RSS के स्वयंसेवक से सीएम की कुर्सी तक, येदियुरप्पा का राजनीतिक सफर, चावल मिल में की थी क्लर्क की नौकरी
कर्नाटक चुनाव में बीजेपी का मुख्यमंत्री का चेहरा बने बीएस येदियुरप्पा आरएसएस के एक साधारण कार्यकर्ता से लेकर दक्षिण भारत में बीजपी के पहले मुख्यमंत्री बनने तक की यात्रा काफी रोचक रही है।
नई दिल्ली:
बीएस येदियुरप्पा आरएसएस के एक साधारण कार्यकर्ता से लेकर दक्षिण भारत में बीजपी के पहले मुख्यमंत्री बनने तक की यात्रा काफी रोचक रही है। उन्होंने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर तीसरी बार शपथ लिया।
इनके बिना बीजेपी की कर्नाटक में राजनीति मुश्किल है या यूं कहा जाए कि वो दक्षिण भारत में बीजेपी का एक बड़ा चेहरा हैं। हालांकि उनका पहले का कार्यकाल विवादित रहा है और उनपर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे और खनन घोटाले के कारण उनकी कुर्सी तक चली गई थी। इसके बावजूद भी बीजेपी इन्हें छोड़ नहीं पाई।
कर्नाटक के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में 27 फरवरी 1943 को लिंगायत परिवार में येदियुरप्पा का जन्म हुआ था। उनका नाम लिंगायत समुदाय के शैव देवता के येदियुर स्थित मंदिर के पर रखा गया।
गैजुएशन करने के दौरान छात्र जीवन से ही वह राजनीति में सक्रिय रहे और 1972 में उन्हें शिकारीपुरा तालुका जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया। एक चावल मिल में क्लर्क को तैर पर काम करते हुए उन्होंने बीजेपी (तत्कालीन जनसंघ) के लिये काम करते रहे।
1975 में इमरजेंसी के दौरान उन्हें शिमोघा और बेल्लारी के जेल में 45 दिनों तक जेल में भी बंद थे।
उन्हें 1977 में जनता पार्टी का सचिव बनाया गया और उसके बाद से वो पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हो गए। 1983 में कर्नाटक विधानसभी चुनाव में जीत के बाद पहली बार विधायक बने। इसके अलावा 1988 में उन्हें राज्य बीजेपी के अध्यक्ष बनाया गया। 1994 में उन्हें कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया। 2004 में उन्हें दोबारा विपक्ष का नेता बनाया गया।
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोगों में उनकी खासी पकड़ है। येदियुरप्पा के कारण ही लिंगायत बीजेपी को वोट देते आ रहे हैं और वो उनके परंपरागत वोटर बने हुए हैं।
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धरम सिंह की सरकार को गिरने के लिये बीजेपी ने जेडीएस के साथ हाथ मिलाया और कुमारस्वामी को सीएम बनाया गया लेकिन साथ में शर्त रखी गई कि दोनों दलों के नेता बारी-बारी से सीएम बनेंगे। लेकिन टर्म खत्म होने के बाद कुमारस्वामी ने कुर्सी छोड़ने से मना कर दिया। बीजेपी ने जेडीएस से समर्थन वापस ले लिया।
2007 में राष्ट्रपति शासन के बाद दोनों दलों ने मतभद भुला दिया और येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन मंत्रालय को लेकर मतभेद के बाद जेडीएस ने समर्थन वापस ले लिया।
साल 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन जबरदस्त रहा और येदियुरप्पा को सीएम बनाया गया। इस चुनाव में येदियुरप्पा ने पूर्व सीएम एस बंगारप्पा को हराया था।
लेकिन उनका ये कार्यकाल विवादित रहा। उन्हें कथित भूमि और खनन घोटाले में नाम आया और इस्तीफा देना पड़ा।
लोकायुक्त की रिपोर्ट में उन्हें दोषी पाया गया और जेल जाना पड़ा। योदियुरप्पा 20 दिनों तक जेल में रहे। उनके साथ ही उनके दोनों बेटों को भी इन मामलों में दोषी ठहराया गया था।
उन्होंने 2012 में विधायक और बीजेपी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद कर्नाटक जनता पक्ष के नाम से एक नई पार्टी शुरू की। लेकिन 2013 में उन्होंने बीजेपी में आने के लिये बातचीत शुरू की और 2014 लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया।
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हाल ही में सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत को अल्पसंख्यक को दर्जा दिया था और लग रहा था कि बीजेपी को हार का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि लिंगायत समुदाय काफी पहले से इसकी मांग कर रहा था। लेकिन बीजेपी ने घोषणा कर दी कि लिंगायत को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा केंद्र सरकार नहीं देगी।
लिंगायत फैक्टर बीजेपी के लिये महत्वपूर्ण है येदियुरप्पा के बिना राज्य में उसका कोई जनाधार नही रह जाएगा ये बात बीजेपी जानती है। इसलिये भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद भी पार्टी ने उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव के लिये अपना सीएम पद का उम्मीदवार बनाया है।
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