सम्मेलन के 27वें सत्र में भाग लेने के लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे. जून 2022 में बॉन (जर्मनी) में आयोजित सहायक निकायों के 56वें सत्र में विकासशील देशों ने स्पष्ट किया कि यूएनएफसीसीसी जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर सामूहिक और बहुपक्षीय प्रतिक्रिया का केंद्र है.
मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा, सम्मेलन और पेरिस समझौते का अपने लक्ष्यों और सिद्धांतों के अनुसार एक संतुलित और व्यापक कार्यान्वयन होना चाहिए. मंत्रालय ने कहा कि विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त की परिभाषा पर अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है, ताकि जलवायु कार्रवाई के लिए वित्त प्रवाह की सीमा का सटीक आकलन करने में सक्षम हो सके.
उन्होंने कहा, वित्त पर स्थायी समिति विभिन्न परिभाषाओं पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी, हम इस पर अच्छे विचार-विमर्श की उम्मीद करते हैं. शब्द की व्याख्या कन्वेंशन और उसके पेरिस समझौते में जलवायु वित्त पर देशों द्वारा की गई प्रतिबद्धताओं के अनुरूप होनी चाहिए.
मंत्रालय ने कहा कि 2020 तक और उसके बाद हर साल 2025 तक हर साल 100 अरब डॉलर का जलवायु वित्त मुहैया कराने का लक्ष्य अभी हासिल नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, वादा की गई राशि को जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए, अब 2024 के बाद नए मात्रात्मक लक्ष्य के तहत पर्याप्त संसाधन प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए महत्वाकांक्षा को पर्याप्त रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है.
नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य पर चर्चा में संसाधन प्रवाह की मात्रा और गुणवत्ता पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए. वित्तीय तंत्र के कार्य में सुधार के लिए पहुंच से संबंधित मुद्दे और सुझाव भी महत्वपूर्ण हैं.
इसके अलावा, मात्रा और प्रवाह की दिशा की उचित निगरानी सुनिश्चित करने के लिए पारदर्शिता में सुधार अनिवार्य है. मंत्रालय ने कहा कि तदर्थ कार्य समूह को उपरोक्त सभी पहलुओं को शामिल करते हुए सलाह/सुझाव देना चाहिए.
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