बीजेपी पांच राज्यों के चुनाव में उतरेगी गुजरात मॉडल संग, प्रत्याशियों में आधे नए चेहरे
गुजरात मॉडल के सहारे भारतीय जनता पार्टी (BJP) अगले साल आसन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) की वैतरणी पार करने के मूड में है. इस कड़ी में सबसे पहले प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया में आमूलचूल बदलाव किया जाएगा.
highlights
- चुनाव वाले राज्यों में साधा जाएगा सामाजिक-राजनीतिक समीकरण
- बीजेपी और आरएसएस ने लिया है एक-एक सीट का तगड़ा फीडबैक
- भाजपा को चेहरे बदलने से मिला है लगभग हर चुनाव में फायदा
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते देश भर में लोकप्रिय हुआ था गुजरात मॉडल. कुछ राजनीतिक टिप्पणीकारों ने उस वक्त इसे गुजरात में हिंदुत्व (Hindutva) की प्रयोगशाला भी करार दिया था. अब इसी गुजरात मॉडल के सहारे भारतीय जनता पार्टी (BJP) अगले साल आसन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) की वैतरणी पार करने के मूड में है. इस कड़ी में सबसे पहले प्रत्याशियों की चयन प्रक्रिया में आमूलचूल बदलाव किया जाएगा. अगर बीजेपी मुख्यालय के गलियारों में बह रही हवा का रुख समझा जाए तो इन पांच राज्यों में पार्टी आलाकमान कम से कम आधे नए चेहरों को वरीयता देने जा रहा है. इसका एक मकसद तो एंटी-इनकम्बेंसी फैक्टर को मात देना है, तो दूसरा पार्टी के भीतर नए चेहरों के जरिए नई पीढ़ी को भी उभारना है.
जमीनी फीडबैक बनेगा उम्मीदवारों के चयन का आधार
बताते हैं कि इस प्रत्याशी चयन प्रक्रिया में आमूलचूल बदलाव में सामाजिक समीकरणों को तो साधा ही जाएगा. साथ ही इनमें युवा व महिलाओं की भी काफी संख्या होगी. गौरतलब है कि मोटे तौर पर अगले साल फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस लिहाज से देखें तो पार्टी आलाकमान और संगठन के पास हद से हद चार माह का समय शेष है. बीजेपी नेतृत्व ने हर राज्य में चुनावी टीमें तैनात कर दी हैं. इसके साथ ही उम्मीदवारों के चयन का काम दीपावली के बाद शुरू होगा. सूत्रों के अनुसार आलाकमान ने साफ कर दिया है कि वह नाम व कद के बजाय जमीनी स्थितियों को ध्यान में रखकर फैसला करेगी. जाहिर है इसका आधार बनेगा बीजेपी नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से लिया गया फीडबैक. इसी के आधार पर चेहरों को बदला जाएगा. खासकर उन राज्यों में जहां भाजपा सरकार में है.
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टिकट कटने से नाराज बागी सुरों को भी रखा जाएगा संतुष्ट
बताते हैं कि इस कड़ी में भाजपा ने राज्यों में संगठन स्तर पर हर क्षेत्र के सामाजिक व राजनीतिक समीकरणों के अनुसार भावी उम्मीदवारों को तलाशना भी शुरू कर दिया है. माना जा रहा है कि हर राज्य में लगभग 50 फीसदी चेहरे नए होंगे. कई वर्तमान विधायकों को चुनावी मैदान से हटा संगठन जैसे दूसरे दायित्वों से जोड़ा जाएगा. टिकट कटने की स्थिति में नाराजगी न हो, इसके लिए भी पार्टी पूरी तैयारी कर रही है. इसके लिए पार्टी आलाकमान ने हिमाचल प्रदेश के उपचुनावों में उठे बागी सुरों से मिले अनुभवों को आधार बनाया है. ऐसे में आलाकमान विरोधी सुरों को शांत करने को लेकर भी खासी सतर्कता बरती जा रही है.
जेपी नड्डा प्रबंधन के कसेंगे पेंच
रणनीति के तहत भाजपा ने हर राज्य में चुनाव प्रभारी व सह प्रभारी नियुक्त कर दिए हैं. प्रत्याशियों के चयन में इस बार इनकी राय भी अहम साबित होने जा रही है. सूत्रों के अनुसार प्रभारियों की टीम को हर विधानसभा सीट के राजनीतिक व सामाजिक समीकरणों के अध्ययन के साथ मौजूदा विधायक के फीडबैक का भी आकलन करेगी. इसके अलावा प्रभारी नए चेहरों पर भी नजर रखेंगे. इस काम को बखूबी अंजाम देने के लिए पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी राज्यों के दौरे शुरू कर दिए हैं. लक्ष्य यह है कि एक माह में नड्डा चुनाव वाले राज्यों का एक दौरा पूरा कर चुके होंगे.
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चेहरे बदलने से बीजेपी को मिला है फायदा
सूत्रों की मानें तो भाजपा को चेहरे बदलने से अधिकांश स्तरों पर हुए चुनाव में काफी लाभ मिला है. इसे भी गुजरात मॉडल का एक हिस्सा माना जाता है. बीजेपी नेतृत्व ने सबसे पहले गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में इस फॉर्मूले का उपयोग किया गया था. इसके बाद दिल्ली में भी बीते निकाय चुनावों में इस पर अमल किया. अब इसे आगे अन्य स्तरों पर भी एक सोची-समझी रणनीति के तहत लागू किया जाएगा.
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