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भागलपुर: बाढ़ आते ही टापू बन जाता है बिहार का ये गांव, हर गांव में घुस जाता है पानी

मौनसून आते ही हर तरफ बाढ़ का खतरा मंडराने लगता है, ऐसा ही कुछ बिहार के भागलपुर के लोगों के साथ भी होने लगा है. चुनाव से पहले यहां की सरकार हजारों वादे करती है, लेकिन जीतने के बाद गांव का विकास नहीं होता.

Updated on: 20 Jul 2023, 05:40 PM

highlights

  • बाढ़ आते ही टापू बन जाता है बिहार का ये गांव
  • हर गांव में घुस जाता है पानी
  • यहां की तस्वीर आप भी हो जाएंगे हैरान 

 

 

 

Bhagalpur:

मौनसून आते ही हर तरफ बाढ़ का खतरा मंडराने लगता है, ऐसा ही कुछ बिहार के भागलपुर के लोगों के साथ भी होने लगा है. चुनाव से पहले यहां की सरकार हजारों वादे करती है, लेकिन जीतने के बाद गांव का विकास नहीं होता, दोबारा चुनाव होता है और गांव का विकास मुद्दा बन जाता है. देश को आजाद हुए 75 वर्ष बीत गए, जिसका हमारा देश अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन बिहार के मानचित्र पर एक ऐसा गांव है, जहां न पुल है, न स्वास्थ्य व्यवस्था है और न ही उच्च स्तर की शिक्षा है. ऐसी ही एक जगह है बिहार के भागलपुर जिले के नवगछिया अनुमंडल अंतर्गत खरीक प्रखंड स्थित दो गांव सिहकुंड और लोकमानपुर की, जिसका हालत देख आप भी हैरान हो जाएंगे.

आपको बता दें कि दोनों गांव कोसी के बीच टापू पर स्थित हैं, चारों तरफ कोसी की तेज धाराएं और बीच में बसे इस गांव का नजारा देखते ही बनता है, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि इस गांव में कोई भी साधन नहीं है, जिसे लोग आना-जाना कर पाएं. बता दें कि सालों से इस गांव के लोगों का सहारा नाव ही है, वह भी सिर्फ एक नाव के सहारे यहां के करीब 25 हजार की आबादी की जिंदगी चलती है.

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इसके साथ ही जब लोकल 18 की टीम कोसी तट पर पहुंची तो रेत पर चलते हुए एक महिला हाथ में बैग लेकर आ रही थी, वह पेशे से शिक्षिका थी. जिसके बाढ़ एक मीडिया से बात करते हुए शिक्षिका बबीता देवी ने बताया कि, ''कोसी के पार एक प्राथमिक विद्यालय आजादपुर है. वहां रोज पढ़ाने जाती हूं. करीब 6 किलोमीटर पैदल बालू पर चल कर जाती हूं. कई बार बहुत देर तक नाव का इंतजार भी करना पड़ता है. उसके बाद वहां तक पहुंच पाती हूं. यहां के लोग इतने परेशान हैं लेकिन पिछले 13 सालों में कोई बदलाव नहीं देखा गया है.''

इसके आगे शिक्षिका ने बताया कि, ''गांव जाने का साधन नहीं होने के कारण यहां बेटे और यहां की बेटियों की शादी होना मुश्किल है. कई बार लगी हुई शादी भी टूट जाती है. अगर शादी तय भी हो जाए तो शहर आकर विवाह मंडप में शादी करनी पड़ती है, जबकि बीमार लोगों को अस्पताल ले जाने में काफी परेशानी होती है.'' अब सवाल यह है कि बिहार सरकार यहां के लोगों पर कब ध्यान देती है और कब तक यहां के लोगों को इस समस्या से निजात दिलाती है.