पंजाब में 'मंदिर परिक्रमा' का दौर शुरू, हिंदू वोटरों को रिझाने की मुहिम
पंजाब के सियासी समीकरण पर नजर डालें तो हिंदू वोटरों की संख्या 38 फीसदी है. इस बार बीजेपी-शिअद के अलग होने समेत कांग्रेस से अमरिंदर सिंह का किनारा करने से आसन्न विधानसभा चुनाव चतुष्कोणीय प्रतीत हो रहा है.
highlights
- पंजाब में हिंदू मतदाताओं की संख्या 38 फीसदी
- कांग्रेस से खिंचे-खिंचे से हैं इस बार हिंदू वोटर
- बीजेपी और कैप्टन को मिल सकता है फायदा
नई दिल्ली:
पंजाब विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सूबे की राजनीति में हिंदू वोटर महत्वपूर्ण हो गया है. कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस छोड़ नई पार्टी बनाने और भारतीय जनता पार्टी से कृषि कानूनों पर किनारा करने वाले शिरोमणि अकाली दल के इस कदम से राजनीतिक समीकरण बदल से गए हैं. ऐसे में सभी पार्टियां हिंदू मतदाताओं को अपने-अपने पाले में करने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. स्थिति यह आ पहुंची है कि हिंदू वोटरों को रिझाने के लिए मंदिरों की परिक्रमा का जोर बढ़ा है. सूबे के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भगवान कृष्ण बलराम रथ यात्रा में न सिर्फ खुद शिरकत की, बल्कि हिंदू मतदाताओं को लुभाने के लिए गीता-रामायण रिसर्च सेंटर बनाने की घोषणा तक कर दी. इसे कांग्रेस की ओर से डैमेज कंट्रोल भी माना जा सकता है, जिसने कैप्टन अमरिंदर सिंह की हिंदू सीएम बनाने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया था.
साइलेंट वोटर है सूबे की हिंदू आबादी
पंजाब के सियासी समीकरण पर नजर डालें तो हिंदू वोटरों की संख्या 38 फीसदी है. इस बार बीजेपी-शिअद के अलग होने समेत कांग्रेस से अमरिंदर सिंह का किनारा करने से आसन्न विधानसभा चुनाव चतुष्कोणीय प्रतीत हो रहा है. एक समय कांग्रेस को सीधी टक्कर आम आदमी पार्टी से मिलती दिख रही थी, लेकिन उक्त दो घटनाक्रमों ने हिंदू वोटरों में एक सनसनी सी मचा दी है. परंपरागत तौर पर पंजाब की हिंदू आबादी साइलेंट वोटरों में शुमार होती है. ऐसे में राजनीतिक दलों ने उन्हें अपने-अपने पाले में करने की कोशिशें शुरू कर दी है. इसके लिए मंदिर परिक्रमा का दौर शुरू होने से हिंदू मतदाताओं में भी एक किस्म की बेचैनी है. वह अपनी जगह अलग तलाशने के लिए इस बार आसन्न विधानसभा चुनाव में अलग रुख अपना सकता है. कांग्रेस आलाकमान की हिंदू सीएम के प्रति बेरुखी और दलितों की हत्या से समीकरण बदल सकते हैं.
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कट्टरता को तरजीह नहीं देता है हिंदू वोटर
मोटे तौर पर हिंदुओं का ज्यादातर वोट अकाली दल-बीजेपी गठबंधन के मुकाबले कांग्रेस को मिलता रहा है. बीते विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी सरकार बनाती दिख रही थी, क्योंकि हिंदू मतदाताओं में उसके लिए क्रेज था. यह अलग बात है कि साइलेंट वोटर होने के साथ-साथ सूबे का हिंदू वोटर बहुत ज्यादा कट्टर भी नहीं है. ऐसे में उसे जैसे ही लगा कि आम आदमी पार्टी सरकार से कट्टरवादी तत्वों को बढ़त मिल जाएगी, उसने आप से दूरी बना कांग्रेस को वोट कर दिया. इस तरह ऐन मौके आम आदमी पार्टी का खेल बिगड़ गया. यह अलग बात है कि 2022 के विधानसभा चुनाव आते-आते राज्य के स्थायी समीकरण बिगड़ चुके हैं. ढाई दशक पुराना अकाली-बीजेपी गठबंधन टूट गया है. कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अलग हो अलग पार्टी बना चुके हैं. सिद्धू प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके हैं और एक दलित चेहरा चन्नी सीएम के पद पर बैठा है. अकाली दल बीएसपी के साथ चुनाव लड़ेगा. कैप्टन बीजेपी के साथ चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में इन नए राजनीतिक समीकरणों में हिंदू वोटर्स भी अपनी जगह बनाने में लग रहा है.
कांग्रेस हिंदुओं को लुभा जुटी डैमेज कंट्रोल में
इसे समझ उसे रिझाने के लिए सभी पार्टियों में होड़ मच चुकी है. सीएम चन्नी का लुधियाना में रथ यात्रा में शामिल होना और संस्कृत भाषा सीखने समेत गीता का पाठ करने वाला बयान इसी की एक कड़ी है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू जिस तरह बेअदबी के मसले को पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं, उससे हिंदुओं में बेचौनी बढ़ी है. हिंदू मतदाताओं को लग रहा है कि कांग्रेस भी अब कट्टरता की ओर कदम-ताल कर रही है. इसके पहली कैप्टन की हिंदू सीएम पर कांग्रेस आलाकमान ने घोषित तौर पर सिख सीएम की बात कह उसे मर्माहत किया था. सीएम चन्नी हिंदू वोटरों में इस पीड़ा को स्पष्ट महसूस कर रहे हैं. संभवतः इसीलिए वह मंदिर परिक्रमा पर भी जोर दे रहे हैं.
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सभी ने मंदिर परिक्रमा का दौर शुरू किया
बीजेपी से अलग हो जाने के बाद अगर अकाली दल के लिए हिंदू वोटर्स का भरोसा जीतना सबसे बड़ी चुनौती है, तो यही बात भाजपा के पक्ष में जाती है. हिंदुत्वादी सोच के साथ उसके लिए हिंदू वोटरों को अपनी तरफ पूरी तरह से खींचने में ज्यादा मुश्किल नहीं आएगी. अकाली दल को बीजेपी के अलग होने से हिंदू वोटों का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई बीएसपी के साथ आने से दलित वोटों के जरिए हो पाएगी या नहीं इसमें संदेह है. यही वजह है कि अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल भी मंदिर परिक्रमा के तहत मंदिर-मंदिर माथा टेक रहे हैं. आम आदमी पार्टी भी 2017 को नहीं दोहराना चाहेगी. ऐसे में लोक-लुभावनी घोषणाओं के साथ आप भी मंदिर-मंदिर परिक्रमा पर कोई कसर नहीं छोड़ रही है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल तो दिल्लीवासियों को अयोध्या समेत वैष्णो देवी के दर्शन करा रहे हैं. जाहिर तौर पर बीजेपी को हिंदू वोटरों में बढ़त बनाने का अवसर मिल रहा है. इस पर कैप्टन अमरिंदर सिंह की 'राष्ट्रवादी' छवि पंजाब विधानसभा चुनाव परिणामों को रोचक बना सकती है. पंजाब में इस बदलाव को इन घटनाक्रमों से भी समझा जा सकता है...
मंदिर परिक्रमा की कुछ हालिया घटनाएं
- रविवार को लुधियाना में सीएम चन्नी रथ यात्रा में शामिल हुए. उन्होंने पटियाला में 20 एकड़ क्षेत्रफल में भगवत गीता और रामायण रिसर्च सेंटर बनाने की घोषणा की. इसके पहले बीते माह सीएम चन्नी ने केदारनाथ धाम के दर्शन किए. वह जालंधर स्थित प्रतिष्ठित शक्तिपीठ श्री देवी तालाब मंदिर में भी माथा टेकने जा चुके हैं. भगवान परशुराम तपोस्थली को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए दस करोड़ रुपये भी जारी किए. परशुराम की माता रेणुका से जुड़े स्थल के विकास लिए भी उन्होंने 75 लाख रुपये देने की बात कही. यह घोषणा भी की कि महाभारत, रामायण, गीता पर शोध कार्य के लिए पंजाबी यूनिवर्सिटी में एक पीठ का गठन किया जाएगा. यह कहना भी नहीं भूले कि वह संस्कृत भाषा सीखेंगे और फिर महाभारत पर पीएचडी करेंगे.
- शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी मंदिर के दर्शन कर चुके हैं. उन्होंने वादा भी किया कि सरकार बनने पर वह दोबारा दर्शन के लिए आएंगे. वह राजस्थान के सालासर में बालाजी मंदिर भी जा चुके हैं. वह माता अंजनी मंदिर भी गए. जालंधर में श्री देवी तालाब मंदिर भी उन्होंने हाजिरी लगाई और फिर पंजाब के ही राजपुरा में भगवान शिव मंदिर में दर्शन किए. इन सारे मंदिरों में दर्शन करते हुए अपने फोटो उन्होंने खुद सोशल मीडिया पर शेयर भी किए. उनकी पार्टी की तरफ से यह बताया भी गया कि एक दर्जन और मंदिरों में दर्शन करने कार्यक्रम बन रहा है.
- पंजाब के चुनाव में हिस्सा ले रही आम आदमी पार्टी के दिल्ली के सीएम अरविंद कजेरीवाल भी अक्टूबर महीने में जालंधर स्थित देवी तालाब मंदिर गए थे. उन्होंने एक जगराता में भी हिस्सा लिया था. वह अयोध्या भी रामलला के दर्शन करने जा चुके हैं. इसके साथ ही दिल्ली में अयोध्या समेत हिंदुओं के लिए श्रद्धा के केंद्र अन्य मंदिरों के दर्शन के लिए योजना चला रहे हैं. यह सब हिंदू वोटरों को ध्यान में रखते हुए हो रहा है.
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