Vasudev Dwadashi 2022 Shubh Yog: वासुदेव द्वादशी पर दिखता है सूर्य चंद्र का अनोखा संगम, इस शुभ योग में साक्षात नजर आता है श्री कृष्ण का दिव्य रूप
Vasudev Dwadashi 2022 Shubh Yog: जब सूर्य से चंद्र के बीच का अंतर 133 डिग्री से 144 डिग्री तक होता है तब तक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि और 313 डिग्री से 324 डिग्री की समाप्ति तक वासुदेव द्वादशी रहती है. द्वादशी तिथि का खास नाम यशोवाला भी है.
नई दिल्ली :
Vasudev Dwadashi 2022 Shubh Yog: वासुदेव द्वादशी भगवान कृष्ण को समर्पित है. यह देवशयनी एकादशी के अगले दिन, आषाढ़ मास के दौरान मनाया जाता है. यह चतुर मास (मानसून के चार पवित्र महीने) की शुरुआत का प्रतीक है. इस दिन भगवान कृष्ण और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. आषाढ़, श्रवण, भाद्रपद और अश्विन के चार महीनों के लिए कठोर तपस्या करने वाले भक्त उल्लेखनीय लाभ और आत्मा की मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं. वासुदेव द्वादशी भगवान वासुदेव (भगवान श्री कृष्ण) को समर्पित द्वादशी दिवस है. शयन एकादशी या देव शयनी एकादशी के ठीक एक दिन बाद आषाढ़ शुक्ल द्वादशी को पड़ती है. पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु एकादशी का प्रतिनिधित्व करते हैं और देवी महालक्ष्मी द्वादशी का प्रतिनिधित्व करती हैं.
वासुदेव द्वादशी 2022 शुभ योग (Vasudev Dwadashi 2022 Shubh Yog)
जब सूर्य से चंद्र के बीच का अंतर 133 डिग्री से 144 डिग्री तक होता है तब तक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि और 313 डिग्री से 324 डिग्री की समाप्ति तक वासुदेव द्वादशी रहती है. इस 12 वे चंद्र तिथि के स्वामी भगवान विष्णु हैं. द्वादशी तिथि का खास नाम यशोवाला भी है. अगर सोमवार या शुक्रवार के दिन या बुधवार के दिन द्वादशी तिथि पड़े तो यह बहुत ही सिद्धदायी होती है.
अगर रविवार के दिन द्वादशी तिथि पड़ रही है तो ककरच दग्ध योग का निर्माण होने की वजह से यह तिथि मध्यम फल प्रदान देती है. दोनों ही पक्षों की द्वादशी के दिन शिव का वास शुभ स्थिति में होने के कारण इस तिथि के दिन भगवान शिव का पूजन बहुत ही शुभ माना जाता है.
वासुदेव द्वादशी 2022 से जुड़ी खास बात (Vasudev Dwadashi 2022 Special)
वासुदेव द्वादशी सदियों से कई भक्तों के लिए महत्वपूर्ण अर्थ रखता है. इसकी व्यापकता वराह पुराण में खोजी गई थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव ऋषि नारद ने भगवान कृष्ण के माता-पिता को इस महत्वपूर्ण दिन पर सख्त उपवास रखने का सुझाव दिया था. इसलिए, जोड़े द्वारा पूर्ण समर्पण और शुद्ध इरादों के साथ उपवास रखने के बाद ही, वासुदेव और देवकी को कृष्ण के रूप में एक बच्चे का आशीर्वाद मिला. चातुर्मास व्रत भी वासुदेव द्वादशी उत्सव के साथ शुरू होता है.
इस दिन चतुर मास की शुरुआत होती है. भक्त भगवान कृष्ण और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं. आषाढ़, श्रवण, भाद्रपद और अश्विन के चार महीनों के लिए भक्त कई लाभ और आत्मा की मुक्ति के लिए कठोर तपस्या करते हैं. इस दिन पुजारियों को चावल, फल और वस्त्र दान करना शुभ माना जाता है.
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