छठी बार श्रीलंका के पीएम बने थे विक्रमसिंघे, इस बार बहुत बेआबरू होकर निकले
अपने आलोचकों को भी तार्किक ढंग से समझाने वाले रानिल विक्रमसिंघे ने दो हफ्ते पहले कहा था कि दुनिया हमारी तभी मदद करेगी जब वह हमें गहन उत्साह और समर्पण के साथ संकट से उबरने के प्रयास करते देखेगी.
highlights
- महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद 12 मई को छटी बार पीएम बने रानिल
- श्रीलंका को ऐतिहासिक संकट से उबारने की लगातार देते रहे उम्मीद
- अब श्रीलंका के सामने स्थायित्व देने वाली सरकार का खड़ा है यक्ष प्रश्न
कोलंबो:
लगभग दो महीने पहले रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) ने जब प्रधानमंत्री का पद संभाला था, तो उनके सामने सात दशकों के ऐतिहासिक आर्थिक संकट से श्रीलंका (Sri Lanka) को उबारने का लक्ष्य था. उनके कंधों पर अपेक्षाओं और उम्मीदों का भारी बोझ था. उस वक्त इस 73 वर्षीय नेता ने स्वीकार किया था उनका द्विपीय देश अपने सबसे कठिन और बुरे दौर से गुजर रहा है. अपने दशकों पुराने राजनीतिक कैरियर में विक्रमसिंघे छठी बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री (PM) बने थे. अपने पूर्ववर्ती महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के तुरंत बाद 12 मई को पद की शपथ लेने के वक्त विक्रमसिंघे ने श्रीलंका को इस ऐतिहासिक संकट से निकालने के लिए एक कार्ययोजना का सुझाव दिया था.
श्रीलंका वासियों को लगातार देते रहे उम्मीद
पद संभालने के आठ हफ्तों बाद तक वह सक्रियता से सारी बातें साझा करते रहे कि उनकी सरकार इस संकट से निकलने के लिए क्या-कुछ कर रही है. 16 मई को उन्होंने अपनी एक ट्वीट में लिखा, 'बहुत कुछ करना-छोड़ना बाकी है. निश्चिंत रहें सभी मसलों को बगैर समय गंवाए देखा-समझा जाएगा. बीते 48 घंटों में इस दिशा में हमने सक्रिय प्रयास शुरू कर दिए हैं.' इस कड़ी में कर्ज की रिस्ट्रक्चरिंग, संविधान संशोधन समेत भारत, जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों से चल रही बातचीत और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का दरवाजा खटखटाने तक की सारी कवायदों से वह लगातार देशवासियों की उम्मीद बढ़ाते रहे कि सब कुछ ठीक हो जाएगा.
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दो हफ्ते पहले तक रहे आशावान
अपने आलोचकों को भी तार्किक ढंग से समझाने वाले रानिल विक्रमसिंघे ने दो हफ्ते पहले कहा था कि दुनिया हमारी तभी मदद करेगी जब वह हमें गहन उत्साह और समर्पण के साथ संकट से उबरने के प्रयास करते देखेगी. यह चुनाव हमारा होगा कि हम दुनिया को क्या दिखाना चाहते हैं. श्रीलंका अपने पैरों पर फिर से खड़ा होने का आत्मविश्वास रखता है या फिर अपने मतभेद और आरोप-प्रत्यारोप में ही उलझा रहता है. यह अलग बात है कि शनिवार को श्रीलंका एक बार फिर देशव्यापी प्रदर्शन का गवाह बना. राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के आवास पर प्रदर्शनकारियों ने कब्जा कर लिया, जिसके बाद ऐसी मीडिया रिपोर्ट भी सामने आईं कि वह देश छोड़ कर भाग खड़े हुए हैं.
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आने वाले दिनों की कोई सुनहरी तस्वीर नहीं
इस घटना के कुछ घंटों बाद ही रानिल विक्रमसिंघे ने नई सरकार के गठन के बाद पद छोड़ने की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा, 'आवाम की सुरक्षा और सरकार काम करती रहे इसके लिए पार्टी नेताओं से सर्वदलीय सरकार के गठन के लिए सुझाव मांगता हूं'. इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की घोषणा भी कर दी. आवाम के साथ खड़ा रहने और उन्हें लगातार आश्वस्त करने के बावजूद गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने उनके निजी घर को आग के हवाले कर दिया. इसके कुछ देर बाद राष्ट्रपति राजपक्षे ने भी 13 जुलाई को इस्तीफा देने की घोषणा कर दी. हालांकि इन तमाम घटनाक्रम के बावजूद यह साफ नहीं है कि अरबों के कर्ज में डूबे श्रीलंका में कोई स्थायित्व वाली सरकार आकार ले सकेगी, जो देश को फिलवक्त मुंह बाए खड़ी तमाम चुनौतियों से भी निजात दिला सके.
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