10 महीने बाद खुला काशी का 130 साल पुराना आर्यभाषा पुस्तकालय, अब पांडुलिपियों से लेकर लाखों किताबें संरक्षित की जाएंगी.
नागरी प्रचारिणी सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय का ताला कोर्ट के निर्देश पर दस महीने के लिए खोल दिया गया है. हिंदी के सबसे पुराने आर्यभाषा पुस्तकालय का भवन अब एक धरोहर है.
नई दिल्ली:
काशी की 130 साल पुरानी नागरी प्रचारिणी सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय का ताला दस महीने बाद खुल गया है. लाइब्रेरी में करीब 25 लाख किताबें हैं. पांच लाख पृष्ठों वाली 50 हजार पांडुलिपियां भी हैं. 25 वर्षों से इन पांडुलिपियों की देखभाल नहीं की गई है. अब सफाई शुरू हो गई है. इन पुस्तकों और पांडुलिपियों को संरक्षित किया जाएगा. उन्हें प्रकाशित किया जाएगा. बता दें कि पूरी इमारत जर्जर हो गई है, दरअसल यह 130 साल पुरानी लाइब्रेरी है.
नागरी प्रचारिणी सभा के आर्यभाषा पुस्तकालय का ताला कोर्ट के निर्देश पर दस महीने के लिए खोल दिया गया है. हिंदी के सबसे पुराने आर्यभाषा पुस्तकालय का भवन अब एक धरोहर है. दरअसल यहां भाषा और साहित्य का एक अनोखा संग्रहालय है. पांडुलिपियों का इतना बड़ा संग्रह अन्यत्र कहीं नहीं है. अनुपलब्ध एवं दुर्लभ ग्रंथों का ऐसा संग्रह अन्यत्र मिलना कठिन है. आधी सदी पहले तक प्रसिद्ध हिंदी विद्वान इस पुस्तकालय को अपने व्यक्तिगत पुस्तक संग्रह उपलब्ध कराते रहे थे.
दुर्लभ पुस्तकों का है संग्रह
साल 1893 में स्थापित इस संस्था ने 50 वर्षों तक हस्तलिखित हिंदी ग्रंथों की खोज के लिए देशव्यापी अभियान चलाया गया था. नागरी प्रचारिणी सभा के प्रधान मंत्री का कहना है कि पुस्तकालय में 25 लाख पुस्तकें सुरक्षित रहेंगी और 50 हजार पांडुलिपियों का ताला खुलेगा. उन्होंने बताया कि अब लाइब्रेरी का जीर्णोद्धार कराया जायेगा. इनमें दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह है. इन पुस्तकों और पांडुलिपियों को संरक्षित किया जाएगा.
उन्हें प्रकाशित किया जाएगा. हजारों पांडुलिपियों के साथ-साथ मुगल काल और ब्रिटिश काल के सरकारी गजट भी वहां पड़े हुए हैं. अप्रैल 2023 से लाइब्रेरी में ताला लगा हुआ था. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लाइब्रेरी खोलने का आदेश दिया था. इसका अनुपालन सुनिश्चित किया गया है.
25 हजार हैं दुर्लभ पुस्तकें
बता दें कि इस नागरी प्रचारिणी सभा का गौरव फिर से लौटने जा रहा है. 50 हजार पांडुलिपियों के संरक्षण के साथ-साथ सभा की 25 हजार दुर्लभ पुस्तकें आम जनता के लिए सुलभ होंगी. सभा के पुनरुद्धार से हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों का हिन्दी जगत समृद्ध होगा. अब पांडुलिपियों के संरक्षण और डिजिटलीकरण के साथ-साथ उनका डेटाबेस तैयार करने का निर्णय लिया गया है. इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन को दी गई है.
पहले चरण में 30 लोगों का चयन कर उन्हें पांडुलिपि संरक्षण का प्रशिक्षण दिया जाएगा, फिर उन्हीं से पांडुलिपि संरक्षण का कार्य कराया जाएगा. सभा में ही पांडुलिपि प्रयोगशाला स्थापित की जाएगी. पांडुलिपियों में सौ साल से अधिक प्राचीन साहित्य, पत्रिकाएं और हस्तलिखित दस्तावेज़ शामिल हैं.
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