जासूसी पोत के हंबनटोटा दौरे पर अड़ा चीन, भारत ने भी श्रीलंका पर दबाव बढ़ाया
कोलंबो के युआंग वैंग-5 का दौरा टालने के आग्रह पर श्रीलंका (Sri Lanka) में तैनात चीनी राजदूत की झेनहोंग ने राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) से मुलाकात की, जिसमें उन्होंने बीजिंग से राय-मशविरा के बाद ही स्थिति स्पष्ट करने की बात कही.
highlights
- कोलंबो में चीनी राजदूत मिले रानिल विक्रमसिंघे से, नहीं किया ड्रैगन का रुख स्पष्ट
- भारत की आपत्ति पर श्रीलंका ने जासूस पोत का दौरा टालने का किया था आग्रह
- 2014 में भी श्रीलंका ने परमाणु क्षमता से लैस चीनी पनडुब्बी को दी थी अनुमति
कोलंबो:
अड़ियल और आक्रामक रवैये वाली आदत से मजबूर ड्रैगन ने श्रीलंका के हंबनटोटा (Hambantota) बंदरगाह पर जासूसी पोत युआंग वैंग-5 (Yuan Wang 5) के दौरे को टालने पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया है. भारत (India) ने चीनी जासूसी पोत के हंबनटोटा पर लंगर डालने को अपने सुरक्षा (Security) कारणों से जोड़ कोलंबो से कड़ी आपत्ति दर्ज कराई थी. इस आपत्ति के बाद दबाव में आई रानिल विक्रमसिंघे सरकार ने चीनी दूतावास से अगली बातचीत तक जासूसी पोत का दौरा टालने का आग्रह किया था. बताते हैं कि कोलंबो के युआंग वैंग-5 का दौरा टालने के आग्रह पर श्रीलंका (Sri Lanka) में तैनात चीनी राजदूत की झेनहोंग ने राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे (Ranil Wickremesinghe) से मुलाकात की, जिसमें उन्होंने बीजिंग से राय-मशविरा के बाद ही स्थिति स्पष्ट करने की बात कही. जाहिर है ड्रैगन आसानी से जासूसी पोत का दौरा टालने वाला नहीं है. यह घटनाक्रम देख भारत ने भी कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है.
गोटाबाया ने कोलंबो से भागने से पहले दी थी ड्रैगन को अनुमति
गौरतलब है कि गोटाबाया राजपक्षे ने श्रीलंका से भागने से पहले 12 जुलाई को चीनी जासूसी पोत युआंग वैंग-5 को दक्षिणी श्रीलंका में स्थित हंबनटोटा बंदरगाह पर 11 से 17 अगस्त तक रुकने की इजाजत दी थी. बीजिंग ने ईंधन भरवाने और अपने क्रू को आराम देने की बात कह हंबनटोटा पर लंगर डालने की बात कही थी. चीनी जासूसी पोत को लंगर डालने की अनुमति देते वक्त राजपक्षे सरकार ने भारत को इसकी जानकारी भी नहीं दी. पता लगने पर भारत ने सुरक्षा कारणों का हवाला देकर हंबनटोटा में चीनी जासूसी पोत के रुकने पर कड़ी आपत्ति जाहिर की. ऐतिहासिक मंदी के दौर में भारत की मदद की आस लगए बैठे कोलंबो के विदेश मंत्रालय ने इसके बाद कोलंबो दूतावास से मौखिक आग्रह में जासूसी पोत का दौरा टालने का आग्रह किया था.
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श्रीलंका सरकार भारत-चीन रुख से दबाव में
अब कोलंबो में चीनी राजदूत के रुख से साफ है कि ड्रैगन इस मसले पर झुकने को तैयार नहीं है. एक-दो दिन पहले तक चीन का युआंग वैंग-5 जासूसी पोत ताइवान स्ट्रेट में था, जहां से अब वह इंडोनेशिया के पास तक आ पहुंचा है. जाहिर है युआंग वैंग-5 रानिल विक्रमसिंघ सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है. श्रीलंका में कई विपक्षी नेता तक इसके हंबनटोटा बंदरगाह पर लंगर डालने देने के खिलाफ हैं. उनका कहना है कि कोलंबो ने भारत सरकार को लगातार आश्वस्त किया है कि उसकी आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनने वाली किसी भी गतिविधि को श्रीलंका अपने क्षेत्र से नहीं होने देगा. ऐसे में अब जब चीनी जासूसी पोत हंबनटोटा में लंगर डाल रहा है, तो यह भारत की सुरक्षा के लिए खतरे की ही बात है.
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जयशंकर ने भी चिंता जताई थी
गौरतलब है एशियान बैठक के दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने श्रीलंकाई समकक्ष अली साबरी से कंबोडिया में चीनी जासूसी पोत को लेकर भारत की चिंता से अवगत कराया था. भारत ने कहा था कि हंबनटोटा दक्षिण भारतीय तट के पास है और चीनी जासूसी पोत वहां लंगर डाल कर भारत की सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील जानकारियां जुटा सकता है. हालांकि चीन इसे जासूसी पोत के बजाय अनुसंधान और शोध करार देता आया है. यह अलग बात है कि युआंग वैंग-5 अपने विशाल एंटीना और सेंसर की बदौलत बेहद आसानी से भारतीय तटों की जासूसी कर संवेदनशील जानकारी जुटा सकता है. फिलहाल भारत की आपत्ति, श्रीलंका के आग्रह और ड्रैगन के अड़ियल रुख से घटनाक्रम पेचीदा होता जा रहा है. गौरतलब है कि 2014 में भी श्रीलंका सरकार ने चीन की परमाणु ऊर्जा संचालित पनडुब्बी को अपने बंदरगाह पर रुकने की इजाजत दी थी. उसके बाद भी कोलंबो-नई दिल्ली के द्विपक्षीय सबंधों में तनाव आ गया था.
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