World Cup: निराशाजनक रही विश्व कप से दक्षिण अफ्रीका असमय विदाई
1991 में क्रिकेट में दोबारा वापसी के बाद से इस टीम ने विश्व कप के सभी संस्करणों में हिस्सा लिया है और कुल मिलाकर अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन 2019 विश्व कप से उसकी असमय विदाई बहुत ही निराशाजनक रही.
नई दिल्ली:
विश्व क्रिकेट में दक्षिण अफ्रीका को हमेशा से एक मजबूत टीम माना जाता रहा है. 1991 में क्रिकेट में दोबारा वापसी के बाद से इस टीम ने विश्व कप के सभी संस्करणों में हिस्सा लिया है और कुल मिलाकर अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन 2019 विश्व कप से उसकी असमय विदाई बहुत ही निराशाजनक रही. इसका कारण यह रहा कि इस टीम को अब तक खेले गए सात में से पांच मुकाबलों में हार मिली जबकि वह सिर्फ एक मैच में जीत हासिल कर पाई. उसका एक मैच रद्द भी हुआ है. तीन अंकों के साथ यह टीम 10 टीमों की तालिका में नौवें स्थान पर काबिज है. उसके खाते में दो मैच शेष हैं लेकिन उसका आगे का सफर समाप्त हो चुका है.
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दक्षिण अफ्रीका को इससे पहले 2003 विश्व कप में भी ग्रुप स्तर से ही विदा होना पड़ा था. शॉन पोलाक की कप्तानी में दक्षिण अफ्रीकी टीम छह में से सिर्फ तीन मैच जीत सकी थी. वह पूल-बी में चौथे स्थान पर रही थी और आगे का टिकट नहीं कटा सकी थी. उससे पहले और उसके बाद हालांकि इस टीम ने अच्छा प्रदर्शन किया था. चार मौकों (1992, 1999, 2007 और 2015) पर यह टीम सेमीफाइनल और दो मौकों (1996, 2011) पर क्वार्टर फाइनल खेली है लेकिन इस साल उसका प्रदर्शन स्तरीय टीम जैसा बिल्कुल भी नहीं रहा.
टीम के प्रदर्शन को लेकर निराशा जाहिर करते हुए कप्तान फाफ डू प्लेसिस ने कहा, 'हम अच्छा नहीं खेले. हमने इस टूर्नामेंट में अब तक गेंद के साथ अच्छा प्रदर्शन किया था लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ हम उसमें भी नाकाम रहे. साथ ही हमारी बल्लेबाजी भी नहीं चली. कुल मिलाकर एक टीम के तौर पर हम अपनी काबिलियत के साथ इंसाफ नहीं कर सके. हमारे लिए यही सबसे बड़ी नाकामी रही.'
प्लेसिस ने कहा कि उनकी टीम में क्षमता और काबिलियत की कमी नहीं थी लेकिन कुछ एक को छोड़कर अन्य कोई भी उसे क्रिकेट के इस महाकुम्भ में मैदान में दिखा नहीं सका.
बकौल प्लेसिस, 'हम उस तरह की क्रिकेट नहीं खेले, जिस तरह की खेल सकते थे. मेरे लिए सबसे बड़ी निराशा की बात यह है कि हमने बार-बार खुद को शर्मसार किया जबकि हमारे पास विश्व कप में खेल रही सभी टीमों को हराने की क्षमता थी. हम खुद पर यकीन नहीं कर सके और नतीजा यह है कि आज इस टूर्नामेंट से हमारी असमय विदाई हो चुकी है.'
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सालों से दक्षिण अफ्रीकी टीम के साथ 'चोकर्स' शब्द जुड़ा रहा है. इसका कारण यह है कि बड़े मुकाबलों में हमेशा यह टीम अपनी क्षमता के अनुरूप नहीं खेल पाई है. चार बार सेमीफाइनल में पहुंचकर खिताब से दूर रहना इसके चोकर्स कहलाने के पीछे एक बड़ा कारण है.
यही नहीं, यह टीम टी-20 विश्व कप भी एक बार भी नहीं जीत पाई है. दक्षिण अफ्रीकी टीम टी-20 विश्व कप में छह बार खेली है और दो बार फाइनल में पहुंचकर भी खिताब से दूर रह गई है.
ऐसा नहीं है कि इस साल दक्षिण अफ्रीकी टीम में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की कमी थी लेकिन कोई भी अपनी असल चमक नहीं दिखा सका. आईपीएल के बीते संस्करण में सबसे अधिक विकेट लेने वाले तेज गेंदबाज कगीसो रबाडा हों या फिर 500 से अधिक रन बनाने वाले क्विंटन डी कॉक, कोई भी टॉप के बल्लेबाजों और गेंदबाजों की सूची में दूर-दूर तक नहीं दिखे.
डीकॉक ने सात मैचों में 238 रन बनाए हैं जबकि एचई वैन डेर डुसैन ने 216 रन जोड़े हैं. इसके अलावा कोई और बल्लेबाज 200 रनों के आंकडे को पार नहीं कर सका. गेंदबाजों की बात की जाए तो 40 साल के इमरान ताहिर ने सबसे अधिक 10 विकेट लेकर अपनी उपयोगिता को बनाए रखा जबकि रबाडा अब तक सिर्फ छह विकेट हासिल कर सके हैं.
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बल्लेबाजों में डेविड मिलर, हाशिम अमला और गेंदबाजों में क्रिस मौरिस तथा एएल फेहलुकवाओ जैसे खिलाड़ियों का नाकाम रहना भी दक्षिण अफ्रीका की असमय विदाई का असल कारण रहा. इस टीम की नाकामी का यह आलम है कि इसका कोई भी बल्लेबाज टॉप स्कोर्स और टॉप बालर्स की सूची में शामिल नहीं है.
इस टीम को चोकर्स का तमगा इसलिए मिला था क्योंकि यह बड़े मुकाबलों में उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई थी लेकिन मौजूदा विश्व कप में शुरुआत (इंग्लैंड के खिलाफ 104 रन) और छठे मुकाबले (पाकिस्तान के हाथों मिली 49 रनों की हार) तक उसका प्रदर्शन लचर रहा है और उसे एकतरफा हार मिली है. इन तमाम आंकड़ों को देखते हुए तो यही लगता है कि अब शायद वह वक्त नहीं रहा कि उसे चोकर्स भी कहा जाए.
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