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supreme court ने RIL केस में सेबी को जारी किया अवमानना का नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) की याचिका पर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को एक अवमानना नोटिस जारी किया है. इसमें अदालत के 5 अगस्त के आदेश का पालन न करने का आरोप लगाया गया है, जिसमे कोर्ट ने बाजार नियामक को कुछ दस्तावेजों का उपलब्ध कराने का आदेश दिया था. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एम.एम. सुंदरेश ने मामले की सुनवाई करते हुए नोटिस जारी करने का आदेश दिया. आरआईएल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश एन साल्वे ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा 5 अगस्त को दिए आदेश के बावजूद प्रतिवादी (सेबी) ने दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया.

Updated on: 11 Nov 2022, 04:15 PM

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) की याचिका पर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) को एक अवमानना नोटिस जारी किया है. इसमें अदालत के 5 अगस्त के आदेश का पालन न करने का आरोप लगाया गया है, जिसमे कोर्ट ने बाजार नियामक को कुछ दस्तावेजों का उपलब्ध कराने का आदेश दिया था. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एम.एम. सुंदरेश ने मामले की सुनवाई करते हुए नोटिस जारी करने का आदेश दिया. आरआईएल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश एन साल्वे ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा 5 अगस्त को दिए आदेश के बावजूद प्रतिवादी (सेबी) ने दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया.

वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पूर्व महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने सेबी का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि सेबी की याचिका अदालत के समक्ष लंबित है, इसलिए वर्तमान कार्यवाही में आगे कोई आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए. पीठ ने अपने आदेश में कहा, हमने समीक्षा याचिका में इस अदालत द्वारा 12 अक्टूबर, 2022 को पारित आदेश को देखा है. एक अपील और या रिट याचिका के स्थगन के साथ-साथ लंबित के साथ बराबरी नहीं की जा सकती है.

इस अदालत द्वारा एक अपील में अंतिम निर्णय लिया गया है. केवल इसलिए कि स्थगन आवेदन याचिका लंबित है, प्रतिवादी द्वारा अपने आप पर रोक लगाने और इस अदालत द्वारा जारी निदेशरें का पालन नहीं करने का आधार नहीं हो सकता. पीठ ने कहा कि ध्यान देने वाली बात है कि जम्मू-कश्मीर राज्य बनाम मो. याकूब खान और एक ऐसे अन्य मामले में जहां एकल न्यायाधीश द्वारा पारित एकतरफा आदेश के खिलाफ रिट याचिका लंबित होने के कारण अवमानना कार्यवाही शुरू की गई थी.

पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 2 दिसंबर को निर्धारित की है. कंपनी ने सेबी से तीन दस्तावेज मांगे थे. इसमें दावा किया गया था कि 1994 और 2000 के बीच अपने स्वयं के शेयरों के अधिग्रहण में कथित अनियमितताओं से संबंधित एक मामले में शुरू किए गए आपराधिक मुकदमे से उसे और उसके प्रमोटरों को दोषमुक्त कर दिया जाएगा. 5 अगस्त को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अगुवाई वाली एक पीठ ने कहा था, सेबी का ²ष्टिकोण, दस्तावेजों का खुलासा करने में विफल होने पर, पारदर्शिता और निष्पक्ष सुनवाई की चिंताओं को भी उठाता है. अस्पष्टता केवल पूर्वाग्रह और पक्षपात का प्रचार करती है.

शीर्ष अदालत ने कहा था कि, सेबी को निष्पक्षता दिखानी चाहिए और आरआईएल द्वारा मांगे गए दस्तावेजों को प्रस्तुत करना चाहिए और सेबी का कर्तव्य है कि वह कार्यवाही करते समय या पार्टियों के खिलाफ कोई कार्रवाई शुरू करते हुए निष्पक्ष रूप से कार्य करे. सेबी द्वारा दस्तावेजो को साझा न करने पर आरआईएल ने अवमानना याचिका दायर की. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी.एन. श्रीकृष्णा और आईसीएआई के पूर्व अध्यक्ष वाई.एच. मालेगाम ने अनियमितता की जांच की थी.

कंपनी ने दावा किया कि, सेबी इन दस्तावेजों को देना नहीं चाहती. उसने सेबी को यह कहते हुए नोटिस भी भेजा था कि अगर दस्तावेज 18 अगस्त तक प्राप्त नहीं हुए, तो माना जाएगा कि सेबी शीर्ष अदालत के आदेश का पालन नहीं करना चाहती. 2002 में, चार्टर्ड एकाउंटेंट एस. गुरुमूर्ति ने सेबी में एक शिकायत दर्ज की, जिसमें आरआईएल, उसकी सहयोगी कंपनियों और मुकेश अंबानी और उनकी पत्नी नीता,अनिल अंबानी और उनकी पत्नी टीना और 98 अन्य सहित उनके निदेशकों/प्रवर्तकों द्वारा अनियमितताओं का आरोप लगाया गया.

शिकायत में 1994 में गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर के दो तरजीही प्लेसमेंट के मुद्दे का हवाला दिया गया था. सेबी ने आरोप लगाया था कि रिलायंस पेट्रोलियम के साथ आरआईएल ने कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 77 और 77 ए के उल्लंघन में अपने स्वयं के शेयरों के अधिग्रहण को वित्त पोषित किया था.