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Chandrayaan-3: प्रज्ञान रोवर के सामने पहली मुश्किल बनकर आया क्रेटर, इतना गहरा था गड्ढा

Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 का रोवर प्रज्ञान चांदी की सतह पर घूम रहा है. इसी दौरान हाल ही में रोवर का पहली मुश्किल से सामना हुआ. हालांकि रोवर ने उसे सफलतापूर्वक पार कर लिया और आगे काम करना शुरु कर दिया. दरअसल, रोवर के सामने एक क्रेटर आ गया.

Updated on: 28 Aug 2023, 09:50 AM

highlights

  • चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर ने पार की पहली मुश्किल
  • रोवर ने सफलतापूर्वक पार किया क्रेटर
  • चांद की सतह पर घूमकर जांच कर रहा है रोवर

New Delhi:

Chandrayaan-3: चंद्रमा की सतह पर घूम रहा प्रज्ञान रोवर का पहली मुश्किल से सामना हुआ, हालांकि, रोवर प्रज्ञान ने पहली मुश्लिक को पार कर लिया और अपनी मंजिल की ओर निकल गया. दरअसल, रोवर प्रज्ञान का चांद की सतह पर एक क्रेटर से सामना हुआ. ये क्रेटर यानी गड्ढा 100 एमएम का था. जिसे रोवर ने बड़ी सावधानी से पार कर लिया. इसके बाद इसरो के कंट्रोल रूम में बैठे वैज्ञानिकों को राहत महसूस हुई. बता दें कि चांद की सतह पर प्रज्ञान रोवर को ऐसी ही कई और चुनौतियों का सामना करना है.

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टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में चंद्रयान-3 के प्रोजेक्‍ट डायरेक्‍टर, पी वीरमुथुवेल ने कहा कि अभी तक के साइंटिफिक एक्सपेरिमेंट्स से अच्छे नतीजों की उम्मीद का भरोसा बढ़ा है. उन्होंने कहा कि, 'इसरो के सैकड़ों सहयोगियों के अथक प्रयास के बिना इसमें से कुछ भी संभव नहीं होता. खासतौर से नेविगेशन-गाइडेंस-एंड-कंट्रोल, प्रपल्शन, सेंसर्स और सभी मेनफ्रेम सबसिस्टम्स के सहयोगियों के बिना.' वीरमुथुवेल ने आगे कहा कि प्रज्ञान के मूवमेंट पूरी तरह ऑटोमेटिक नहीं थे. उसके सामने कई चुनौतियां हैं जिनमें से हर एक को ग्राउंड टीमों की भागीदारी के साथ दूर करने की कोशिश की जाएगी.

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धरती से कंट्रोल होता है रोवर प्रज्ञान

उन्होंने कहा कि बहुत सारी ऐसी चुनौतियां हैं जिनसे निपटने के लिए ग्राउंड टीम को मेहनत करनी पड़ती है. पॉइंट ए से बी तक रोवर को पहुंचाने में कई स्टेप से गुजरना पड़ता है. ऑनबोर्ड नेविगेशन कैमरा से मिले डेटा के आधार पर धरती से डिजिटल एलिवेशन मॉडल जनरेट किया जता है. इसके बाद टीम कमांड देने के बारे में फैसला लेती है कि रोवर को किस दिशा में भेजना है. इसके अलावा रोवर की अपनी सीमाएं हैं. जिसके तहत वह एक बार ही पांच मीटर के दायरे में डीईएम जनरेट कर सकता है. यानी पांच मीटर की दूरी में सिर्फ एक ही कमांड दी जा सकती है.

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इसलिए इसरो के वैज्ञानिक पहले क्रेटर को लेकर परेशान थे, लेकिन रोवर ने इसे आसानी से पार कल लिया.  वीरमुथुवेल ने बताया कि हर मूवमेंट ऑपरेशन के बीच करीब पांच घंटे लगते हैं. इसके साथ ही सूर्य की स्थिति को लेकर भी अध्ययन करना होता है. क्योंकि वहां सूर्य स्थायी नहीं है, बल्कि ये 12 डिग्री पर घूमता है. इसके अलावा रोवर तीन ओर से लैंडर की तरह सोलर पैनल नहीं ढका गया है. हालांकि इसकी एक साइड ही पूरी तरह से सोलर सेल से ढकी हुई है और दूसरी ओर के आधे हिस्से पर पैनल लगा है.