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नवीन पटनायक... वो नेता जिसकी सादगी ही उसे महान बना देती!

भारतीय राजनीति में कई ऐसे नेता हुए, जिन्होंने देश काल और परिस्थितियों के विपरीत की राजनीति में भी अपना परचम लहराया है. इस फेहरिस्त में एक नाम आता है, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का.

Updated on: 23 Jul 2023, 08:17 PM

नई दिल्ली:

भारतीय राजनीति में कई ऐसे नेता हुए, जिन्होंने देश काल और परिस्थितियों के विपरीत की राजनीति में भी अपना परचम लहराया है. इस फेहरिस्त में एक नाम आता है, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का. 76 साल के ये राजनेता आज देश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले दूसरे नेता बन गए हैं. नवीन बाबू के नाम से मशहूर इस नेता ने ओडिशा का मुख्यमंत्री रहते हुए 23 साल 4 महीने और 19 दिन का कार्यकाल पूरा कर लिया है. इसके साथ ही उन्होंने पश्चिम बंगाल के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम ज्योति बसु का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. अब नवीन पटनायक से आगे सिक्किम के पूर्व सीएम पवन कुमार चामलिंग का नाम है. चामलिंग 24 साल 165 दिन तक सिक्किम के सीएम रहे हैं. बता दें कि ओडिशा में साल 2024 के जून महीने तक विधानसभा के चुनाव होने हैं और इस बार भी अगर नवीन पटनायक सीएम बनते हैं तो कुछ महीनों के बाद ही वो पवन कुमार चामलिंग का रिकॉर्ड भी तोड़ देंगे.  

चलिए अब नजर डालते हैं नवीन पटनायक के राजनीतिक सफरनामे पर. नवीन पटनायक भारत के ऐसे राजनेता हैं, जो मीडिया में कम दिखाई देते हैं, सादगी पसंद, नपे तुले शब्दों में अपनी बात रखना और विवादों से दूर रहना नवीन पटनायक की शख्सियत बयां करने के लिए काफी है. नवीन बाबू अपना काम बेहद ही शांतिपूर्ण तरीके से करते हैं. उनकी छवि ऐसे नेता के तौर पर है जो अपने विरोधियों पर बयानों से हमला नहीं करते हैं. यही वजह है कि नवीन पटनायक के ओडिशा की राजनीति में खुलकर आने के बाद से अब तक वहां कोई और दूसरी पार्टी पनप नहीं सकी है. 26 दिसंबर 1997 को बीजू जनता दल के गठन के बाद ओडिशा में 5 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं और 6 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं. पांचों बार विधानसभा चुनाव में BJD को जीत मिली है. इसके साथ ही ओडिशा में कुल 21 लोकसभा सीट हैं और पिछले 6 चुनाव में बीजेडी को ही हर बार सबसे ज्यादा सीटें आई हैं. ये आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि ओडिशा की राजनीति पर पिछले ढाई दशक से नवीन पटनायक का किस तरह का दबदबा रहा है.

नवीन पटनायक का जन्म 16 अक्टूबर 1946 को ओडिशा के कटक में हुआ. इनके पिता बीजू पटनायक देश के बड़े नेताओं में शुमार रहे हैं. बीजू बाबू पहले कांग्रेस और फिर समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियों में रहे. बाद में वे जनता पार्टी, जनता दल के झंडे तले राजनीति करने लगे. केंद्रीय मंत्री और ओडिशा के दो बार सीएम रहे बीजू पटनायक के तीन बच्चे थे- गीता पटनायक, प्रेम पटनायक और नवीन पटनायक. तीन भाई-बहनों में नवीन पटनायक सबसे छोटे हैं. नवीन पटनायक ने अपनी शुरुआती शिक्षा मशहूर दून स्कूल से पूरी की है. बाद में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित किरोड़ीमल कॉलेज से आर्ट्स में ग्रेजुएशन की डिग्री ली. ऐसा बताया जाता है कि इस दौरान संजय गांधी उनके सहपाठी थे. 

आपको जानकर हैरानी होगी कि नवीन पटनायक एक ऐसे राजनेता हैं, जिन्हें अपनी मातृभाषा यानी उड़िया भी बोलना नहीं आता था. आज भी लोग बताते हैं कि बीगल नस्ल के कुत्तों 'ब्रूनो' और 'रॉक्सी' के अलावा नवीन बाबू का कोई दोस्त नहीं है. ऐसा कहते हैं कि उनकी जिंदगी सादगी की एक बड़ी मिसाल है. जानकारों की मानें तो अच्छा भाषण देना उनके गुणों में शामिल नहीं है. बीबीसी से बातचीत में नवीन पटनायक की जीवनी लिखने वाले रूबेन बनर्जी बताते हैं कि जब नवीन पटनायक साल 2000 में ओडिशा विधानसभा का चुनाव लड़ने आए तो उन्हें उड़िया बोलनी नहीं आती थी, क्योंकि तब तक उन्होंने लगभग अपनी पूरी उम्र ओडिशा के बाहर बिताई थी. मुझे याद है वो अपने भाषण के शुरू में 'रोमन' में लिखी एक लाइन बोलते थे, 'मोते भॉलो उड़िया कॉहबा पाई टिके समय लगिबॉ. लेकिन इसका उन्हें फायदा मिला. उस वक्त ओडिशा में राजनीतिक वर्ग इतना बदनाम हो चुका था कि लोगों को नवीन का उड़िया न बोल पाना भा गया, लोगों ने सोचा कि इसमें और दूसरे राजनेताओं में फर्क है. ये ही हमें बचाएंगे. इसलिए उन्होंने नवीन को मौका देने का फैसला किया.

अप्रैल 1997 में जब पिता बीजू पटनायक का निधन हुआ तो ओडिशा की राजनीति में मानो एक शून्य स्थापित हो गया. क्योंकि बीजू बाबू के परिवार से कोई भी राजनीति में नहीं था. बीजू पटनायक के बड़े बेटे प्रेम पटनायक और बेटी गीता ने खुद को पॉलिटिक्स से दूर रखा हुआ था. अब सारी नजरें सबसे छोटे बेटे नवीन पटनायक की तरफ थी. साल 1997 में नवीन पटनायक ने अपने पिता के संसदीय क्षेत्र अस्का से चुनाव लड़ा और पहली बार सांसद बने. 51 साल की उम्र में पिता की राजनीतिक विरासत संभालने वाले नवीन पटनायक को पार्टी के अंदर और बाहर के लोगों ने नासमझ मानना शुरू कर दिया, लेकिन उसी साल उन्होंने पिता के खास लोगों के साथ मिलकर 26 दिसंबर 1997 बीजू जनता दल का गठन किया. साल 1998 के लोकसभा चुनाव में BJD ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर राज्य की 21 में से 12 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, बीजेडी को 9 सीटों पर जीत मिली. इसके बाद साल 1999 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए इस बार भी बीजेडी ने बीजेपी के साथ गठबंधन पर ही दांव लगाया और 12 में से 10 सीटों पर बाजी मारी. वहीं 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेडी ने 12 में 11 सीटें अपने नाम की. इस बार भी उसका गठबंधन बीजेपी के साथ ही था. 

वहीं, दूसरी तरफ बीजू जनता दल बनने के बाद नवीन पटनायक के लिए ओडिशा विधानसभा का जो सबसे पहला चुनाव सामने था, वो था साल 2000 विधानसभा चुनाव. इन चुनावों में बीजेडी कुल 147 सीटों में से 68 सीटों पर जीत दर्ज करती है. लेकिन ये सीटें बहुमत के आंकड़े 74 से कम रह जाती हैं. फिर 38 सीट जीतने वाली बीजेपी के साथ मिलकर नवीन पटनायक पहली बार सीएम बनते हैं. इसके बाद साल 2004 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेडी के खाते में 61 सीटें आती हैं, वहीं बीजेपी 32 सीटों के साथ तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनती है. इस बार भी बीजेडी, बीजेपी के साथ गठबंधन कर राज्य में सरकार बना लेती है. लेकिन 2009 के विधानसभा चुनाव आते-आते बीजेपी के साथ बीजेडी का गठबंधन टूट जाता है. बीजेपी के साथ गठबंधन टूटने की अहम वजह नवीन पटनायक ने कंधमाल घटना को बताया था. राजनीति के जानकारों की मानें तो बीजेपी से अलग होने के बाद सही मायने में नवीन पटनायक की राजनीति शिखर पर पहुंची. यहीं से ओडिशा में बीजेपी का जनाधार कम होने लगा. 2009 विधानसभा चुनाव में पहली बार नवीन पटनायक को अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल हुआ. इस बार बीजेडी अकेले मैदान में उतरती है और 147 सीटों में से 103 सीटों पर जीत दर्ज कर लेती है. जबकि बीजेपी 32 से लुढ़ककर 6 सीटों पर पहुंचा जाती है और नवीन बाबू तीसरी बार सीएम बनते हैं. 

साल 2014 के आते-आते ओडिशा में कांग्रेस धीरे-धीरे कमजोर होने लगी थी तो वहीं दूसरी तरफ बीजेडी से अलग होने के बाद बीजेपी के लिए अब राज्य में कुछ खास नहीं बचा था. यही वजह रही कि साल 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजू जनता दल ने अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया. BJD को 117 सीटों पर जीत मिली. वहीं कांग्रेस 16 और बीजेपी महज 10 सीटों पर सिमट गई. नवीन पटनायक चौथी बार सीएम बने. साल 2014 में बीजेडी ने विधानसभा ही नहीं, लोकसभा चुनाव में भी प्रचंड जीत दर्ज की थी. पार्टी ने राज्य की 21 में से 20 सीटों पर कब्जा किया था. 

बात अगर पिछले विधानसभा चुनाव (2019) की करें तो उसमें नवीन पटनायक को कोई खास परेशानी नहीं हुई. लेकिन वहीं दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव में बीजेडी को भारी नुकसान उठाना पड़ा. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में जहां बीजू जनता दल ने 112 सीटों पर परचम लहराया, वहीं बीजेपी ने 23 सीटों पर जीत दर्ज कर अपने पुराने प्रदर्शन को बेहतर कर दिया था. इसके साथ ही लोकसभा की 21 सीटों में से 12 सीटों पर बीजेडी ने जीत दर्ज की थी, वहीं बीजेपी पहली बार ओडिशा में 8 लोकसभा सीटें अपने झोली में लेने में कामयाब रही थी. 

अब जब साल 2024 के लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम का समय बचा है, तो देश में विपक्षी एकता की एक नई तस्वीर भी उभर रही है. हालांकि, इस तस्वीर में नवीन पटनायक नहीं है. लेकिन विपक्षी धड़े के बड़े नेता नीतीश कुमार लगातार नवीन पटनायक को इसमें शामिल करने की कवायद में जुटे हुए हैं. पिछले दिनों नीतीश ने नवीन पटनायक से भुवनेश्वर में मुलाकात की थी. इसके बाद ऐसे कयास लगने लगे कि शायद 21 सासंदों वाले ओडिशा के सबसे बड़े नेता के विपक्षी एकता में शामिल होने से इस कुनबे को मजबूती मिलेगी. लेकिन अगले ही दिन नवीन पटनायक ने मीडिया से बात करते हुए साफ कर दिया कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेडी अकेले ही मैदान में उतरेगी. वहीं जब उनसे गैर बीजेपी गैर कांग्रेस मोर्चे से जुड़ा सवाल पूछा गया तो उन्होंने साफ कह दिया कि तीसरे मोर्चे की कोई संभावना नहीं है. 

नवीन कुमार की रिपोर्ट