जानें अपने अधिकार: न्यूनतम मज़दूरी और सप्ताह में एक दिन अवकाश हर कर्मचारी का हक़
इसके अलावा किसी भी कर्मचारी को 9 घंटे से ज़्यादा वक़्त तक काम नहीं करवाया जा सकता है और अगर करवाया जाता है तो उसके लिए कंपनी को एक्स्ट्रा पैसा देना होगा।
highlights
- न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के अनुसार सभी तरह के काम-काज के लिए एक न्यूनतम मज़दूरी तय की गई है
- सभी तरह के कर्मचारी का हक़ है कि उसे कंपनी की तरफ से सप्ताह में एक दिन वेतन सहित अवकाश मिले
नई दिल्ली:
कर्मचारियों को ड्यूटी के दौरान दुर्घटनाग्रस्त होने पर मुआवज़ा पाने का अधिकार है, ये तो आप सभी जानते होंगे। लेकिन क्या आपको पता है कि काम पर आते या काम से घर वापस जाते हुए भी अगर कोई कर्मचारी चोटिल हो जाता है तो उन्हें भी मुआवज़ा पाने का अधिकार है।
अगर किसी कर्मचारी की मौत दुर्घटना या बीमारी से होती है तो उस मामले में उसके परिवारवालों को मुआवज़ा दिया जाएगा।
कोई कर्मचारी काम के स्वभाव की वजह से कार्यकाल के दौरान ही बीमार हो जाता है या नौकरी छोड़ने के दो साल बाद तक बीमार होता है तो उस स्थिति में भी मुआवज़ा पाने का अधिकार है।
कर्मचारियों को ये अधिकार कामगार मुआवज़ा अधिनियम, 1923 के अंतर्गत दिया गया है।
इसके अलावा किसी भी कर्मचारी को 9 घंटे से ज़्यादा वक़्त तक काम नहीं करवाया जा सकता है और अगर करवाया जाता है तो उसके लिए कंपनी को एक्स्ट्रा पैसा देना होगा।
सभी तरह के कर्मचारी का हक़ है कि उसे कंपनी की तरफ से सप्ताह में एक दिन वेतन सहित अवकाश मिले।
सामान वेतन अधिनियम, 1976 के तहत महिला और पुरुष को एक तरह के काम के लिए समान वेतन देने का भी प्रावधान है। इसके अलावा महिला कर्मचारियों को मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के तहत कुछ विशेष लाभ दिया गया है।
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वहीं न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के अनुसार सभी तरह के काम-काज के लिए एक न्यूनतम मज़दूरी तय की गई है।
दुर्घटना होने पर सबसे पहले मालिक/कंपनी को नोटिस दें, नोटिस में कर्मचारी का नाम, चोट के कारण, तारीख और स्थान लिखें। अगर मालिक/कंपनी मुआवज़ा देने में आना-कानी करता है तो लेबर कमिश्नर को आवेदन दें।
उस आवेदन में कर्मचारी का पेशा, चोट की प्रकृति, चोट की तारीख, स्थान, मालिक/कंपनी का नाम, पता नियोक्ता को नोटिस देने की तिथि, अगर मालिक/कंपनी को नोटिस नहीं भेजा हो तो नोटिस नहीं भेजने का कारण का उल्लेख करें।
आवेदन दुर्घटना होने के 2 साल के अंदर ही भेजा जाना चाहिए। हालांकि कुछ ख़ास परिस्थितियों में 2 साल के बाद भी आवेदन किया जा सकता है।
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