Navratri 2018: नवरात्रि के हर तीसरे दिन होती है मां चन्द्रघंटा की पूजा, इन बातों का रखें ध्यान
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और व्रत त्योहारों में नवरात्र को सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है और हमारे देश में हिन्दू समुदाय के लोग इसे लगभग पूरे देश बड़े धूमधाम से मनाते हैं.
नई दिल्ली:
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और व्रत त्योहारों में नवरात्र को सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है और हमारे देश में हिन्दू समुदाय के लोग इसे लगभग पूरे देश बड़े धूमधाम से मनाते हैं.
देवी माँ के तृतीय ईश्वरीय स्वरुप का नाम मां चन्द्रघंटा है.
चन्द्रघण्टा/चन्द्रघंटा शब्द का क्या अर्थ है?
चन्द्रमा हमारे मन का प्रतीक है. मन का अपना ही उतर चढ़ाव लगा रहता है. प्राय:, हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिये और अपने मन को साफ़ करने के लिये संघर्ष करते हैं. मैं कहता हूँ कि ऐसा नहीं होने वाला. आप अपने मन से छुटकारा नहीं पा सकते. आप कहीं भी भाग जायें, चाहे हिमालय पर ही क्यों न भाग जायें, आपका मन आपके साथ ही भागेगा. यह आपकी छाया के समान है.
जैसे ही हमारे मन में नकरात्मक भाव, विचार आते हैं तो हम निरुत्साहित, अशांत महसूस करते हैं. हम विभिन्न तरीकों से इनसे पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हैं पर यह मात्र कुछ समय के लिए ही काम करता है. कुछ समय पश्चात वही विचार फिर हमें घेर लेते हैं और वापिस वहीँ पहुँच जाते हैं जहाँ से हमने शुरुआत करी थी. अतः इन विचारों से पीछा छुड़ाने के संघर्ष में न फँसे. ‘चंद्र’ हमारी बदलती हुई भावनाओं, विचारों का प्रतीक है (ठीक वैसे ही जैसे चन्द्रमा घटता व बढ़ता रहता है). ‘घंटा’ का अर्थ है जैसे मंदिर के घण्टे-घड़ियाल (bell). आप मंदिर के घण्टे-घड़ियाल को किसी भी प्रकार बजाएँ, हमेशा उसमे से एक ही ध्वनि आती है. इसी प्रकार एक अस्त-व्यस्त मन जो विभिन्न विचारों, भावों में उलझा रहता है, जब एकाग्र होकर ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाता है, तब ऊपर उठती हुई दैवीय शक्ति का उदय होता है - और यही चन्द्रघण्टा/चन्द्रघंटा का अर्थ है.
और पढ़ें: नवरात्रि 2018 : यहां पढ़ें देवी दुर्गा के नौ रूपों की
एक ऐसी स्थिति जिसमे हमारा अस्त-व्यस्त मन एकाग्रचित्त हो जाता है. अपने मन से भागे नहीं - क्योंकि यह मन एक प्रकार से दैवीय रूप का प्रतीक, अभिव्यक्ति है. यही दैवीय रूप दुःख, विपत्ति, भूख और यहाँ तक कि शान्ति में भी मौजूद है. सार यह कि सबको एक साथ लेकर चलें - चाहे ख़ुशी हो या गम - सब विचारों, भावनाओं को एकत्रित करते हुए एक विशाल घण्टे -घड़ियाल के नाद की तरह. देवी के इस नाम ‘चन्द्रघण्टा/चन्द्रघंटा’ का यही अर्थ है और तृतीय नवरात्रि के उपलक्ष्य में इसे मनाया जाता है.
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