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पीएफआई ने कैसे फैलाया देश में अपना जाल, जानें-पूरी कुंडली

नेशनल डेव्हलपमेंट फ्रंट जो केरल में मुस्लिम कट्टरपंथियों का एक प्रमुख संगठन था उसके साथ कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु में कार्यरत मनीता नीथि पासराय ने मिलकर पीएफआई को बनाया. इनमें से एनडीएफ 90 के शुरूआती दशक से ही हिंदू संगठनों...

Updated on: 28 Sep 2022, 08:17 PM

highlights

  • पीएफआई पर भारत सरकार ने लगाया बैन
  • पीएफआई की कुंडली अब आ चुकी है सामने
  • भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लक्ष्य पर कर रहा था काम

नई दिल्ली:

भारत में आतंकी संगठनों का एक इतिहास रहा है. लेकिन पॉपुलर द पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन के तौर पर उभरा जिसने देश के कानूनों के बीच से अपने लिए रास्ता बना लिया था. पीएफआई के सदस्य देश में लगातार हिंसा, अपराध और देश के खिलाफ कार्यवाहियों में लगे रहे. पीएफआई 9 दिसंबर,2006 को अपने वजूद में साम ने आया.  और बाकि आतंकी संगठनों की तरह से इसने खुद से अपना मूल कॉडर तैयार नहीं किया बल्कि इसके बनने में दक्षिण भारत में पहले से ही काम कर रहे मुस्लिम कट्टरवादी संगठन शामिल हुए.  नेशनल डेव्हलपमेंट फ्रंट जो केरल में मुस्लिम कट्टरपंथियों का एक प्रमुख संगठन था उसके साथ कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु में कार्यरत मनीता नीथि पासराय ने मिलकर पीएफआई को बनाया. इनमें से एनडीएफ 90 के शुरूआती दशक से ही हिंदू संगठनों को अपने निशाने पर लेने के लिये बना था तो कर्नाटक फोरम मुस्लिमों को जेहाद के लिए तैयार करने में लगा था. इस संगठन के सदस्यों को युद्ध के लिए तैयार किया जा रहा था. जिन्हें निहत्थे युद्ध करने के लिए मार्शल आर्ट और लाठी-डंडों से ट्रैड किया जा रहा था. इस संगठन का तीसरा घटक एमएनपी को बनाया था एम. गुलाम मोहम्मद ने और इसका उदेश्य था इस्लाम को लेकर किसी भी तरह के विरोध को खत्म करना. 

मुखौटा संगठनों के जरिए लगातार जारी रखा काम

इसकी स्थापना के साथ ही इसके आकाओं ने इस बात का ख्याल रखा कि सिमी की तरह लगने वाले बैन से बचाना है तो कोई मुखौटा तैयार करना होगा. हालांकि संगठन का साफ तौर पर उदेश्य था कि वो इस देश में शरिया लागू करे और गैर मुस्लिमों को अपने अधीन लाएं लेकिन सरकार की आंखों में धूल झोंकने के लिए उसने सामाजिक आर्थिक और समानता के मुद्दों को अपने संविधान में शामिल किया. मुसलमानों के साथ दलितों को जोड़ने और पिछड़ों के लिए भी काम करने का उद्देश्य शामिल किया. हालांकि एजेंडा साफ  एनडीएफ की तर्ज पर मार्शल आर्ट से प्रशिक्षित कट्टरवादी युवाओं को मिलाकर दुश्मन को निबटाने के लिए एक्शन स्क्वायड बनना था. और इसके लिए प्लॉन बनाया मुसलमानों की एक बड़ी आबादी को कट्टरपंथी बनाना. 

शरिया निजाम लाने का था लक्ष्य

सिमी पर बैन लगने के बाद ही इसके वो सदस्य जो अपने आपको बचाने में कामयाब रहे उन्होंने इस संगठन को खड़ा करने में बड़ी भूमिका निबाही.  केरल सरकार ने कई बार कोर्ट में कहा कि पीएफआई में सिमी के पूर्व सदस्य शामिल है. इसकी पुष्टि पीएफआई के आकाओं के नाम से ही हो जाती है. अब्दुल रहमान , ई अबुबकर, और पी कोया जैसै नेता पहले सिमी के सदस्य थे. पीएफआई ने पहले से ही सोच रखा था कि इस संगठन को पूरे देश में खड़ा करना है इसलिए सांगठनिक ढांचे को बेहतर तरीके से तैयार किया था.  13 सदस्यों की एक राष्ट्रीय कार्यकारी परिष्द तैयार की गई. और उसके नीचे नेशनल जनरल असेंबली में हर राज्य से प्रतिनिधित्व दिया गया. इसके अलावा इसके कई फ्रंटल ऑर्गनाईजेशन तैयार किये गये. संगठन का नेतृत्व प्रमुख तौर पर दक्षिण भारतीय नेताओं के हाथ में ही रखा गया. संगठन में आने वाले हर सदस्य को आंका जाता है और फिर जब ये यकीन हो जाता है कि ये जिहादी मानसिकता में शामिल हो चुका है तो उससे शपथ दिलाई जाती है. शपथ में मुख्यतया इस देश में शरिया निजाम स्थापित करने की बात होती है.

सांप्रदायिक दंगों की क्लिपिंग दिखाकर किया जाता था ब्रेनव़श

पीएफआई ने मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के लिए सिमी के तौर तरीकों का ही इस्तेमाल किया. यानि बाबरी मस्जिद, गुजरात और देश के अळग अलग हिस्सों में हुए सांप्रदायिक दंगों के एडिटिड वीडियो क्लिपिंग दिखा दिखा कर उनको ये यकीन दिलाया जाता था कि मुसलमानों पर जुल्म हो रहा है. इसके बाद इन लोगों में से भी अधिक रेडिक्लाईज्ड युवाओं को हिट स्क्वायड या या सर्विस टीम के लिए चुना जाता था. ईडी की पूछताछ में कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया के नेता ने खुलासा किया था कि पीएफआई एक गुप्त विंग भी चलाला है जिसका आरएसएस के चुनिंदा नेताओं को निशाने पर ऱख कर उसे अंजाम तक पहुंचाना है. अपने चयनित लोगों को और उम्दा ट्रैनिंग भी दी जाती थी और इनमें से कुछ नेताओं की सुरक्षा में रखा जाता था तो कुछ हिटमैन में शामिल कर लिया जाता था. इन लोगों को तलवारों चाकूओं और घरों में बने बमों से हमले करने का प्रशिक्षण दिलाने का प्रयास किया जाता था.

कई हत्याओं में आया पीएफआई काडर का नाम

इस तैयारी के बाद पीएफआई ने अपने काम यानि देश में हिंसा फैलाना शुरू कर दिया. देश में पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों पर 1400 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज किये जा चुके है. इनमें यूएपीए, एक्सप्लोसिव एक्ट, आर्म्स एक्ट और दूसरे मामले शामिल है.  हिंसा में शामिल होने से पहले पीएफआई ने अपने कॉडर को सैन्य तर्ज पर अभ्यास शिविरों में प्रशिक्षण देने की व्यवस्था तैयार की है. गैर मुस्लिमों को इस्लाम का दुश्मन बता कर उनपर हिंसा करने के लिए तैयार किया . हिंदु संगठनों के नेताओं को मुख्य रूप से अपने निशाने पर पीएफआई ने शुरू से ही रखा. संगठन ने एक हिट दस्ते को इसी लिये बनाया कि वो हिंदु संगठनों के कार्यकर्ताओं और अब ब्लैशफेमी में शामिल लोगों की हत्या करे. संगठन ने बहुत सी घटनाओं को इसी तरह से अंजाम दिया ताकि लोग आतंक से भर उठे. इसके लिए आईएसआईएस से ये संगठन बहुत प्रभावित रहा. 26 जुलाई को कर्नाटक के बेल्लारी में भारतीय युवा मोर्चे के नेता प्रवीण नेट्टारू की हत्या को इसी तरह से अंजाम दिया गया. बेल्लारी में आरएसएस और बंजरग दल के कार्यकर्ताओं की एक लिस्ट तैयार की गयी थी जिनको एक मुस्लिम मजदूर की हत्या के बदले कत्ल किया जा सकता था. और प्रवीण की हत्या की वजह उसका हलाल मुद्दे पर टिप्पणी करना बना. 

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अपने काडर को बाकायदा ट्रेनिंग देता था पीएफआई

पीएफआई इस तरह के हमले के लिए लगातार मार्शल आर्ट के टीचरों से अपने कॉडर को तैयार कर रहा था. इसका खुलासा हुआ 4 जुलाई को जब निजामाबाद के प्रशिक्षण केन्द्र का पता चला. यहां मार्शल आर्ट एक्सपर्ट अब्दुल खादर ने 200 से अधिक पीएफआई के जिहादियों को ट्रैनिंग दी थी. ट्रैनिंग में नान चाक और लाठियां और बांस की स्टिक शामिल थी.  इस सब मिशन में गरीब या मध्यम वर्ग के मुस्लिम युवाओं पर ही नजर रखी जाती थी. हिंदुत्व घृणा में डूबे इन युवाओं को चाकू, तलवार से हमले की ट्रैनिंग दी जा रही थी और इसके साथ साथ शरीर के नाजुक अंगों पर प्रहार करने का प्रशिक्षण दिया जाता था.

दस्तावेजों का भी इस्तेमाल करता था पीएफआई

इसी तरह के एक छापे में पटना में पुलिस को काफी आपत्तिजनक दस्तावेज मिले. और इन्हीं कागजात में शामलि था इंडिया 2047-टुवाऱ्ड्स रूल ऑफ इस्लाम इन इंडिया. इस दस्तावेज में भारत में इस्लामिक शासन स्थापित करने के लिए प्लॉन था. पीएफआई टार्गेट किलिंग में अपने कॉड़र का इस्तेमाल कर रहा था. केरल में 15 नवंबर 2021 को संजीत हत्या. तमिलनाडु में 2019 में रामालिंगम नाम के युवा की हत्या ( मुस्लिम धर्मांतरण का विरोध करने पर. इसके अलावा नंदू केरल में. बिबिन केरल, शरथ कर्नाटक, आर रूद्रेश कर्नाटक प्रवीण पुजारी कर्नाटक और शशि कुमार तमिलनाडु शामिल है.  पीएफआई हत्याओं या अपने हमलों से आतंक पैदा करने की कोशिश में रहता था. सबसे ज्यादा सनसनीखेज घटना 2010 में पीएफआई के सदस्यों ने की थी जब ईशनिंदा के नाम पर एक प्रोफेसर टीजे जोसेफ के हाथ बेहरमी से काट दिये गये. पीएफआई ने अपने प्रचार में मुख्यता इस बात पर ज्यादा जोर दिया हुआ था कि भारत में मुसलनाम सुरक्षित नहीं है और इस तरह के झूठ को अपने सोशल मीडिया एकाउंट के सहारे बाहर तक फैलाया हुआ था.

सीएए विरोधी प्रदर्शनों में दिखी पीएफआई की ताकत

पीएफआई ने अपनी बढ़ती जमीनी ताकत का ट्रायल सीएए विरोधी प्रदर्शनों में किया. संविधान सुरक्षा आंदोलन के नाम पर पीएफआई ने एक समन्वय मंच स्थापित किया हुआ था. और इस आंदोलन के सहारे पीएफआई ने अपने आपको मुस्लिमों की हित रक्षक सबसे मजबूत संस्था के तौर पर दिखाया और नए नए इलाकों में अपनी पैठ बनाई. लेकिन देश की सुरक्षा एजेंसियों को चौकाने वाली सबसे बड़ी घटना थी, जब आईएसआईएस में केरल से कुछ लोग शामिल हुए और देश छोड़ कर सीरिया, इराक और अफगानिस्तान की आतंकी गतिविधियों में शामिल होने पहुंच गये. जांच में पता चला कि इनमें से कुछ लोग पीएफआई के कार्यकर्ता थे. पीएफआई जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश के रिश्तों पर एजेंसियों ने नजर गड़ाई.

मुस्लिम ब्रदरहुड से प्रभावित

पीएफआई दुनिया भर में आतंकी गतिविधियों के लिए वैचारिक ताकत देने वाले मुस्लिम ब्रदरहुड से प्रभावित है. यहां तक की मुस्लिम ब्रदरहुड़ की मुर्सी के नेतृत्व में बनी सरकार जिसको मिस्र में 30 अगस्त 2013 में हटा दिया गया था उस दिन को एकजुटता दिवस के रूप में मनाता है. हमास के कारनामों के  समर्थन के भरोसे वाले ट्वीट भी इसके नेता लगातार करते है.  जांच एजेंसियों ने पाया था कि पीएफआई के 21कार्यकर्ता आईएसआईएस में शामिल हुए थे. इससे पहले टीजे जोसेफ के हाथ काटने वाले लोगों से एक्यूआईएस के ऐसे वीडियों प्रशिक्षण वीडियों मिले थे जिसमें निर्दयतापूर्वक हत्या करने के तरीके बताएं गये थे. पीएफआई पिछले कुछ समय से फिलिस्तीन को लेकर तुर्की के कई कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहा था. और तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन को इस लिये नायक बनाने में जुटे थे, क्योंकि वो तुर्की में सच्चा इस्लामी शासन वापस लाये है. 

अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठनों से भी जुड़े तार

पीएफआई अब अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठनों का ध्यान भी आकर्षित करने में कामयाब हो रहा था. इसमें पार्टी आफ इस्लामिक रिन्यूवल एक है. पार्टी ने ट्वीटर पर संदेश भेज कर भारत सरकार के खिलाफ क्रात्रिकारी सेना बनाने का आग्रह किया. और जांच में पता चला कि ये अकाउंट सऊदी निर्वासित कट्टरपंथी मोहम्मद अल मसारी का था जो कट्टरपंथी संगठन हिज्ब उत तहरीर का पूर्व सदस्य था. अभी मसारी यूके में रहता है. पीएफआई की इतनी ताकत के बढ़ने के पीछे इसको मिलने वाली रकम का बड़ा हाथ है. देश विदेश से इस संगठन को भारी मात्रा में अवैध धन मिलता है. भारत और विदेशों में रहने वाले कट्टरपंथियों से हासिल रकम के अलावा ये अपने पैसे वाले सर्मथकों कसे जकात भी वसूलता है. और इस अवैध धन को कानून की निगाह से बचाने के लिए के लिए काफी जाल बिछाया . इसके वित्त की जांच करने के दौरान सीबीड़ीटी को पता चला था कि पीएफआई के 85 खातों में 36 बैंक खातों की हैसियत उनकी दी गई रकम से मैच नहीं खाती है.

फंडिंग के लिए बनाया था कठिन जाल

ईडी की जांच ने इस संगठन की पोल खोल कर दी थी. जांच में सामने आया कि खाड़ी देशों से फंड हासिल करने के लिए संगठन ने एक सुव्यवस्थित ढांचा तैयार किया हुआ है. और हवाला के जरिये रकम भारत में लाई जा रही है. मनी लांड्रिंग के लिए पीएफआई ने मुन्नार विला विस्टापरियोजना और अबू धाबी के दरबार रेस्तरां का इस्तेमाल किया. मुन्नार विला विस्टा परियोजना में बेहिसाब नकदी का इस्तेमाल किया गया. परियोजना में बेनामी शेयरधारक संयुक्त अरब अमीरात में थे बाद में जिन्होंने अपने शेयरों को पीएफआई के नेताओं को ट्रांसफर कर दिया. ईडी की जांच में सामने आया कि संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कतर, कुवैत, बहरीन और सऊदी अरब सहित विभिन्न खाड़ी देशों में जिला कार्यकारी समितियों का गठन भी किया हुआ है.  इंडिया फ्रेटरनिटी फोरम (आईएफएफ) और इंडियन सोशल फोरम (आईएसएफ) पीएफआई के विदेशी मोर्चे थे और प्रवासी मुसलमानों को उनकी विचारधारा के अनुरूप राजनीतिक रूप से शामिल करना था और भारत में पीएफआई की गतिविधियों के लिए धन का आयोजन करना था. उनकी कार्यकारी समितियां भारत में पीएफआई को बिना कोई निशान छोड़े पैसा भेजने के लिए जिम्मेदार थीं. धन आम तौर पर नकद में एकत्र किया जाता था और हवाला चैनलों (गुप्त रूप से) के माध्यम से भारत में प्रेषित किया जाता था या इसे भारत स्थित रिश्तेदारों और पीएफआई के सदस्यों के दोस्तों और विदेशों में काम करने वालों के खातों में भेजकर प्रेषण के रूप में छिपाया जाता था. आईएफएफ खाड़ी में भारतीय मुस्लिम प्रवासियों से धन जुटाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में उभरा था.

पीएफआई ने कई बार दिखाई अपनी ताकत

हिजाब मुद्दे से देश में एक बार फिर पीएफआई ने अपनी ताकत को दिखाने की कोशिश की. कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया ने दो मुस्लिम छात्राओं आलिया असदी और मुस्कान जैनब के सहारे हिजाब पहनने की मांग शुरू की. दोनों ही लड़कियों के परिवारों के पीएफआई और सीएफआई के साथ गहरे रिश्ते थे. महज कुछ छात्राओं के सहारे शुरू किये इस विवाद से पीएफआई ने देश भर का माहौल गर्माने में सफलता हासिल की. पीएफआई किस तरह से मुस्लिम बच्चों में गैर मुस्लिमों के खिलाफ जहर भऱ रहा था इसका एक उदाहरण 21 मई को केरल के अलाप्पुझा में देखने को मिला. पीएफआई की रैली में इसके एक कार्यकर्ता के बेटे ने हिंदुओँ और ईसाईयों को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी अगर केरल में वो पीएफआई के तरीकेसे नहीं रहे. इस मामले को खुद केरल उच्च न्यायलय ने केरल सरकार को इसके जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. पीएफआई पर झारखंड सरकार ने पहले ही प्रतिंबंध लगा दिया था और हाल ही में कई राज्यों की सरकारों ने इस पर प्रतिबंध लगाने का केन्द्र सरकार से आग्रह किया था.