क्या लालू के लाल, मोदी-नीतीश-पासवान की तिकड़ी को दे पाएंगे मात ?
बिहार एनडीए में सीट शेयरिंग का जो फॉर्मूला तय हुई है उसके हिसाब से राज्य के 40 लोकसभा सीटों में से बीजेपी और जेडीयू जहां 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी वहीं पासवान की पार्टी एलजेपी 6 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़ी करेगी
नई दिल्ली:
बिहार एनडीए में सीट बंटवारे के बाद भारतीय चुनाव के मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोकजन शक्ति पार्टी के मुखिया राम विलास पासवान ने बीजेपी और नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के साथ एनडीए में ही बने रहने का फैसला किया है. राम विलास पासवान इस देश के कुछ वरिष्ठ राजनेताओं में से एक हैं और करीब 50 सालों के अपने राजनीतिक जीवन में उन्हें देश में राजनीतिक हवा के हिसाब से फैसला लेने के लिए जाना जाता है. बिहार एनडीए में सीट शेयरिंग का जो फॉर्मूला तय हुआ है उसके हिसाब से राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से बीजेपी और जेडीयू जहां 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी वहीं पासवान की पार्टी एलजेपी 6 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेगी. वहीं राम विलास पासवान को एनडीए की तरफ से राज्यसभा भेजा जाएगा. सूत्रों के मुताबिक उन्हें असम से राज्यसभा भेजा जा सकता है. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में एलजेपी ने 7 में से 6 सीटों हाजीपुर, जमुई, मुंगरे, समस्तीपुर, वैशाली और खगड़िया सीट पर जीत दर्ज की थी.
एनडीए में सीट शेयरिंग के ऐलान के बाद भी बिहार में सबसे बड़ी विपक्षी दल आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव को उम्मीद है कि राम विलास पासवान महागठबंधन में शामिल होंगे. आरजेडी के इस महागठबंधन में पहले से ही कांग्रेस, जीतन राम मांझी की पार्टी हम, एनडीए छोड़कर जा चुके कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी, शरद यादव की पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल, निषाद जाति के नेता मुकेश शाहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी और वामपंथी पार्टी शामिल हैं. महागठबंधन में शामिल सभी पार्टियों अपने लिए सम्मानजनक सीटों की मांग कर रही हैं जो निश्चित तौर पर लालू यादव की गैरमौजूदगी में तेजस्वी यादव की मुश्किलें बढाएंगी.
कुछ रिपोर्ट के मुताबिक कुशवाहा की पार्टी महागठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए कम से कम राज्य में पांच सीटों की मांग कर रही है जबकि 1 सीट उन्हें झारखंड में भी चाहिए. वहीं शरद यादव की पार्टी और जीतन राम मांझी की पार्टी भी 3-3 सीटों की मांग कर रही है. सूत्रों के मुताबिक महागठबंधन में शामिल कुशवाहा, मांझी और शरद यादव तीनों ही काराकट, गया और मधेपुरा सीट की मांग कर रहे हैं. वहीं बीते लोकसभा चुनाव में 12 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस इस बार भी इतने ही सीटों पर चुनाव लड़ने पर अड़ी हुई है. ऐसी परस्थिति में अब आरजेडी को कम से कम एक सीट छोड़नी पड़ेगी जिस पर निषाद समुदाय के नेता और विकासशील इंसान पार्टी के मुखिया चुनाव लड़ेंगे. जबकि सीपीएम, सीपीआई, सीपीआईएमएल अगर महागठबंधन में शामिल होती है तो उन्हें भी सीटों में हिस्सेदारी होगी.
क्या महागठबंधन एनडीए को दे पाएगा मात
अब यहां सवाल उठ रहा है कि क्या बिहार में जो महागठबंधन का यह नया रूप बन रहा है वो बिहार में एनडीए को चुनौती दे पाएगा? अगर हम 2015 में बिहार में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को ध्यान से देखें तो आकंड़े महागठबंधन के खिलाफ जा रहा है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को राज्यभर में 16.8 फीसदी वोट मिले थे जबकि आरजेडी को उससे ज्यादा 18.4 फीसीद वोट. वहीं कांग्रेस को 6.7 फीसदी वोट मिले थे. अगर हम उस वक्त महागठबंधन में शामिल इन तीनों दलों के मिले वोट प्रतिशत को जोड़ दें तो यह लगभग 42 फीसदी होता है. जबकि उसवक्त के एनडीए में शामिल बीजेपी को 24.4 फीसदी वोट, एलजेपी को 4.8 फीसदी, आरएलएसपी को 2.6 फीसदी और मांझी की पार्टी हम को 2.3 फीसदी वोट मिले थे. अगर उस वक्त के एनडीए में रहे इन सभी दलों के वोट प्रतिशत को जोड़ दिया जाए तो यह 34 फीसदी के आसपास होता है. शायद यही वजह है कि विधानसभा चुनाव में एनडीए को महागठबंधन के हाथों हार का सामना करना पड़ा था.
अब जब एनडीए और महागठबंधन दोनों में ही राजनीतिक दलों की स्थिति बदल गई है और तब हम 2015 के ही इनके वोट शेयर को देखें तो यह महागठबंधन से कहीं ज्यादा होता है. अब के एनडीए जिसमें बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी शामिल हैं उसका कुल वोट शेयर 46 फीसदी हो जाता है जबकि महागठबंधन में शामिल दलों आरजेडी, कांग्रेस, हम और आरएलएसपी के वोट शेयर को जोड़े तो यह घटकर 30 फीसदी हो होता है. जबकि 2015 के विधानसभा चुनाव में तीनों लेफ्ट पार्टी का बिहार में कुल वोट शेयर सिर्फ 3.5 फीसदी था. अब अगर लेफ्ट पार्टी के वोट शेयर को भी महागठबंधन में जोड़ दे तो भी यह 33.5 फीसदी होता है.
बात अगर लोकसभा 2014 की करें तो बिहार में बीजेपी को 29.40 फीसदी वोट मिले थे जबकि उस चुनाव में अकेले मैदान में उतरी नीतीश की पार्टी जेडीयू को 15.80 फीसदी वोट मिले थे वहीं एलजेपी को 6.40 फीसदी और आरएलएसपी को 3 फीसदी वोट मिले थे. वहीं आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन को 28.50 फीसदी वोट मिले थे जिसमें 20.10 फीसदी वोट आरजेडी को और 8.40 फीसदी वोट कांग्रेस को मिले थे. अब अगर हम वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए इन वोट शेयर को जोड़ दे तो जो परिणाम निकलता है वो एनडीए के पक्ष में जाता हुआ दिखता है. एनडीए के तीन दल बीजेपी, जेडीयू और एलेजपी का कुल वोट शेयर करीब 52 फीसदी होता है जबकि महागठबंधन के पास सिर्फ 31.50 वोट शेयर ही नजर आता है, जीतनराम मांझी और एलजेडी का उस चुनाव में कोई अस्तित्व ही नहीं था.
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