तेजस्वी यादव के स्वास्थ्य विभाग का बुरा हाल, खस्ताहाल अस्पताल, मरीज बेहाल
बिहार में गठबंधन की सरकार जब सत्ता में आई, तब लगा कि अब व्यवस्था में तेजी से सुधार भी होगा. एक तरफ अनुभवी नीतीश कुमार है तो दूसरी तरफ युवा डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की जोड़ी से बिहार की जनता को काफी उम्मीदे हैं.
highlights
- नसबंदी के बाद मरीजों को फर्श पर लिटाया
- सुपौल में धक्का मार एम्बुलेंस
- मधेपुरा में डॉक्टरों की कमी
- कैमूर में बिना जानकारी कर दी नसबंदी
Katihar:
बिहार में गठबंधन की सरकार जब सत्ता में आई, तब लगा कि अब व्यवस्था में तेजी से सुधार भी होगा. एक तरफ अनुभवी नीतीश कुमार है तो दूसरी तरफ युवा डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की जोड़ी से बिहार की जनता को काफी उम्मीदे हैं. ऐसे में युवा मंत्री तेजस्वी यादव ने सत्ता संभालते ही बिलकुल एक्शन मोड में नजर आए. पहले ही दिन स्वास्थ्य सेवा को लेकर बड़ा ऐलान किया. 60 दिन का अल्टीमेटम दे दिया. डॉक्टरों ने इसे लेकर जमकर हंगामा, लेकिन तेजस्वी जी जरा भी डगमगाए नहीं.
डिप्टी सीएम के ऐलान के बाद भी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर अधिकारियों में कोई परिवर्तन नजर नहीं आ रहा है. आए दिन बिहार से ऐसी खबरें आती हैं, जिसमें स्वास्थ्य व्यवस्था खुद ही वेंटिलेटर पर नजर आती है. इन खबरों को देखकर ऐसा लगता है कि बिहार के अस्पतालों को भी इलाज की जरूरत है. अब जरूरत है एक बार फिर डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को अपनी कही बात याद करने की और इस लड़खड़ाती चिकित्सा सुविधाओं को सुधारने की. अब जरूरत है उन अधिकारियों और डॉक्टरों पर कार्रवाई करने की जो सरकार की योजनाओं को पलीता लगाने का काम कर रहे हैं.
बिहार में कभी कही जेनरेटर चलाकर कर्मचारी मरीज का इलाज कर रहा है तो कही इलाज के लिए गई महिला का किडनी निकाल ली जाती है. वहीं, कही ऑपरेशन कुछ का होना होता है तो डॉक्टर नसबंदी तक कर देते हैं. ऐसे में मुद्दा ये उठता है कि बिहार के मुखिया आप ही बता दिजिए ऐसी खबरों से बिहार की जनता बिना डरे कैसे इलाज करा सकती है. ऐसे में ये कहना कहां गलत होगा कि हुजूर वेंटिलेटर पर आपकी स्वास्थ्य सेवाएं हैं.
नसबंदी के बाद मरीजों को फर्श पर लिटाया
ऐसी ही लापरवाही की एक खबर आज कटिहार से आई है. कटिहार में विभाग के अधिकारी की लापरवाही उजागर हुई है. जहां नसबंदी के बाद महिलाओं के लिए बेड की व्यवस्था नहीं की गई. मजबूरी में महिलाओं को अस्पताल की फर्श पर लेटना पड़ा. दरअसल परिवार कल्याण योजना के तहत महिलाओं की सर्जरी के बाद उन्हें वार्ड में रखा जाता है, लेकिन सदर अस्पताल प्रशासन को ऐसा जरुरी नहीं लगा और महिलाओं के लिए बेड की व्यवस्था नहीं की गई. इतना ही नहीं अस्पताल कर्मियों पर आरोप है कि सभी मरीजों से दो-दो सौ रुपये वसूले गए. कटिहार के सदर अस्पताल के इस डूबते विकास और दयनीय तस्वीर के बारे में जब हमारी टीम ने सदर अस्पताल के प्रशासन से बात करनी चाही तो कोई भी जिम्मेदार अधिकारी कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से परहेज करता रहा.
सुपौल में धक्का मार एम्बुलेंस
हाल ही में सुपौल के अनुमंडलीय अस्पताल निर्मली से एक तस्वीर सामने आई थी, जहां इमरजेंसी के लिए तैनात एम्बुलेंस को कर्मियों के द्वारा धक्का मारकर से स्टार्ट करना पड़ता है. अब आप ही सोचिए कि अगर बिहार के सरकारी अस्पताल में ऐसे धक्का-मुक्की से एंबुलेंस स्टार्ट होगी तो आपात स्थिति में यह एंबुलेंस मरीजों तक समय पर कैसे पहुंच पाएगी?
मधेपुरा में डॉक्टरों की कमी
मधेपुरा जिले के सबसे बड़ा सदर अस्पताल मधेपुरा पर 25 लाख की आबादी निर्भर करती है. इस अस्पताल में डॉक्टरों के 54 पद हैं, जिसमें पदस्थापित डॉक्टर 29 हैं उसमें भी कई ऐसे डॉक्टर हैं जो समय से अस्पताल नहीं पहुंचते हैं, जिसके कारण मरीजों को घंटो तक इंतजार करना पड़ता है. एक तरफ डॉक्टरों की कमी से जूझ रही है मधेपुरा के सदर अस्पताल तो वहीं दूसरी तरफ डॉक्टर समय से अस्पताल नहीं पहुंच रहे हैं. यह स्थिति दो- चार दिन की नहीं बल्कि बीते कई वर्षों से है.
कैमूर में बिना जानकारी कर दी नसबंदी
कैमूर जिले के चैनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सकों ने हाइड्रोसील का ऑपरेशन कराने आए युवक का नसबंदी का ऑपरेशन कर दिया था. जिस युवक का ये ऑपरेशन हुआ है उसकी अभी शादी भी नहीं हुई है. अब परिवार को चिंता सता रही है कि उसके साथ शादी कौन करेगा. इतना ही नहीं ऑपरेशन करने के बाद डॉक्टर ने मरीज और परिजनों से कहा कि नसबंदी का ऑपरेशन कर दिए हैं हाइड्रोसील का ऑपरेशन कराने के लिए किसी प्राइवेट अस्पताल में पैसा है तो लेकर जाओ.
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