एक सड़क ने बदली दुमका के इस गांव की तस्वीर, ग्रामीणों में खुशी की लहर
झारखण्ड की उपजधानी दुमका में RWD विभाग ने पहाड़ों के ऊपर एक ऐसो सड़क बनाई है, जो सिर्फ 14 आदिम जनजाति पहडिया गांव के लोगों की तकदीर ही नहीं बदली बल्कि गांव की तस्वीर ही बदल डाली है.
highlights
- सड़क ने बदली गांव की तस्वीर
- बेखौफ होकर घूम रहे ग्रामीण
- विकास की राह में गांव
Dumka:
झारखण्ड की उपजधानी दुमका में RWD विभाग ने पहाड़ों के ऊपर एक ऐसो सड़क बनाई है, जो सिर्फ 14 आदिम जनजाति पहडिया गांव के लोगों की तकदीर ही नहीं बदली बल्कि गांव की तस्वीर ही बदल डाली है. पहाड़ी पर करीब 1500 फ़ीट की ऊचाई तक साढ़े अठारह किमी बनी इस सड़क से लोगों की राह आसान हुई ही जीवन में भी बदलाव आने लगा है. सबसे बड़ी बात घोर नक्सल क्षेत्र माने जाने वाला यह पहाड़ी में अब बारूद की गंध नहीं बल्कि इनके फिजाओं मे पौधे और वनस्पति के सुगंध पाये जाते हैं. इस मनमोहक वादियों मे जो कभी आना नहीं चाहते थे, वो अब यहां सैर सपट्टा के लिये पहुंच रहे हैं. यह वादिया किसी बड़े हिल स्टेशन से कम नहीं है. हालांकि सरकार अब इसे पर्यटन क्षेत्र घोषित करने की योजना बना रही है.
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सड़क ने बदली गांव की तस्वीर
कहते हैं कि किसी गांव का विकास करने के लिए सड़क का होना जरूरी है क्योंकि सड़क के बिना गांव का विकास का खाका तैयार करना संभव नहीं है. दुमका में एक ऐसा ही सड़क सरकार ने प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के माध्यम से आर डब्ल्यू डी दुमका ने बनाई है, जो गांव की तस्वीर ही नहीं बल्कि लोगों की तकदीर ही बदल दी है. करीब 1500 फ़ीट ऊंचे पहाड़ों पर सोलह करोड़ की लागत से साढ़े अठारह किमी बनी यह सड़क गांव के लोगों की मुश्किलों को आसान ही नहीं किया, बल्कि उनके विकास की थमी पहिया को तेज कर उनके जीने की राह को आसान बना दिया है. अति घोर नक्सल के क्षेत्र के फिंजा मे कभी गोलियों की तड़तड़हाट सुनाई पड़ती थी, जहां कोई भी जाने से कटराता था, लेकिन आज उन इलाकों मे गोली नहीं बल्कि पक्षियों की सोर गुल सुनाई पडती है इस इलाके के मन मोहक वादियों मे लोग अब बैखोफ घूमने निकलते हैं.
बेखौफ होकर घूम रहे लोग
सरकार के इस पहल को गांव वाले भी काफ़ी खुश है. कहते हैं कि अब गांव मे सड़क बनी तो गांव के लोगों का तस्वीर भी बदलेंगी. सड़क बनने के बाद गांव का पूरा नक्शा ही बदल गया है. पहाड़ों को काट कर बनाये गये पथ किसी हिल स्टेशन से कम नहीं है. जानकारी के मुताबिक जिले के काठीकुण्ड प्रखंड घोर नक्सल क्षेत्र माना जाता है. नरगंज से महुआगढ़ी काफ़ी ऊंचे और दुर्गम पहाड़ी है और इसी इलाके से नक्सल का गतिविधि शुरू हुआ. इस सरुआ इलाके के बद्री राय इन जंगलों मे रहकर कभी नक्सल की गतिविधि चलाया करते थे. उनका बेटा ताला दा संताल परगना का कमान संभाले था. हालांकि एसएसबी जवान और पुलिस के सक्रियता के कारण इलाके मे नक्सालियों की कमर तोड़ दी.
सड़क बनने के बाद गांव का पूरा नक्शा बदला
मनोज देहरी ने सरेंडर कर दिया और ताला मारा गया. करीब साढ़े चार हज़ार के आबादी वाले इस इलाके मे रहने वाले 14 राजस्व गांव के पहाड़ियों का जीवन उबड़ खाबड़ पहाड़ी जानलेवा रास्तों अभिशाप बनकर राह गया था. लोगों ने कई बार जिला प्रशासन के माध्यम से सरकार को आवेदन देकर सड़क बनाने की गुहार लगा कर अपनी समस्या को रखी, लेकिन वर्षों तक उनके आवेदन पर विचार नहीं हुआ. लोग बताते हैं कि सड़क के अभाव में लोगों का रोजगार छीन गया था. विकास के मुख्य पथ से बिल्कुल कट चुके थे.
सड़क बनने से दूर हुई समस्या
सबसे मुश्किल टैब होता था, जब किसी बीमार व्यक्ति को इलाज के जद्दोजहद करना पड़ता था. एम्बुलेंस के अभाव मे मरीज को खाट पर लादकर पैदल आठ दस किमी ले जाना पड़ता था, लेकिन अब सड़क बनने से समस्या दूर हुई है. जो पहले यहां कोई भी सरकारी मुलाजिम आना नहीं चाहते थे. अब गांव पहुंचने लगे हैं. शिक्षक भी निरंतर विद्यालय आने से बच्चों के शिक्षा भी मिलने लगी है. घंटों चलने और गिरने से बचाव हुआ है और यहां सप्ताह में यात्री बस भी चलने लगी है. लोगों की जीने की राह आसान हुआ है. लोगों के रोजगार बढ़ने के साथ जीवन मे भी बदलाव संभव हुआ है. लोगों ने विभाग के साथ मोदी सरकार का शुक्रिया अदाकर अब पानी और आवास की गुहार लगाया है. बहरहाल, पहाड़ों को काट कर बनाया गया. इस पथ ने लोगों के जीवन को प्रभावित कर विकास के रास्ते से जोड़ दिया है. 14 गांवो की जोड़ने वाली यह सड़क ना केवल लोगों के तकदीर ही नहीं बदली, बल्कि इस इलाके की तस्वीर भी बदल डाली है.
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