कैसे चलती है संसद, लोकसभा-राज्यसभा को स्थगित करने के क्या हैं नियम?
कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी की एक टिप्पणी पर लोकसभा में गुरुवार को केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की ओर से तीखी नाराजगी जाहिर की गई. जवाब में कांग्रेस ने भी प्रहार किया. इस दौरान सदन में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहा.
highlights
- नियम-375 के तहत स्पीकर लोकसभा की कार्यवाही स्थगित कर सकता है
- राज्यसभा की नियमावली का नियम-257 सभापति को समान अधिकार देता है
- राज्यसभा को चलाने के नियम 1 जुलाई 1964 से आए
नई दिल्ली:
संसद जनता की सर्वोच्च लोकतांत्रिक प्रतिनिधि संस्था है. इसी माध्यम से आम लोगों की संप्रभुता को अभिव्यक्ति मिलती है. संसद ही इस बात का प्रमाण है कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में जनता सबसे ऊपर है, जनमत सर्वोपरि है. ‘संसदीय’ शब्द का अर्थ ही ऐसी लोकतंत्रात्मक राजनीतिक व्यवस्था है जहां सर्वोच्च शक्ति लोगों के प्रतिनिधियों के उस निकाय में निहित है जिसे ‘संसद’ कहते हैं. भारत के संविधान के अधीन संघीय विधानमंडल को ‘संसद’ कहा जाता है. यह वह धुरी है, जो देश के शासन की नींव है. भारतीय संसद राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा-से मिलकर बनती है.
संसद को चलाने के नियम निर्धारित हैं, लेकिन संसद के दोनों सदन लोकसभा और राज्यसभा में जब तब हंगामा होने लगता है. सदस्यों के बीच गतिरोध पैदा हो जाता है या सदन का कोरम पूरा नहीं होता, तब सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी जाती है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर दोनों सदनों की कार्यवाही कब और किन परिस्थितियों में स्थगित होती है?
अभी हाल ही में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी की एक टिप्पणी पर लोकसभा में गुरुवार को केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की ओर से तीखी नाराजगी जाहिर की गई. जवाब में कांग्रेस ने भी प्रहार किया. इस दौरान सदन में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहा. इसके बाद बवाल जब और बढ़ा तो सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई. अब सवाल उठता है कि किन नियमों और परिस्थितियों में लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित की जाती है?
दोनों सदन के संचालन के लिए है नियम-कानून
संसद को दोनों सदनों को सदन को संचालित करने के लिए संविधान से नियम बनाने का अधिकार प्राप्त है. लोकसभा और राज्यसभा सदन की कार्यवाही Rules of the House सदन के नियम के हिसाब से चलती है. इन नियमों को सदन के सदस्यों के वोट के आधार पर अंगीकार किया जाता है. संविधान के अनुच्छेद-118(1) में संसद के प्रत्येक सदन को अपने कामकाज और प्रक्रियाओं को चलाने के लिए नियम बनाने की शक्ति दी गई है.
क्या है The Green Book
देश के संविधान को अंगीकृत (अडॉप्ट) किए जाने से पहले ही संविधान सभा की विधायिका की प्रक्रिया और कामकाज के नियम प्रभाव में आ गए थे. बाद में 1952 में संविधान के अनुच्छेद-118(2) के तहत मिली शक्तियों का उपयोग करते हुए लोकसभा के स्पीकर ने इन्हें संशोधित कर अंगीकार किया. लोकसभा की कार्यवाही चलाने के नियमों को प्रारंभ में 17 अप्रैल 1952 को भारत के गजट में प्रकाशित किया गया. लोकसभा की कार्यवाही और प्रक्रिया से जुड़े नियमों की पुस्तिका को The Green Book कहा जाता है.
Red Book में राज्यसभा को चलाने का नियम
राज्यसभा के कामकाज, प्रक्रिया और कार्यवाही के नियम सदन में बहस करने के बाद तैयार किए गए. इन नियमों को 2 जून 1964 में अंगीकृत किया गया और ये प्रभाव में 1 जुलाई 1964 से आए. इन नियमों के लिए संसद सचिवालय की ओर से गजट नोटिफिकेशन प्रकाशित किया गया. राज्य सभा के नियमों की पुस्तिका को Red Book कहा जाता है.
बदल सकते हैं सदनों की कार्यवाही के नियम
हालांकि दोनों सदनों के नियमों में समय के साथ संशोधन किया जाता रहता है. सदन के सदस्यों के बीच बहस और सहमति के बाद इन नियमों में बदलाव होता है. राज्यसभा की कार्यवाही से जुड़े मौजूदा नियमों की पुस्तिका 2016 में प्रकाशित हुई और ये इन नियमों का 9वां संस्करण है. वहीं लोकसभा के मौजूदा नियम कुछ संशोधनों के बाद 2019 में प्रकाशित हुए. ये इन नियमों का 16वां संस्करण है.
कार्यवाही स्थगित करने का क्या है नियम?
लोकसभा के स्पीकर और राज्यसभा के सभापति को सदनों की कार्यवाही से जुड़े नियमों में कुछ अधिकार दिए गए हैं. इन्हीं में से एक अधिकार सदन की कार्यवाही स्थगित करने का है. सदन को स्थगित करने का अधिकार पीठासीन अधिकारी के विवेकाधीन है. इसका मतलब ये हुआ कि सदन की कार्यवाही के दौरान पीठासीन अधिकारी अपने विवेक से कार्यवाही स्थगन का फैसला ले सकता है. ये सदन के भीतर की स्थिति के हिसाब से छोटी अवधि से लेकर पूरे दिन के लिए हो सकती है.
इन नियमों में कहा गया है कि सदन के भीतर 'गंभीर अव्यवस्था' की स्थिति में कार्यवाही को स्थगित या निलंबित किया जा सकता है. हालांकि दोनों ही सदनों की नियमावली में सदस्यों के 'अव्यवस्था फैलाने वाले व्यवहार' को स्पष्ट तरीके से परिभाषित नहीं किया गया है.
कब होती है सदनों की कार्यवाही स्थगित
लोकसभा की नियमावली में नियम-375 कहता है- सदन के अंदर अव्यवस्था होने की स्थिति में अगर स्पीकर को लगता है कि कार्यवाही स्थगित करना अनिवार्य है तो स्पीकर कार्यवाही स्थगित करने और निलंबित करने के लिए कह सकता है. राज्यसभा की नियमावली का नियम-257 सभापति को समान अधिकार देता है. आमतौर पर स्पीकर या सभापति छोटी अवधि के लिए हर सदन की कार्यवाही स्थगित करते हैं, ताकि सदन के अंदर हो रहे हंगामे को शांत कराया जा सके. अगर स्थिति अत्याधिक गंभीर बनी रहती है तो सदन की कार्यवाही को लंबी अवधि के लिए निलंबित किया जा सकता है या पूरे दिन के लिए स्थगित करने के लिए भी कहा जा सकता है.
क्या होती है सदन के अंदर 'गंभीर अव्यवस्था'?
नियमावली में 'गंभीर अव्यवस्था' को स्पष्ट नहीं किया गया है. इससे स्पीकर या सभापति को किसी सदस्य को निलंबित करने या उस दिन के लिए सदन की कार्यवाही से बाहर करने की अनुमति मिलती है. सदस्यों का वेल में आकर हंगामा करना, नारेबाजी करना, जानबूझकर सदन की कार्यवाही को बाधित करना इत्यादि 'अव्यवस्था फैलाने वाले व्यवहार' के दायरे में आता है.
यह भी पढ़ें : देश में अश्लीलता क्या है? परिभाषा, पैमाना, दायरा, कानून और सजा- सबकुछ
संसद के मौजूदा सत्र में इस स्थिति को लगभग रोजाना देखा जा सकता है. पिछले कुछ दिन के भीतर स्पीकर ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए विपक्ष के कुल 27 संसद सदस्यों को निलंबित कर दिया है. लोकसभा के पूर्व जनरल सेक्रेट्री जी. सी. मल्होत्रा ने मौजूदा परिस्थिति को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया.
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