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स्वतंत्रता दिवस: देश की आजादी में इन महिला स्वतंत्रता सेनानियों का भी था अहम योगदान, जानें 15 वीरांगनाओं के नाम

आज देश अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. आजादी के लिए कुर्बानी देने और देश के लिए लड़ने वाले वीरों में देश की वीरांगनाएं भी थी. जिन्होंने निडरता के साथ लड़कर बढ़-चढ़कर भारत की आजादी में अपना अहम योगदान दिया था.

Updated on: 15 Aug 2019, 10:12 AM

नई दिल्ली:

आज देश अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. आजादी के लिए कुर्बानी देने और देश के लिए लड़ने वाले वीरों में देश की वीरांगनाएं भी थी. जिन्होंने निडरता के साथ लड़कर बढ़-चढ़कर भारत की आजादी में अपना अहम योगदान दिया था. आइए आज उन महिला स्वतंत्रता सेनानियों को याद करें जिन्होंने हमारे देश का गौरव ही नहीं बढ़ाया बल्कि महिला सशक्तिकरण की कभी नहीं भूलने वाली मिसाल भी पेश की. 

सुचेता कृपलानी (फाइल फोटो)
सुचेता कृपलानी (फाइल फोटो)

सुचेता कृपालानी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के साथ ही राजनीतिज्ञ भी थी। भारतीय राज्य (उत्तर प्रदेश) की मुख्यमंत्री बनने वाली वो पहली महिला बनीं। स्वतंत्रता आंदोलन में सुचेता के योगदान को भी हमेशा याद किया जाएगा। 1908 में जन्मी सुचेता जी की शिक्षा लाहौर और दिल्ली में हुई थी। आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सजा भी हुई थी।
सुचेता भारत के बंटवारे की त्रासदी के समय महात्मा गांधी के बेहद करीब रही थी। वो उन महिलाओं में शामिल थी जिन्होंने गांधी जी के करीब रहकर देश की आजादी की नींव रखी थी। वो नोवाखली यात्रा में बापू के साथ थी।

अरुणा आसफ अली (फाइल फोटो)
अरुणा आसफ अली (फाइल फोटो)

इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी अहम भूमिका निभाई थी। मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में इन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस का झंडा फहराया था। 1958 में दिल्ली की पहली मेयर चुनी गई थीं।

रानी लक्ष्मीबाई (फाइल फोटो)
रानी लक्ष्मीबाई (फाइल फोटो)

भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा जरूर होती है। बचपन में इनका नाम मणिकर्णिका था, बाद में लक्ष्मी बाई बनीं देवी लक्ष्मी के सम्मान में इन्होंने अपना नाम लक्ष्मी बाई रखा। 14 साल की उम्र में इनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख उपलब्धियां ब्रिटिश सरकार के कानून को पालन करने से इंकार कर दिया मौत से पहले तक इन्होंने अंग्रेज के साथ वीरता से लड़ा। 22 साल की उम्र में ब्रिटिश सेना से लोहा लेते हुए शहीद हो गई।

बेगम हजरत महल (फाइल फोटो)
बेगम हजरत महल (फाइल फोटो)

बेगम हज़रत महल जो अवध (अउध) की बेगम के नाम से भी प्रसिद्ध थी, अवध के नवाब वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी थीं। अंग्रेज़ों द्वारा कलकत्ते में अपने शौहर के निर्वासन के बाद उन्होंने लखनऊ पर क़ब्ज़ा कर लिया और अपनी अवध रियासत की हकूमत को बरक़रार रखा।
अंग्रेज़ों के क़ब्ज़े से अपनी रियासत बचाने के लिए उन्होंने अपने बेटे नवाबज़ादे बिरजिस क़द्र को अवध के वली (शासक) नियुक्त करने की कोशिश की थी मगर उनके शासन जल्द ही ख़त्म होने की वजह से उनकी ये कोशिश असफल रह गई। उन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के ख़िलाफ़ विद्रोह किया। आखिर में उन्होंने नेपाल में शरण मिली जहां उनकी मृत्यु 1879 में हुई थी।

भीकाजी कामा (फाइल फोटो)
भीकाजी कामा (फाइल फोटो)

श्रीमती भीकाजी जी रूस्तम कामा (मैडम कामा) भारतीय मूल की पारसी नागरिक थीं जिन्होने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया। वो जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराने के लिए प्रसिध्द हैं। उस समय तिरंगा वैसा नहीं था जैसा आज है।
उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित 'वन्देमातरम्' पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुयी अन्तर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा, 'भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुंच रही है।'
उन्होंने लोगों से भारत को दासता से मुक्ति दिलाने में सहयोग की अपील की और भारतवासियों का आह्वान किया, 'आगे बढ़ो, हम हिन्दुस्तानी हैं और हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है।'
यही नहीं मैडम भीकाजी कामा ने इस कांफ्रेंस में 'वन्देमातरम्' अंकित भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज फहरा कर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी। मैडम भीकाजी कामा लन्दन में दादा भाई नौरोजी की प्राइवेट सेक्रेटरी भी रही थी।

दुर्गाभाभी (फाइल फोटो)
दुर्गाभाभी (फाइल फोटो)

दुर्गा भाभी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारियों की प्रमुख सहयोगी थीं। 18 दिसम्बर 1928 को भगत सिंह ने इन्ही दुर्गा भाभी के साथ वेश बदल कर कलकत्ता-मेल से यात्रा की थी। दुर्गाभाभी क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा की धर्मपत्नी थी।

ग़दरी गुलाब कौर (फाइल फोटो)
ग़दरी गुलाब कौर (फाइल फोटो)

गुलाब कौर एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत पंजाब के संगरूर जिले में बख्शीवाला गांव के गुलाब कौर ने मान सिंह से शादी की थी। यह युगल, फिलीपींस मनीला के लिए गया था, उन्का अमेरिका जाने का इरादा था।
मनीला में, गुलाब कौर ग़दर पार्टी मे शामिल हो जो ब्रिटिश शासन से उपमहाद्वीप को मुक्त करने के उद्देश्य से सिख-पंजाबी प्रवासियों द्वारा स्थापित एक संगठन था।
गुलाब कौर ने पार्टी प्रिंटिंग प्रेस पर निगरानी रखी। पत्रकार के तौर पर एक प्रेस पास हाथ में हाथ लेकर उन्होंने ग़दर पार्टी के सदस्यों को हथियार बांट दिए।
गुलाब ने अन्य लोगों को स्वतंत्रता साहित्य बांटकर और जहाजों के भारतीय यात्रियों को प्रेरक भाषण देने के द्वारा गदर पार्टी में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया।
उसे लाहौर, उस समय ब्रिटिश-भारत में और अब पाकिस्तान में, राजद्रोहपूर्ण कृत्यों के लिए में दो साल की सजा सुनाई गई थी।

कमला नेहरू (फाइल फोटो)
कमला नेहरू (फाइल फोटो)

जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला कम उम्र में ही दुल्हन बन गई थी। लेकिन समय आने पर यही शांत स्वाभाव की महिला लौह स्त्री साबित हुई, जो धरने-जुलूस में अंग्रेजों का सामना करती, भूख हड़ताल करतीं और जेल की पथरीली धरती पर सोती थी। इन्होंने असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
कमला नेहरू दिल्ली के प्रमुख व्यापारी पंड़ित 'जवाहरलालमल' और राजपति कौल की बेटी थीं। एक भारतीय परंपरागत कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में कमला का जन्म 1 अगस्त 1899 को दिल्ली में हुआ था।

किटटूर रानी चेन्नम्मा (फाइल फोटो)
किटटूर रानी चेन्नम्मा (फाइल फोटो)

रानी चेनम्मा भारत के कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थी। सन् 1824 में उन्होने हड़प नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ लेप्स) के विरुद्ध अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष किया था। संघर्ष में वह वीरगति को प्राप्त हुई। भारत में उन्हें भारत की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करने वाले सबसे पहले शासकों में उनका नाम लिया जाता है।
रानी चेनम्मा के साहस एवं उनकी वीरता के कारण देश के विभिन्न हिस्सों खासकर कर्नाटक में उन्हें विशेष सम्मान हासिल है और उनका नाम आदर के साथ लिया जाता है।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के संघर्ष के पहले ही रानी चेनम्मा ने युद्ध में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। हालांकि उन्हें युद्ध में कामयाबी नहीं मिली और उन्हें कैद कर लिया गया। अंग्रेजों के कैद में ही रानी चेनम्मा का निधन हो गया।

प्रीतिलता वादेदार (फाइल फोटो)
प्रीतिलता वादेदार (फाइल फोटो)

1911 में बंगाल में जन्मी प्रीतिलता वादेदार एक ऐसा नाम है जिन्होंने मात्र 21 साल की उम्र में देश के लिए मौत को गले लगा लिया। 1932 में चटगांव के यूरोपियन क्लब में हुए हमले के पीछे इसी क्रांतिकारिणी का हाथ था। शुरू से ही उनका झुकाव क्रांतिकारी विचारों की ओर झुकाव था। कॉलेज में आकर उनके विचारों को और मजबूती मिली, नतीजन ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के चलते कोलकाता यूनिवर्सिटी में प्रीतिलता की डिग्री पर रोक लगा दी और मजे की बात यह है कि साल 2012 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम के नारायणन की पहल पर करीब 80 साल बाद रिलीज की गई। खैर अंग्रेजों की ओर से डिग्री रोक लिए जाने के बाद प्रीतिलता वापस गांव लौटकर एक स्कूल में पढ़ाने लगी।
इसी दौरान उनकी मुलाकात प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य सेन उर्फ मास्टर दा से हुई जिन्होंने प्रीतिलता को हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी। 18 अप्रैल 1930 को इंडियन रिपब्लिकन आर्मी का गठन किया गया, हालांकि IRA अपने ग्रुप में किसी महिला को शामिल करने के खिलाफ था लेकिन बावजूद इसके प्रीतिलता IRA में शामिल हो गई। IRA के साथ मिलकर उन्होंने कई मोर्चो पर ब्रिटिश हुकुमत से लोहा लिया।
24 सितम्बर 1932 की रात एक पंजाबी पुरुष के वेष में हथियारों से लैस प्रीतिलता ने पोटेशियम साइनाइड भी रख लिया था। उन्होंने चटगांव के यूरोपियन क्लब के बाहर से खिड़की में बम लगाया। क्लब की इमारत बम के फटने और पिस्तौल की आवाज़ से कांपने लगी। इस हमले में 13 अंग्रेज जख्मी हो गये और बाकी भाग गये। वहीं इस घटना में एक यूरोपीय महिला मारी गयी। दोनों तरफ से गोलियां चल रही थी और इसी दौरान एक गोली प्रीतिलता को भी लगी, वो घायल अवस्था में भागी लेकिन जब वो फिर से गिरी तो उन्होंने पोटेशियम सायनाइड खा कर शहादत को गले लगा लिया।

रानी गाइदिन्ल्यू (फाइल फोटो)
रानी गाइदिन्ल्यू (फाइल फोटो)

रानी गिडालू या रानी गाइदिन्ल्यू भारत की नागा आध्यात्मिक और राजनीतिक नेत्री थीं जिन्होने भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया। उनको भारत सरकार द्वारा समाज सेवा के क्षेत्र में सन 1982 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
भारत की स्वतंत्रता के लिए रानी गाइदिनल्यू ने नागालैण्ड में क्रांतिकारी आन्दोलन चलाया था। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान ही वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए इन्हें 'नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई' कहा जाता है।
आज रानी को याद करने वाले बहुत कम हैं। उनकी याद में दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (IIMC ) में एक झलक देख सकते है। वहां लड़कियों के लिए हॉस्टल उन्हीं के नाम पर बनाया गया है।

सरोजिनी नायडू (फाइल फोटो)
सरोजिनी नायडू (फाइल फोटो)

इनका जन्म 1879 में हुआ था। सबसे पहले इन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। ये इस आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के साथ जेल भी भेजी गई थीं। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन भी अहम भूमिका निभाते हुए इन्हें गिरफ्तार किया गया था। ये आजाद भारत की उत्तर प्रदेश की पहली महिला गवर्नर भी बनीं। ऑफिस में काम करते हुए ही इन्होंने 1942 आखिरी सांस ली।

ऊषा मेहता (फाइल फोटो)
ऊषा मेहता (फाइल फोटो)

सिर्फ 5 साल की छोटी सी उम्र में ऊषा मेहता की मुलाकात गांधीजी से हुई थी और इतनी सी उम्र में ही वे उनके विचारों से प्रभावित हुई। 8 साल की उम्र में उन्होंने 'साइमन गो बैक' विरोध प्रदर्शन में हिंस्सा लिया। हालांकि, ब्रिटिश शासन के दौरान जज रहे उनके पिता ने स्वतंत्रता की लड़ाई का हिस्सा बनने से उषा को रोकने की कोशिश की लेकिन वे नहीं मानीं। भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और उसके बाद पूरी तरह से स्वतंत्रता की लड़ाई के प्रति समर्पित रही।

विजयलक्ष्मी पंडित (फाइल फोटो)
विजयलक्ष्मी पंडित (फाइल फोटो)

विजय लक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थी। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विजय लक्ष्मी पंडित ने अपना अमूल्य योगदान दिया था।
गांधीजी से प्रभावित होकर उन्होंने भी आज़ादी के लिए आंदोलनों में भाग लेना आरम्भ कर दिया था। वह हर आन्दोलन में आगे रहतीं, जेल जाती, रिहा होती और फिर आन्दोलन में जुट जाती। उनके पति को भारत की स्वतंत्रता के लिए किए जा रहे आन्दोलनों का समर्थन करने के आरोप में गिरफ्तार करके लखनऊ की जेल में डाला गया जहाँ 1 दिसम्बर 1990 को उनका निधन हो गया।
विजय लक्ष्मी केबिनेट मंत्री बनने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। साल 1937 में वो संयुक्त प्रांत की प्रांतीय विधानसभा के लिए निर्वाचित हुई और स्थानीय स्वशासन और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री के पद पर नियुक्त की गई। 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली वह विश्व की पहली महिला थी। वे राज्यपाल और राजदूत जैसे कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रही।

लक्ष्मी सहगल (फाइल फोटो)
लक्ष्मी सहगल (फाइल फोटो)

लक्ष्मी सहगल भारत की स्वतंत्रता संग्राम की सेनानी हैं। वे आजाद हिन्द फौज की अधिकारी तथा आजाद हिन्द सरकार में महिला मामलों की मंत्री थीं। वो व्यवसाय से डॉक्टर थी जो द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रकाश में आयीं। लक्ष्मी आजाद हिन्द फौज की 'रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट' की कमाण्डर थीं।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गई थी।
वो बचपन से ही राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हो गई थी और जब महात्मा गांधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो लक्ष्मी सहगल ने उसमे हिस्सा लिया थी। लक्ष्मी 1943 में अस्थायी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनी थी।
आज़ाद हिंद फ़ौज की रानी झांसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत सक्रिय रहीं। बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा।
आज़ाद हिंद फ़ौज की हार के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने स्वतंत्रता सैनिकों की धरपकड़ की और 4 मार्च 1946 को वे पकड़ी गई पर बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। लक्ष्मी सहगल ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और कानपुर आकर बस गई।