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क्या है MCLR का लोन में इस्तेमाल, RBI का क्या है रोल? यहां समझिए आसान शब्दों में

What Is MCLR Rate: यह रेट (MCLR) कमर्शियल बैंक्स द्वारा ग्राहकों को लोन रेट निर्धारित करने में इस्तेमाल किया जाता है. इसके बढ़ने पर लोन महंगा हो जाता है. भारत में नोटबंदी के बाद इसे (MCLR) लागू कर दिया गया था.

Updated on: 20 Apr 2022, 10:54 AM

highlights

  • आरबीआई ने रेट साल 2016 में शुरू किया था
  • इससे पहले बैंक आधार रेट को इस्तेमाल करते थे

नई दिल्ली:

What Is MCLR Rate: बैंकिग टर्म्स में एमसीएलआर (MCLR) यानि मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट होता है. इस रेट (MCLR) को भारतीय रिजर्व बैंक ( Reserve Bank Of India) ने शुरू किया है. इस रेट के तय हो जाने पर इससे कम रेट पर कोई भी बैंक ग्राहकों को लोन नहीं दे सकता है. अक्सर इससे ज्यादा रेट (MCLR)  पर ही बैंक लोन उपलब्ध करवाता है. यह रेट (MCLR) कमर्शियल बैंक्स द्वारा ग्राहकों को लोन रेट निर्धारित करने में इस्तेमाल किया जाता है. इसके बढ़ने पर लोन महंगा हो जाता है. भारत में नोटबंदी के बाद इसे(MCLR) लागू कर दिया गया था. बैंकों से लोन रेट निर्धारित करने के लिए इस रेट की शुरूआत आरबीआई ( Reserve Bank Of India)  ने साल 2016 में की थी. 

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एमसीएलआर (marginal cost of lending rate) ही आधार दर
किसी भी बैंक से लोन लेने पर बैंक आधार दर से कम दर पर लोन नहीं देता है. आधार दर ही न्यूनतम दर होती है जिससे कम पर बैंक लोन नहीं उपलब्ध करवा सकता. 2016 से पहले बैंक आधार दर को ही इस्तेमाल में लाते थे. लेकिन साल 2016 के बाद से एमसीएलआर (MCLR)  ही आधार दर के रूप में इस्तेमाल की जाती है.

बैंकों को इस रेट (MCLR) की जरूरत क्यूं पड़ती है
यह जानना आपके लिए जरूरी है कि किसी भी बैंक द्वारा ग्राहक को दिए लोन के पैसे पर भी बैंक को लागत उठानी पड़ती है. यही नहीं लोन का पैसा वसूलने पर भी बैंक को लागत का बोझ उठाना पड़ता है. सभी लागतों को जोड़ने के बाद एक मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड तैयार किया जाता है. इसी तरह हर 100 रुपये को रखने, जारी करने, वसूलने पर बैंक द्वारा उठाई जाने वाली कुल लागत को बैंक एमसीएलआर (MCLR)  के रूप में पेश करता है. यह (MCLR) प्रतिशत के रूप में पेश किया जाता है.