मकर संक्रांति पर अनूठी प्रतियोगिता, जीतने वाले को मिलता है जिंदगी का सबसे बड़ा इनाम
झारखंड के बोकारो जिले में एक अनूठी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. जिसमें हर साल कई युवा भग लेते हैं, इस प्रतियोगिता में जितने वाले को ना तो ट्रॉफी मिलती है और ना ही नगद इनाम जितने वाले को जमीन दी जाती है वो भी एक साल के लिए.
highlights
- बोकारो में मकर संक्रांति के दिन अनूठी तीरंदाजी प्रतियोगिता का होता आयोजन
- विजेता को एक साल के लिए एक एकड़ जमीन दी जाती है उपहार में
- करीब 100 साल पहले इस प्रतियोगिता की हुई थी शुरुआत
Bokaro:
झारखंड के बोकारो जिले में एक अनूठी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. जिसमें हर साल कई युवा भग लेते हैं, इस प्रतियोगिता में जितने वाले को ना तो ट्रॉफी मिलती है और ना ही नगद इनाम जितने वाले को जमीन दी जाती है वो भी एक साल के लिए. इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए लोग पूरे साल तैयारी करते हैं. मकर संक्रांति के दिन हर साल ये प्रतियोगिता होती है. पिछले 100 सालों से इसका आयोजन हो रहा है. ये प्रतियोगिता तीरंदाजी की होती है. इसमें उन्हें सबसे पहले निशाना लगाना होता है जो ऐसा करता है वो जीत जाता है.
अनूठी तीरंदाजी प्रतियोगिता का होता है आयोजन
झारखंड के बोकारो जिला अंतर्गत कसमार प्रखंड के मंजूरा गांव में मकर संक्रांति के अवसर अनूठी तीरंदाजी प्रतियोगिता का आयोजन होता है. ये प्रतियोगिता ना तो मेडल के लिए ना ट्रॉफी के लिए और ना ही नगद इनाम के लिए होती है. ये प्रतियोगिता सिर्फ एक एकड़ जमीन के लिए होती है. इसमें जीतने वाले को एक साल के लिए करीब एक एकड़ जमीन खेती के लिए इनाम में दी जाती है. दशकों से चली आ रही यह परंपरा ‘बेझा बिंधा’ के नाम से जानी जाती है.
केला के एक थंब में लगाना होता है निशाना
प्रत्येक साल ये प्रतियोगिता मकरसंक्रांति के दिन आयोजित होती है. बताया जाता है कि करीब 100 साल पहले इस प्रतियोगिता की शुरुआत मंजुरा निवासी स्वर्गीय रीतवरण महतो ने की थी. जिसके बाद से पहर साल काफी उत्साह-उमंग के साथ ये प्रतियोगिता आयोजित होता आ रहा है. इस प्रतियोगिता में सबसे पहले तो निशाना साधने के लिए खेत के ठीक बीचों-बीच में एक केले का एक थंब गाड़ा जाता है और उसके करीब सौ कदम की दूरी पर सभी प्रतिभागी को खड़े होना होता है. जहां से वो अपने तीर-धनुष से उस पर निशाना साधते है. जो उस केले के थंब पर सबसे पहले निशाना लगाता है वो जीत जाता है और इनाम में जहां केले का थंब था वो जमीन (खेत) एक साल के लिए उसकी हो जाती है.
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स्वर्गीय रीतवरण महतो के वंशज करते हैं प्रतियोगिता की शुरुआत
इस परंपरा के अनुसार, प्रतियोगिता शुरू होने से पहले स्वर्गीय रीतवरण महतो जिन्होंने इसकी शुरुआत की थी उनके वंशज एवं ग्रामीण मंजूरा स्थित गेंदखेला नामक स्थान पर पूर्वजों द्वारा सूती-धागा से बनाये गये गेंद से खेलकर प्रतियोगिता स्थल पहुंचते हैं और उसके बाद गांव का ‘नाया’ पहला तीर मारकर इस प्रतियोगिता की शुरुआत करते हैं. जिसके बाद गांव के 'महतो' के वंशज तीर चलाते हैं. फिर जाकर प्रतिभागियों के बीच प्रतियोगिता शुरू हो जाती है. वहीं, इस प्रतियोगिता में इस्तेमाल होने वाले केला के थंब को लाने और उस जमीन पर गाड़ने की जिम्मेवारी गांव के 'गौड़ायत' की होती है. इस प्रतियोगिता में हर साल कई संख्या में प्रतिभागी बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं. इस साल भी इस अनूठी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. बड़े उत्साह के साथ ग्रामीणों ने इसमें भाग लिया.
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