Gujarat Elections 2022: इस बार पाटीदार और SC/ST वोटर बनेंगे बीजेपी के तारणहार... समझें
हार्दिक पटेोल इसी साल मई में पार्टी में दरकिनार पड़ने पर कांग्रेस का 'हाथ' छोड़ जून में बीजेपी का 'कमल' थाम चुके हैं. वह बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में इस बार वीरमगाम से चुनाव मैदान में हैं.
highlights
- इस बार हार्दिक पटेल के कमल 'थामने' का फायदा बीजेपी को मिल सकता है
- पिछली बार हार्दिक के समर्थन से कांग्रेस बीजेपी को दहाई अंकों तक रोक सकी
- बीजेपी ने इस बार पाटीदार समेत एससी/एसटी को साधने की भरपूर कोशिश की
गांधी नगर:
गुजरात चुनाव में पाटीदार (Patidar) समेत अनुसूचित जाति और अनुसूचित (SC/ST) जनजाति मतदाताओं के वर्चस्व वाली सीटें किसी भी पार्टी की प्रचंड जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. भूमि धारक और कृषि जाति पाटीदार गुजरात (Gujarat) की समग्र आबादी में 12 फीसदी हैं. यही नहीं, पाटीदार राज्य की राजनीति में भी महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव (Gujarat Elections) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का पाटीदार वोटबैंक थोड़ा सा दरका था. पाटीदार मतदाताओं के वर्चस्व वाली 40 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 24 पर जीत मिली थी. कांग्रेस (Congress) भी 15 सीटों पर जीत का परचम फहरा बीजेपी को पहली बार दहाई के अंकों तक समेटने में सफल रही थी. पाटीदार की तर्ज पर गुजरात में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति बाहुल्य वाली 50 सीटों पर अच्छा प्रदर्शन चुनावों में किसी पार्टी की किस्मत बना या बिगाड़ सकता है. हालांकि अगर पिछले दो चुनावों के नतीजों को देखें तो कोई भी एक पार्टी मतदाताओं के इस तबके पर वर्चस्व का दावा नहीं कर सकती है. इस बार के विधानसभा चुनाव (Gujarat Elections 2022) में बीजेपी इन दो समुदायों के मतदाताओं पर नजरें गड़ाए है.
पाटीदार प्रभुत्व वाली विधानसभा सीटें
2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 28 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि कांग्रेस के हाथ महज 9 सीटें ही आई थीं. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पाटीदार प्रभुत्व वाली 40 में से 24 सीटों से संतोष करना पड़ा. पिछली बार कांग्रेस ने सौराष्ट्र में परचम फहराया, तो बीजेपी का अहमदाबाद और गांधीनगर की शहरी सीटों पर अच्छा प्रदर्शन रहा. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में कई बातें गईं. अन्य पिछड़ी जातियों का दर्जा और आरक्षण का लाभ लेने के लिए पाटीदार आंदोलन चरम पर था. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आंदोलन ने समुदाय के मतदाताओं को बीजेपी से विमुख कर दिया. यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि कांग्रेस को हार्दिक पटेल के समर्थन ने उसके प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद की.
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पाटीदार विधायकों की संख्या बढ़ने की संभावना
हालांकि ऐसा इस बार भी विधानसभा चुनाव में होगा, यह कहना कतई सही नहीं होगा. हार्दिक पटेल इसी साल मई में पार्टी में दरकिनार पड़ने पर कांग्रेस का 'हाथ' छोड़ जून में बीजेपी का 'कमल' थाम चुके हैं. वह बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में इस बार वीरमगाम से चुनाव मैदान में हैं. पाटीदार आंदोलन भी कमजोर पड़ चुका है. रही सही कसर सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने पूरी कर दी है, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण को सही ठहराया गया. इतना कहा जा सकता है कि इस बार विधानसभा में पाटीदार विधायकों की संख्या बढ़ सकती है. पिछली विधानसभा में 44 विधायक पाटीदार समुदाय के थे. इस बार बीजेपी समेत कांग्रेस और आप ने पाटीदार समुदाय के तमाम लोगों को टिकट दिया है.
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एससी-एसटी के वर्चस्व वाली 50 सीटें
गुजरात में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति बाहुल्य वाली 50 सीटों पर अच्छा प्रदर्शन चुनावों में किसी पार्टी की किस्मत बना या बिगाड़ सकता है. हालांकि अगर पिछले दो चुनावों के नतीजों को देखें तो कोई भी एक पार्टी मतदाताओं के इस तबके पर वर्चस्व का दावा नहीं कर सकती है. 2012 के विधानसभा चुनाव में कच्छ, उत्तर और मध्य गुजरात समेत अहमदाबाद-गांधीनगर की शहरी बेल्ट के इस समुदाय के मतदाताओं ने बीजेपी पर विश्वास जताया था. नतीजतन केसरिया पार्टी इन क्षेत्रों की एससी वोटरों के प्रभुत्व वाली 20 सीटों में से 15 जीती थी. कांग्रेस को भी 5 सीटें मिली थीं. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनावों में तस्वीर उलट थी. बीजेपी को 9 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस ने 10 सीटें अपनी झोली में डाली थीं.
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अनुसूचित जनजाति के मतदाताओं को बीजेपी लुभाने में पीछे नहीं
गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव पाटीदार आंदोलन के बाद में हुए थे. हार्दिक पटेल के कांग्रेस को समर्थन से समीकरण बदले थे और बीजेपी को थोड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. इस बार हार्दिक पटेल के बीजेपी के साथ आने से परिदृश्य बदला हुआ है. गुजरात की अधिसंख्य एसटी सीटों लगभग 32 में से अधिकांश मध्य प्रदेश की सीमा से लगी हुई हैं. 2012 विधानसभा चुनाव में केसरिया पार्टी को 15 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस ने 16 सीटों पर जीत का परचम फहराया था. 2017 के चुनाव में भी बीजेपी के प्रदर्शन में मामूली गिरावट देखने में आई. उसे 14 सीटों से संतोष करना पड़ा. बीजेपी के खाते की सीटें छीन कांग्रेस ने अपना आंकड़ा 17 तक पहुंचा लिया. इस बार बीजेपी ने इस समुदाय को अपने पाले में लाने के लिए अनुसूचित जनजाति के लिए कई योजनाएं लांच की हैं. इसके अलावा भारत को पहली अनुसूचित जनजाति की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू दी हैं. देखने वाली बात होगी कि ये दोनों दांव इस समुदाय के मतदाताओं को इस चुनाव में कैसे प्रभावित करते हैं.
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