बुलेट ट्रेन के ख्वाब को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दूर कर रहे महाराष्ट्र के पालघर के कुछ किसान
अभी तक तय लक्ष्य की अपेक्षा सिर्फ दस फीसदी भू-अधिग्रहण ही हो पाया है. इस कारण सरकार भू-अधिग्रहण की दिसंबर 2018 की डेडलाइन पार कर चुकी है. यह तब है जब 2023 तक यह काम पूरा हो जाना है.
मुंबई.:
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता संभालते ही कन्याकुमारी से चेन्नई के बीच बुलेट ट्रेन का वादा किया था. इस महत्वाकांक्षी घोषणा ने लोगों में बेहतर कनेक्टिविटी के सपने जगाए थे, लेकिन मुंबई-अहमदाबाद के बीच पहले चरण का काम भू-अधिग्रहण के पेंच में अटक कर रह गया. वह भी बीजेपी शासित महाराष्ट्र के एक ऐसे जिले पालघर में जहां पार्टी का ही सांसद है.
पश्चिम के व्यापारिक शहरों को जोड़ने वाले इस 1.1 लाख करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट से महाराष्ट्र और गुजरात के 11 प्रमुख व्यावसायिक शहर जुड़ने हैं. इसके लिए 1,414 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाना है, जिसमें से सर्वाधिक लगभग 280 हेक्टेयर भू-अधिग्रहण महाराष्ट्र के पालघर से होना था. बताते हैं कि अभी तक तय लक्ष्य की अपेक्षा सिर्फ दस फीसदी भू-अधिग्रहण ही हो पाया है. इस कारण सरकार भू-अधिग्रहण की दिसंबर 2018 की डेडलाइन पार कर चुकी है. यह तब है जब 2023 तक यह काम पूरा हो जाना है.
इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को सबसे ज्यादा विरोध पालघर में झेलना पड़ रहा है. हालांकि चुनावी समर के इस बेला में बुलेट ट्रेन का मसला बीजेपी नीत सरकार के लिए वोट खींचने का काम तो नहीं कर सकता है, लेकिन इस कारण होने वाले भू-अधिग्रहण से प्रभावित क्षेत्रों में इसका प्रभाव देखा जा सकता है.
इस प्रोजेक्ट के विरोध की वजह भी बहुत साफ है. प्रभावित क्षेत्रों के अधिसंख्य किसानों को लगता है कि बुलेट ट्रेन से उनके जीवन में किसी तरह का बदलाव आने वाला नहीं. धानुआ ब्लॉक के देहाने गांव के लोग कुछ ज्यादा ही आक्रोशित हैं. उनका कहना है कि भू-अधिग्रहण के नाम पर सरकार हमारा सब कुछ ले लेना चाहती है. इसके उलट हमें मुआवजे के अलावा औऱ कुछ मिलने वाला नहीं. गांव वासी कहते हैं कि भले ही सरकार मुआवजा चार गुना कर दे, लेकिन हम अपनी जमीन देने वाले नहीं.
बुलेट ट्रेन के अलावा मुंबई-बड़ोदरा एक्सप्रेस-वे के लिए भी भू-अधिग्रहण चुनौती है. इसको मुद्दा बनाकर विपक्षी पार्टियां बीजेपी नीत शिवसेना गठबंधन को झटका देने की कोशिश में हैं. पालघर सीट परिसीमन के बाद सुरक्षित घोषित हो चुकी है. इस पर बहुजन विकास अघाड़ी (बीवीए) का 2009 और 2014 में बीजेपी का कब्जा रहा. हालांकि उपचुनाव में बीजेपी ने राजेंद्र गावित को टिकट दिया, जो जीते भी. अब यह सीट गठबंधन के फॉर्मूले के तहत शिवसेना के पास गई है, तो राजेंद्र गावित बीजेपी छोड़ शिवसेना से टिकट पाकर मैदान में हैं. परिणाम कुछ भी हो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट को पालघर ने पलीता दिखा दिया है.
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