आदर्श स्कैम : पूर्व सीएम अशोक चव्हाण को बड़ी राहत, जानें आखिर क्या है पूरा मामला
बाम्बे हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को बड़ी राहत देते हुए धोखाधड़ी और आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग को अस्वीकार कर दिया।
नई दिल्ली:
महाराष्ट्र सरकार के बहुचर्चित आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले मामले में बाम्बे हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को बड़ी राहत देते हुए धोखाधड़ी और आपराधिक मुकदमा चलाने की मांग को अस्वीकार कर दिया।
इससे पहले अप्रैल 2016 को गवर्नर विद्यासागर राव ने अशोक चव्हाण के ख़िलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक मामले में मुकदमा चलाने की मंज़ूरी दी थी।
आखिर क्या है आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाला?
- महाराष्ट्र सरकार ने युद्ध में मारे गए सैनिकों की विधवाओं और भारतीय रक्षा मंत्रालय के कर्मचारियों के लिए मुंबई के कोलाबा में आदर्श हाउसिंग सोसायटी में 31 मंजिला इमारत बनाई।
- सोसाइटी बनने के कुछ सालों बाद 2010 में एक आरटीआई में खुलासा हुआ कि तमाम नियमों को ताक पर रख कर सोसाइटी के फ्लैट ब्यूरोक्रैट्स, राजनेताओं और सेना के अफसरों को बेहद कम दामों में बेचे गए। जिसके बाद महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को इस्तीफा देना पड़ा।
- 21 दिसंबर 2010 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोसाइटी को अंतरिम राहत देने से इनकार करते हुए इसे सीधे-सीधे धोखेबाजी का मामला बताया।
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण नियमों की अनदेखी करने की वजह से इमारत को तीन महीने के अंदर गिराने की सिफारिश की।
- 2011 में मामले की जांच के लिए महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस जेए पाटिल की अध्यक्षता में दो सदस्यीय न्यायिक कमिशन का गठन किया। इस समिति ने 2 साल तक 182 से ज्यादा गवाहों से पूछताछ की और अप्रैल 2013 में अपनी रिपोर्ट सौंपी।
- समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि कुल 25 फ्लैट गैरकानूनी तौर पर आवंटित किए गए थे जिन्हें फर्जी नाम से खरीदा गया था।
- इस रिपोर्ट में महाराष्ट्र के चार पूर्व मुख्यमंत्रियों अशोक चव्हाण, विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे और शिवाजीराव निलंगेकर पाटिल का नाम भी सामने आया। इनके अलावा दो पूर्व शहरी विकास मंत्री राजेश तोपे और सुनील ततकारे और 12 ब्यूरोक्रैट्स के नाम भी रिपोर्ट में शामिल किए गए।
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- आदर्श सोसाइटी को लेकर एक मामला यह भी है कि यह इमारत बेहद संवेदनशील तटवर्ती क्षेत्र में नौसेना की जमीन पर बनाया गया। इसके निर्माण से पहले नौसेना से 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' भी नहीं लिया गया।
- मौजूदा समय में मामले की जांच सीबीआई, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट और प्रवर्तन निदेशालय कर रहे हैं। अभी तक सरकार और सेना की ओर से कई जांच की जा चुकी है।
- मई 2012 में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 60 दिन के अंदर चार्जशीट फाइल न कर पाने की वजह से 7 लोगों को रिहा कर दिया था।
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