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Year Ahead 2023: 2024 लोकसभा चुनाव के बड़े समर से पहले 9 विधानसभा चुनाव होंगे सेमीफाइनल... जानें दांव पर क्या

2023 में नौ राज्यों और संभवतः केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होंगे. इन राज्यों के विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनाव 2024 के लिहाज से सेमीफाइनल कहा जा सकता है.

Updated on: 31 Dec 2022, 10:10 PM

highlights

  • 2022 की तरह 2023 भी भारतीय राजनीति के लिहाज से रहेगा हंगामाखेज
  • 2024 लोकसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल माने जा रहे विस चुनाव होंगे
  • 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम तय करेंगे 2024 का टोन और मूड

नई दिल्ली:

2022 की तर्ज पर 2023 भी भारतीय राजनीति खासकर विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण साल साबित होने वाला है. 2023 में नौ राज्यों और संभवतः केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) में विधानसभा चुनाव होंगे. इन राज्यों के विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) के लिहाज से सेमीफाइनल कहा जा सकता है. कारण इन विधानसभा चुनावों के परिणाम 2024 के बड़े राजनीतिक समर का टोन और मूड सेट करेंगे. उदाहरण के लिए यदि भारतीय जनता पार्टी (BJP) कई राज्यों में हार जाती है, तो यह विपक्ष को और आक्रामक रुख देगा. साथ ही तय करेगा कि विपक्ष के किन नेताओं के पास प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार होने की शक्ति है. विधानसभा चुनाव परिणाम नए आख्यान बनाने और गठबंधन की रूपरेखा और शर्तों को तय करने में मदद करते हैं. उदाहरण के लिए यदि कांग्रेस इन विधानसभा चुनावों में अच्छा करती है, तो उसके प्रदर्शन को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की भारत जोड़ो यात्रा के आईने से देखा जाएगा. इसके साथ ही पार्टी किसी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनने के बजाय ऐसे किसी विपक्षी ब्लॉक का नेतृत्व करने का प्रयास करेगी. इस स्थिति के उलट अगर बीजेपी ज्यादातर राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करती है, तो इसका श्रेय पीएम मोदी (PM Narendra Modi) को मिलेगा. साथ ही चुनाव विशेषज्ञ इस बारे में बात करेंगे कि कैसे पीएम मोदी का, उनके करिश्मे का  या उनके हिंदुत्व और राष्ट्रवादी रुख का कोई विकल्प नहीं है. इसके साथ ही ऐसा परिदृश्य विपक्षी एकता के नारे को भी तेज कर सकता है. हालांकि तय है कि भाजपा विरोधी नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए अंततः ऐसा होना मुश्किल लग रहा है. यह भी गौर करने वाली बात है कि चुनावी समर में जाने वाले कई राज्यों में पिछले चुनावों के बाद राजनीतिक समीकरण पहले जैसे नहीं रहे हैं. फिर भी इन चुनावों को लेकर राजनीतिक पार्टियां कमर कसते हुए अपनी-अपनी चुनाव तैयारियां (Election Campaign) तेज कर रही हैं. ऐसे में एक नजर डालते हैं कि उन्हें किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और संबंधित राज्य में उनकी राजनीतिक स्थिति क्या है...

त्रिपुरा
2018 के विधानसभा चुनावों में जब भारतीय जनता पार्टी को 35 सीटें मिलीं, तो भगवा पार्टी और वामपंथियों के बीच वोटों का अंतर केवल 1.37 फीसदी था. कांग्रेस इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रही थी. 20 सालों से राज्य के मुख्यमंत्री रहे माकपा के माणिक सरकार की जगह भाजपा के बिप्लब देब ने सूबे की सत्ता संभाली. सत्ता विरोधी लहर को मात देने के लिए 2022 मई में देब की जगह माणिक साहा ने सीएम पद की कमान संभाल ली. अब उन्हें आसन्न विधानसभा चुनाव की तैयारियों के साथ-साथ राज्य बीजेपी के बढ़ते अंदरूनी मतभेदों को दूर करने की चुनौती का सामना भी करना पड़ रहा है. इसके साथ ही बीजेपी के अपने प्रमुख सहयोगी आदिवासी संगठन इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ भी रिश्ते खराब चल रहे हैं. ऐसे में भाजपा की राज्य इकाई ने चुनाव के मद्देनजर 30 पैनल स्थापित किए हैं. इसके अलावा भाजपा को एक झटका स्वायत्त जिला परिषद में विपक्ष के नेता हंगशा कुमार त्रिपुरा के अगस्त में अपने 6,000 आदिवासी समर्थकों के साथ टिपरा मोथा में शामिल होने से भी लगा है. पिछले साल अप्रैल में टिपरा मोथा ने अपने गठन के दो महीने बाद ही त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद चुनाव जीता था. यह आदिवासी केंद्रित पार्टी भाजपा विरोधी राजनीतिक मोर्चा बनाने की कोशिश कर रही है. माना जा रहा है कि कांग्रेस, वामदल और तृणमूल कांग्रेस इसका समर्थन कर सकते हैं.

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मेघालय
मेघालय के 2018 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. हालांकि 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की 21 सीटों पर जीत का आंकड़ा बहुमत से काफी दूर रहा. ऐसे में सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने नेशनल पीपुल्स पार्टी से हाथ मिलाया और कोनराड संगमा मुख्यमंत्री बने. पिछले महीने एनपीपी और भाजपा के बीच दरारें सामने आईं. इसकी वजह बना एनपीपी के दो विधायकों का इस्तीफा देकर भगवा पार्टी में शामिल होना. भाजपा का लक्ष्य इस बार गठबंधन सरकार का नेतृत्व करना है. गठबंधन के सहयोगी विधानसभा चुनाव से पहले आपसी मतभेद दूर करने की कोशिश कर रहे हैं. फिर भी एनपीपी और बीजेपी के मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस को तृणमूल कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिलेगी. कांग्रेस भी प्रचार अभियान तेज कर रही है.

नागालैंड
नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) और बीजेपी गठबंधन मजबूत स्थिति में है. बीजेपी की 2023 के चुनावों में 20 सीटों पर लड़ने और 40 अन्य सीटों पर एनडीपीपी उम्मीदवारों का समर्थन करने की योजना है. 2018 में बीजेपी 12 सीटों पर जीत मिली थी. इस बार बीजेपी अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने पर विचार कर रही है. हालांकि इस साल नवंबर में नागालैंड बीजेपी को तब झटका लगा, जब पार्टी के तीन जिला अध्यक्ष जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए. एक बड़ी चुनौती बनेगी सात जनजातियों की राज्य के 16 जिलों को अलग कर अलग राज्य 'फ्रंटियर नागालैंड' बनाने की मांग. नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने हाल ही में कहा था कि राज्य के पूर्वी हिस्से के लोगों द्वारा अलग राज्य की मांग करना गलत नहीं है. गृह मंत्रालय भी अलग राज्य की मांग को बारीकी से देख रहा है. इस पृष्ठभूमि में 2023 के विधानसभा चुनाव काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं.

कर्नाटक
बीजेपी के लिए कर्नाटक एक प्रतिष्ठा वाला राज्य है. यह एकमात्र दक्षिण भारत का राज्य है, जहां उसका शासन है. कांग्रेस भगवा पार्टी से सत्ता छीनने के लिए बेताब है, लेकिन दोनों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. भाजपा सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है, जबकि कांग्रेस आंतरिक कलह से जूझ रही है. बीजेपी की समस्या पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा और सीएम बसवराज बोम्मई के बीच अनबन से भी जुड़ी है. इस अनबन की वजह से ही येदियुरप्पा ने कई जगहों पर जन संकल्प यात्रा से दूरी बनाए रखी. विधानसभा चुनावों को देखते हुए इनके आपसी मतभेदों को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं. इस कड़ी में हाल ही में येदियुरप्पा और बोम्मई ने परस्पर मतभेदों को खारिज करने वाले बयान दिए हैं. कैबिनेट विस्तार को लेकर भी बीजेपी में फूट है. इससे जुड़े मसलों पर चर्चा करने के लिए 14 दिसंबर को बोम्मई ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. शाह ने मंत्रिमंडल विस्तार के लिए फिलहाल सहमति नहीं दी है. बीजेपी में कुछ नेताओं को लगता है कि कैबिनेट विस्तार से चुनाव से पहले पार्टी में जान आ जाएगी, वहीं दूसरे खेमे का कहना है कि यह व्यर्थ की कवायद होगी. कर्नाटक कांग्रेस में भी टिकट बंटवारे को लेकर मतभेद साफ नजर आ रहा है. नवंबर में कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए विपक्ष के नेता सिद्धारमैया नहीं, बल्कि पार्टी आलाकमान टिकट तय करेगा. इसके बाद राज्य के एक अन्य कांग्रेस नेता एमबी पाटिल ने कहा कि फिर भी सिद्धारमैया भी टिकट वितरण प्रक्रिया का हिस्सा होंगे.

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छत्तीसगढ
कांग्रेस ने 2018 विधानसभा चुनावों में राज्य में 90 में से 68 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी, जबकि भाजपा को महज 15 सीटों पर जीत से सब्र करना पड़ा था. हाल ही में हुए भानुप्रतापपुर विधानसभा उपचुनाव में भी कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की थी. 2018 के बाद से भाजपा के लिए उपचुनावों में यह लगातार पांचवीं हार थी. अन्य उपचुनाव दंतेवाड़ा, चित्रकोट, मरवाही और खैरागढ़ में हुए थे. कांग्रेस के लिए उपचुनाव की जीत संकेत देती है कि 2023  विधानसभा चुनावों में क्या होने वाला है. फिर भी इसे शब्दशः या निश्चित तौर पर नहीं माना जा सकता है. कांग्रेस और भाजपा की राज्य इकाइयां जनता तक पहुंच बनाने के लिए रणनीति और कार्य योजना तैयार कर रही हैं. दोनों दल प्रमुख मुद्दों पर चर्चा करने और चुनावी घोषणापत्र पर चर्चा करने के लिए बैठकें कर रहे हैं. 2022 सितंबर में तीन नए जिलों का उद्घाटन बघेल ने किया था. इनमें से दो जिलों के लिए 930 करोड़ रुपये से अधिक के विकास कार्यों की घोषणा की गई. ये जिले चुनाव परिणाम में अहम भूमिका निभाएंगे.

मध्य प्रदेश
ऐसी चर्चा जोरों पर ही विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा मुख्यमंत्री के लिए एक नया चेहरा चुन सकती है, जैसा कि उसने गुजरात में कर चुनाव जीता. सीएम शिवराज चौहान को बदलने से पार्टी को संभावित सत्ता विरोधी लहर पर काबू पाने में मदद मिल सकती है. एक खेमे का मानना ​​है कि बीजेपी चुनावी लाभ के लिए बदलाव करेगी. दूसरे खेमे का कहना है कि कैबिनेट में फेरबदल तो होगा, लेकिन सीएम चौहान ही बने रहेंगे. मई में  विपक्षी कांग्रेस ने कथित तौर पर न केवल राज्य स्तर के लिए, बल्कि स्थानीय मुद्दों और मांगों के आधार पर प्रत्येक जिले के लिए 'वचन पत्र' (चुनाव घोषणापत्र) तैयार करने का फैसला किया. यह एक गेम-चेंजिंग प्रयास हो सकता है. हालांकि जुलाई में भाजपा ने स्थानीय निकाय चुनावों में जीत हासिल की. जीत के बाद पार्टी ने दावा किया कि उसने 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले निकाय चुनावी रूपी सेमीफाइनल में कांग्रेस को हरा दिया है. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि चुनाव की तैयारी जोरों पर है, जबकि कांग्रेस नेता कमलनाथ चुनावी सभाओं में व्यस्त हैं.

मिजोरम
मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) सरकार ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 40 में से 26 सीटों पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस सिर्फ 5 सीटें जीत सकी थी. भाजपा ने पहली बार राज्य में अपना खाता खोला था. अब 2023 विधानसभा चुनाव में एमएनएफ अपनी सीटों की संख्या बढ़ाना चाहती है. कुछ ऐसी ही इच्छा और लक्ष्य भाजपा का भी है. कांग्रेस अपने नेताओं को एक साथ रखने के लिए संघर्ष कर रही है. एमएनएफ केंद्र में एनडीए और क्षेत्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनईडीए दोनों का हिस्सा है.संभावना यही है कि यह फिर से सत्ता हथिया लेगा.

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राजस्थान 
सीएम अशोक गहलोत को कभी डिप्टी सीएम रहे और युवा कांग्रेस नेता सचिन पायलट से कड़ी टक्कर मिल रही है. सीएम पद को लेकर दोनों की खींचतान खुलकर सामने आ गई है. तीन महीने पहले गहलोत खेमे ने विधायक दल की बैठक में भाग नहीं लिया. इस पर आलाकमान की भवें तन गई थी. इसके परिणामस्वरूप गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर होना पड़ा. हालांकि वह फिर भी सचिन पायलट को सीएम पद नहीं देने के अपने रुख से टस से मस नहीं हुए. 2023 विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार शुरू हो चुका है. अक्टूबर में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने बीजेपी से चुनाव के लिए तैयार होने को कहा था. गहलोत ने 18 दिसंबर को दावा किया था कि राज्य में सत्ता विरोधी लहर नहीं है और इससे बड़ी कोई उपलब्धि नहीं हो सकती. हालांकि कांग्रेस की तरह बीजेपी भी पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी से जूझ रही है. हालांकि बीजेपी गहलोत-पायलट की दरार पर भरोसा कर रही है.

तेलंगाना
2018 विधानसभा चुनाव में तेलंगाना राष्ट्र समिति के चंद्रशेखर राव ने 119 में से 87 सीटें जीतकर शानदार जीत हासिल की. पार्टी के लिए 2014 चुनाव की 63 सीटों से यह बड़ा मकाम था. राव ने अपना कार्यकाल पूरा करने से नौ महीने पहले 6 सितंबर को सदन भंग कर दिया था. कांग्रेस ने 2014 की तुलना में दो कम यानी 19 सीटें 2019 के चुनाव में जीतीं. कांग्रेस ने तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और दो अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया था. टीडीपी ने पिछली बार की 2014 की ही तरह 2019 में 15 सीटें जीती थीं. बीजेपी को सिर्फ एक सीट मिली थी. हाल ही में हुए मुनुगोडू उपचुनाव से पता चलता है कि इस बार राजनीतिक परिदृश्य में भारी बदलाव आया है. टीआरएस ने बीजेपी को हरा तो दिया, लेकिन अंतर केवल 10,000 वोटों का था. भाजपा द्वारा की जा रही चुनावी तैयारियों से पता चलता है कि 2023 का विधानसभा चुनाव टीआरएस के लिए आसान होगा. राव की लगभग सभी विधानसभा सीटों पर गहरी पकड़ है, लेकिन पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं में निराशा की भावना है. राज्य में पहले से कांग्रेस की मौजूदगी के बावजूद कई सीटों पर पार्टी की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर हो  रही है. ऐसे में कांग्रेस का वोट टीआरएस और बीजेपी के बीच बंट जाएगा.

जम्मू और कश्मीर
जम्मू और कश्मीर में 2018 की गर्मियों के बाद से राष्ट्रपति शासन है. ऐसे में सभी की निगाहें आगामी विधानसभा चुनावों पर हैं. जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के प्रभारी तरुण चुग ने हाल ही में जल्द चुनाव कराने के संकेत दिए थे. उन्होंने पार्टी सदस्यों से राज्य के लोगों तक पहुंचने और उनसे घुलने-मिलने का आह्वान किया था. इससे संकेत मिलता है कि बीजेपी पार्टी ने चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. इसे और बल मिलता है कि पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अगले तीन महीने में राज्य में दौरे होने हैं. विपक्ष भी अनुच्छेद 370 हटने के बाद होने वाले पहले विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस रहा है. 5 दिसंबर को जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को नेशनल कांफ्रेंस का प्रमुख फिर से चुना गया. नेकां संविधान के अनुच्छेद 370 की बहाली और जम्मू-कश्मीर को राज्य के दर्जा की मांग पर चुनावी समर में उतरने की योजना पर काम कर रही है. माना जा रहा है कि नेकां, महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, सीपीआई (एम) और जम्मू और कश्मीर अवामी नेशनल कांफ्रेस यानी गुपकार एलायंस चुनाव से पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकता है. कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद ने पार्टी से अलग होने के बाद डेमोक्रेटिक आजाद पार्टी बनाई है, वह भी गठबंधन का समर्थन कर सकते हैं. विपक्ष के लिए प्रमुख मुद्दे अनुच्छेद 370, परिसीमन और सुरक्षा होंगे. जम्मू में भाजपा की स्थिति मजबूत है, लेकिन कश्मीर जाहिर तौर पर एक अलग खेल ही होगा.