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अमेरिका के इशारे पर बाजवा लेगा इमरान खान की 'बलि', जानें कैसे

जिस पाक आर्मी की मदद से इमरान खान पाकिस्तान की सत्ता के पिच पर उतरे और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जा बैठे उसी पाक आर्मी ने अमेरिका के एक इशारे पर इमरान को बलि का बकरा बना दिया है.

Updated on: 02 Apr 2022, 11:29 PM

नई दिल्ली:

जिस पाक आर्मी की मदद से इमरान खान पाकिस्तान की सत्ता के पिच पर उतरे और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जा बैठे उसी पाक आर्मी ने अमेरिका के एक इशारे पर इमरान को बलि का बकरा बना दिया है. जवाब में इमरान लेटर बम फोड़ना चाहते थे लेकिन उस लेटर बम का फ्यूज भी बाजवा ने निकाल दिया. इमरान की प्रेस कांफ्रेंस से ठीक पहले बाजवा उनके घर पहुंचे और ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट का हवाला देकर सलाखों के पीछे जाने का एहसास भी करा दिया. इमरान अपनी सत्ता को गिराने के पीछे अमेरिकी साजिश का खुलासा लेटर बम से करना चाहते थे, लेकिन बाजवा के साथ मीटिंग के बाद उन्हें अपनी प्रेस कांफ्रेंस तक कैंसिल करनी पड़ी.

अफगानिस्तान से अमेरिका की विदाई से पहले ही इमरान खान के नेतृत्व वाली पाक सरकार ने रूस और चीन से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कर दी थीं. चीन और रूस से बढ़ती पाकिस्तान की नजदीकियां अमेरिका की आंखों में खलने लगीं. अमेरिका ने इस बाबत अपनी नाराजगी भी जाहिर करनी शुरू की, लेकिन इमरान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा, नियाजी को लगा कि वह रूस और चीन के दम पर नया पाकिस्तान बनाएंगे और यह भूल गए कि सत्ता की असल चाभी तो सेना के पास है, और पाक सेना की चाभी अमेरिका के पास.

इमरान खान से खार खाए अमेरिका ने इमरान को चलता करने की सुपारी बाजवा को दे दी और यहीं से शुरू हुआ राजनीति के पिच पर नियाजी को बोल्ड करने का असल खेल. दरअसल पाकिस्तान की सैन्य और आर्थिक निर्भरता अमेरिका पर इतनी ज्यादा है कि उसे चीन और रूस चाहकर भी रिप्लेस नहीं कर सकते. नियाजी की इसी भूल को अब बाजवा सुधारना चाहते हैं.

पाकिस्तान में सेना के वर्चस्व के मायने सिर्फ सैन्य ताकत ही नहीं बल्कि आर्थिक ताकत भी है. पाक आर्मी देश के दूसरे सबसे बड़े बिजनेस ग्रुप को चलाती है, जिसे फौजी फाउंडेशन के नाम से जाना जाता है. पाकिस्तान की आर्थिक रीढ़ संभाल रहे लगभग 50 बिजनेस हाउस में सेना का सीधा दखल है और ऑन रिकॉर्ड यह लगभग डेढ़ लाख करोड़ से ज्यादा है.

इतना ही नहीं बल्कि इन बिजनेस हाउस का सीधा कनेक्शन भी अमेरिका से है. पाक आर्मी के रिटायर्ड अधिकारी हो या फिर वर्तमान उनका भी निवेश और अकूत संपत्ति के ठिकाने भी अमेरिका में ही है. वहीं स्विस बैंक खातों की बात करे तो पाक आर्मी के 25 अफसरों के लगभग 80 हजार करोड़ स्विस बैंक के खातों में जमा है, जिसमें बताया जाता है कि पूर्व आर्मी चीफ जनरल अख्तर अब्दुल रहमान के 15 हजार करोड़ हैं.

पाक आर्मी को इस बात का भी डर हमेशा रहता है कि FATF के सेंक्शन हो यह फिर नाराजगी में अमेरिका कोई सेंक्शन लगाए उसका सीधा नुकसान राजनीतिक कम और आर्थिक कहीं ज्यादा होगा और इसका सीधा असर पाक आर्मी पर ही होना है.

इस रिकॉर्ड के जरिए समझा जा सकता है कि किस तरह से पाक आर्मी की गर्दन अमेरिका के हाथों में है और उन्हीं हाथों से अमेरिका पाक में अपनी सरपरस्ती की सत्ता को संचालित करता है. नियाजी चाइनीज मॉडल वाली सत्ता का सिंहासन बस एक्सपायरी के करीब आ खड़ा हुआ है. एक्सपायरी डेट को बढ़ाने के लिए नियाजी यानी इमरान हर तरह की डील के लिए अब तैयार हैं, लेकिन सवाल है कि क्या अमेरिका इस डील को स्वीकार करेगा? क्या बाजवा इसमें कोई मदद कर पाएंगे या फिर अब काम तमाम ही समझिए.

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पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का भी यही हाल है, इमरान को लगा कि वह रूस और चीन का सहारा लेकर नया पाकिस्तान बनाएंगे, लेकिन यह भूल गए कि सत्ता की असल चाभी तो पाकिस्तानी सेना के पास है और पाक सेना का रिमोट अमेरिका के पास.