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त्रिपुरा चुनाव: क्या सीपीएम की बादशाहत को चुनौती दे पाएगी बीजेपी, कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर

त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में इस बार लड़ाई पिछले 25 साल से सत्ता पर काबिज माकपा और देश के 19 राज्यों में सत्ता संभाल चुकी बीजेपी के बीच सिमटकर रह गई है।

Updated on: 17 Feb 2018, 11:57 PM

highlights

  • चुनावों में कई सीटें ऐसी हैं, जहां माकपा का एकछत्र राज रहा है
  • इस बार लड़ाई पिछले 25 साल से सत्ता पर काबिज माकपा और देश के 19 राज्यों में सत्ता संभाल चुकी बीजेपी के बीच
  • पिछले सभी विधानमसभा चुनाव कांग्रेस बनाम माकपा के बीच रहे हैं

नई दिल्ली:

उत्तर-पूर्व के तीन राज्यों मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को काफी उम्मीदें हैं। रविवार को सबसे पहले आदिवासी बाहुल्य त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे।

साल 1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने वाले त्रिपुरा में हर सीट पर मुकाबला एक तरफा रहा है, लेकिन कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां जनता ने मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) और कांग्रेस दोनों को बारी-बारी से जिताया है। इन सीटों में से एक विशालगढ़ विधानसभा सीट पर मुकाबला इस बार त्रिकोणीय है।

त्रिपुरा विधानसभा सीट संख्या-16 यानी विशालगढ़ पश्चिमी त्रिपुरा लोकसभा सीट का हिस्सा है। विशालगढ़ निर्वाचन क्षेत्र के कुल मतदाताओं की संख्या 45,530 है। इस मतदाता संख्या में 23,239 पुरुष मतादाता और 22,290 महिला मतदाता शामिल हैं। साथ ही इस चुनाव में पहली बार शामिल किए गए समलैंगिक वर्ग का एक मतदाता भी अपने मताधिकार का प्रयोग करेगा।

विशालगढ़ विधानसभा सीट पर किसी एक पार्टी का लगातार कब्जा कभी नहीं रहा। 1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के समीर रंजन बर्मन ने सीपीएम के बाबुल सेनगुप्ता को मामूली अंतर से हराया था।

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उसके बाद 1977 और 1983 के चुनावों में समीर रंजन को हार का सामना करना पड़ा था लेकिन समीर ने राज्य में सीपीएम की लहर और सत्ता के बावजूद 1988, 1993, 1998 और 2003 में लगातार चुनाव जीतकर कांग्रेस को बड़ी राहत दी। लेकिन सीपीएम के भानूलाल साहा ने 2008 में समीर के विजयरथ पर लगाम लगाकर उन्हें कुर्सी से उतार दिया और 2013 में भी यही सिलसिला जारी रहा।

समीर रंजन वर्मन त्रिपुरा के 1992 से 1993 यानि के एक साल तक मुख्यमंत्री रहे। उनके बेटे सुदीप रॉय बर्मन पिछले साल कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी की टिकट पर अगरतला से चुनाव लड़ रहे हैं। समीर 1993 से 1998 तक विपक्ष के नेता भी रहे थे और वह पूर्व त्रिपुरा कांग्रेस राज्य इकाई के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे थे।

कांग्रेस ने पिछले साल समीर को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण उन्हें छह साल के निलंबित कर दिया था।

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दिग्गज नेता समीर रंजन वर्मन को पार्टी से बाहर करने के बाद कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के लिए युवा नेता जयदुल हुसैन को चुनाव मैदान में उतारा है। जयदुल हुसैन को हाल ही में त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस समिति के अल्पसंख्यक विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जिसके बाद पार्टी ने उनपर भरोसा जताकर उन्हें विशालगढ़ पर खड़ा किया है।

वहीं सीपीएम ने एक बार फिर से वर्तमान विधायक और पार्टी के कद्दावर नेता भानुलाल साहा पर दांव खेला है। भानू लाल सातवीं बार चुनाव मैदान में है और लगातार पिछले दो साल से विधायक हैं।

भानू लाल ने 1983 में पहली बार समीर रंजन वर्मन के खिलाफ लड़ा था और जीत दर्ज की थी। जिसके बाद उन्हें 1988, 1993 और 2003 में समीर के खिलाफ शिकस्त झेलनी पड़ी थी। हालांकि पिछले दो चुनाव में भानू लाल ने विशालगढ़ पर अपना कब्जा बरकरार रखा है।

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वर्ष 1967 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीएससी और 1974 में बीएड की परीक्षा पास करने वाले भानूलाल साहा सीपीएम के कद्दावर नेताओं में से एक हैं। भानुलाल माणिक सरकार में वित्त, खाद्य, सूचना एवं सांस्कृतिक और सिविल सप्लाई व कंज्यूमर मामलों का मंत्रालय संभाल रहे हैं।

इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्ष की भूमिका में उभरी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने निताई चौधरी को मैदान में उतारा है। पेशे से वकील निताई चौधरी पार्टी के आमंत्रित सदस्य हैं।

इसके अलावा अमरा बंगाली ने परिमल सरकार को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।

वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ सीपीएम ने 49 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस केवल 10 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर थी।

इस बार चुनाव मैदान में कुल 297 प्रत्याशी हैं, जिनमें बीजेपी के 51, कांग्रेस के 60 और सीपीएम ने 57 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारें है हालांकि सीपीएम ने तीन सीटें अपने वाम मोर्चा की सदस्य पार्टियों की दी है।

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प्रदेश के 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए 18 फरवरी को मतदान होना है और मतों की गिनती तीन मार्च को होगी।

कांग्रेस के लिए सीट बचाने की चुनौती

त्रिपुरा में पिछले सभी विधानमसभा चुनाव कांग्रेस बनाम सीपीएम के बीच रहे हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव 2018 में मुकाबला बीजेपी और सीपीएम के बीच दिखाई दे रहा है। इसके पीछे की वजह कांग्रेस में लगातार टूट है।

वर्तमान में 60 सदस्यीय सभा में कांग्रेस के केवल दो विधायक है, जिसमें से एक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बिराजीत सिन्हा हैं जो कैलाशहर विधानसभा क्षेत्र से लगातार सातवीं बार चुनाव मैदान में हैं।

त्रिपुरा विधानसभा क्षेत्र संख्या-53 कैलाशहर निवार्चन क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 46,054 है। इस बार चुनाव में कुल 23,290 पुरुष मतदाता और 22,764 महिला मतदाता अपने मतों का प्रयोग कर राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की किस्मत तय करेंगे।

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सन् 1972 से अब तक हुए नौ विधानसभा चुनावों में से केवल दो बार ही सीपीएम यहां जीत हासिल करने में कामयाब हुई है, जबकि कांग्रेस ने यहां सात बार जीत हासिल की है। अकेले पांच बार कांग्रेस की राज्य इकाई के अध्यक्ष बिराजीत सिन्हा का दबदबा रहा है।

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष सिन्हा ने इस विधानसभा चुनाव में भी कैलाशहर निवार्चन क्षेत्र से लगातार सातवीं बार नामांकन दाखिल किया है और चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं।

ऋषियामुख पर सीपीएम को चुनौती देना मुश्किल

त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में इस बार लड़ाई पिछले 25 साल से सत्ता पर काबिज सीपीएम और देश के 19 राज्यों में सत्ता संभाल चुकी बीजेपी के बीच सिमटकर रह गई है।

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चुनावों में कई सीटें ऐसी हैं, जहां सीपीएम का एकछत्र राज रहा है। ऋषियामुख विधानसभा क्षेत्र उन चुनिंदा सीटों में से एक है, जहां केवल और केवल सीपीएम के बादल चौधरी का कब्जा है।

त्रिपुरा विधानसभा सीट संख्या-37 ऋषियामुख। त्रिपुरा पूर्व लोकसभा क्षेत्र के हिस्से ऋषियामुख विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 43,131 है, जिसमें से 22,335 पुरुष और 20,796 महिला मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे।

ऋषियामुख विधानसभा सीट पर अब तक हुए कुल नौ विधानसभा चुनावों में से अगर 1972 और 1993 के विधनासभा चुनावों को छोड़ दें, तो इस सीट पर सीपीएम के बादल चौधरी ने सात चुनावों में जीत दर्ज की है।

बादल चौधरी ने 1977, 1983, 1988, 1998, 2003, 2008 और 2013 में हुए विधानसभा चुनाव जीतकर ऋषियामुख पर लाल पताका फहराई हुई है।

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माणिक सरकार में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, राजस्व और लोक निर्माण मंत्री बादल चौधरी राज्य के कद्दावर सीपीएम नेताओं में से एक हैं। 1967 में पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत अगरतला के एनएस विद्यानिकेतन से 12वीं पास करने वाले बादल चौधरी क्षेत्र में अपनी साफ सुथरी छवि के लिए जाने जाते हैं। बतौर 35 साल के लंबे कार्यकाल में उनके ऊपर कोई भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं है।

सीपीएम ने अपने दिग्गज और अनुभवी नेता बादल पर एक बार फिर से दांव आजमाया है और वह रिकॉर्ड 10वीं बार चुनाव मैदान में हैं।

वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी ने बादल के किले में सेंध लगाने के लिए अपने युवा नेता आशीष वैद्य को उतारा है। आशीष ऋषियामुख में बीजेपी प्रदेश इकाई के मंडल अध्यक्ष हैं।

वहीं कांग्रेस ने अपने अनुभवी नेता दिलीप कुमार चौधरी पर फिर से भरोसा जताया है। दिलीप ने 1993 में सीपीएम के बादल चौधरी को शिकस्त दी थी, लेकिन अगले तीन चुनाव 1998, 2003 और 2008 में उन्हें बादल के हाथों शिकस्ता का सामना करना पड़ा।

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इसके बाद पार्टी ने 2013 में दिलीप का टिकट काटकर सुशांकर भौमिक को खड़ा किया, लेकिन नतीजे वहीं रहे और बादल विजयी रहे।

राज्य में पार्टी की खस्ता हालत को देखते हुए कांग्रेस ने एक बार फिर से दिलीप पर भरोसा दिखाया है और उन्हें बादल के खिलाफ खड़ा किया है।

त्रिपुरा में युवाओं को मुफ्त स्मार्टफोन देने का बीजेपी का वादा

भारतीय जनता पार्टी ने त्रिपुरा में युवाओं को मुफ्त स्मार्टफोन देने और न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर रोजाना 340 रुपये करने का वादा किया है। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने रविवार को अपना चुनावी घोषणा पत्र 'विजन डॉक्यूमेंट' जारी किया जिसमें यह वादे किए गए हैं।

चुनावी घोषणापत्र 'विजन डॉक्यूमेंट' जारी करने के बाद मीडिया से बातचीत में जेटली ने कहा, 'मोदी सरकार त्रिपुरा समेत सभी प्रदेशों का पूर्ण विकास चाहती है। विकास की राजनीति को अवश्य आगे बढ़ाना चाहिए। केंद्र सरकार हमेशा वित्त आयोग की सिफारिशों, निर्धारित नियमों व मानकों और तय प्रक्रिया के आधार पर कार्य करती है।'

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