पाकिस्तान के लिए मुसीबत तो चीन के लिए कब्रगाह क्यों बन रहा है बलूचिस्तान?
बलूचिस्तान में चीन के लोगों को निशाना बनाकर मारा जा रहा है. इसके बाद भी चीन बलूचिस्तान छोड़ने का नाम नहीं ले रहा है क्योंकि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा ( CPEC) चीन की एक महत्वपूर्ण परियोजना है, जबकि बलूच लोग इस परियोजना से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं.
नई दिल्ली:
पाकिस्तान के सूबे बलूचिस्तान में रविवार के दिन ग्वादर बंदरगाह के इलाके में एक बस पर उग्रवादियों ने हमला किया जिसमें कुछ चाइनीज इंजीनियर्स के मारे या घायल होने की अलग-अलग खबरें हैं. इस घटना की जिम्मेदारी बलूचिुस्तान लिबरेशन आर्मी यानी बीएलए ने ली है. बलूचिस्तान में बगावत तो कई दशकों से चल रही है लेकिन पिछले कुछ वक्त से चीनी नागरिकों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. आखिरकार बलूचिस्तान में ऐसा क्या है जिसके लिए चीन अपनी जान-माल के नुकसान को भी सहन कर रहा है और क्यों बलूचिस्तान के बागी इस सूबे को चीन का कब्रगाह बनाने पर तुले हुए हैं.
बलूचिस्तान चीन के लिए इतना अहम क्यों है?
13 अगस्त को जो हमला हुआ उसका निशाना चीनी इंजीनियर्स को ले जा रही बस ही थी. इससे पहले बलूचिस्तान में अप्रैल 2022 में चीन के प्रोफेसर्स को ले जा रही एक वैन पर एक महिला फिदायीन ने हमला किया था जिसमें चार चीनी प्रोफेसर्स की मौत हो गई थी. इसके अलावा 2020, 2018 और 2017 में भी चीनी नागरिकों पर हमले हो चुके हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बलूचिस्तान में हुए हमलों में 23 चीनी नागरिक मारे जा चुके हैं. अब हम आपको बताते हैं कि बलूचिस्तान चीन के लिए इतना अहम क्यों है. दरअसल बलूचिस्तान के समुद्री किनारे पर मौजूद ग्वादर बंदरगाह चीन की उस रणनीति का एक अहम हिस्सा है जिसके तहत वो करोड़ों डॉलर्स खर्च करके चाइना-पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरिडोर ( CPEC) बना रहा है.
क्या चीन तैयार कर रहा है भारत के लिए जाल?
चीन की कोशिश है कि इस कॉरिडोर के जरिए वो ग्वादर बंदरगाह का उपयोग करके सड़क मार्ग अपने प्रॉडक्ट्स को बाकी देशों में तो भेजे ही साथ ही मिडिल ईस्ट के देशों से अपने एनर्जी इंपोर्ट के लिए भी सुरक्षित रास्ता तैयार कर ले. इस प्रोजेक्ट के तहत चीन अपने शिनजियांग सूबे से ग्वादर पोर्ट तक हाइवेज का ऐसा नेटवर्क तैयार कर रहा है जिसकी मदद से वो अपने इलाके में तैयार होने वाले सामान जमीनी मार्ग से ग्वादर पोर्ट तक पहुंमचा कर मिडिल ईस्ट, अफ्रीका और यूरोपीय देशों में निर्यात कर सके और मिडिल-ईस्ट से खरीदे गए ऑयल को जमीनी मार्ग से हासिल कर सके. अभी तक चीन अपने 80 फीसदी एनर्जी इपोर्ट के लिए हिंद महासागर वाले मार्ग पर निर्भर है. चीन को अंदेशा है कि अगर भारत के साथ आने वाले वक्त में युद्ध जैसे हालात बनते है तो इंजडियन नेवी उसकी इस कमजोर नस को दबा कर हिंद महासागर में नाकेबंदी कर सकती है.
पाकिस्तान को डूबने से क्यों बचाया?
यही नहीं, अरब सागर के जरिए हिंद महासागर में अपना दबदबा स्थापित करने के लिए चीन ग्वादर पोर्ट पर अपना नौसैनिक अड्डा भी बनान चाहता है. ठीक वैसे ही जैसे उसने अफ्रीका महाद्वीप के देश जिबूती में बनाया है. अब आप समझ गए होंगे कि चीन के लिए बलूचिस्तान का ग्वादर पोर्ट बेहद अहम है. और इसी अहमियत के मद्देनजर चीन पिछले 10 सालों में अपने CpEC प्रोजेक्ट पर ना सिर्फ करोड़ों डॉलर्स खर्च कर चुका है बल्कि पाकिस्तान की इकोनोमी को डूबने से बचाने के लिए उसे लगातार कर्ज दे रहा है. बलूचिस्तान में चल रही चीनी प्रोजेक्ट्स के लिए उसके कई नागरिक इस इलाके में की सालों से रह रहे हैं और वो अब बलूच बागियों के निशाने पर आ गए हैं.
चीन के लिए खतरा क्यो बना टीटीपी?
जापान की एक वेबसाइट निक्केई एशिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बलूचिस्तान के इलाके में चीनी लोगों कारोबार और मार्केट्स पर प्रभाव बढ़ता जा रहा है और स्थानीय लोगों की आमदनी और रसूख पर इसका नकारात्मक असर पड़ रहा है. यही वजह है कि ना सिर्फ बलूचिस्तान के बागी बल्कि पाकिस्तान तहरीक-ए-तालिबान यानी टीटीपी के आतंकवादी भी बलूचिस्तान में चीनी नागरिको या उनकी कंपनियों को निशाना बना रहे हैं. अब सवाल ये उठता है कि चीन इस इलाके में अपने लोंगों को बचाने के लिए क्या कर रहा है. लेकिन इसका जबाव देने से पहले हम आपको बलूचिस्तान के इतिहास और भूगोल के रूबरू कराते हैं ताकि आपको ये अंदाजा हो सके है पाकिस्तान के इस सूबे में हालात इतने संगीन क्यों हो गए हैं?
बलूचिस्तानियों के निशाने पर चीन क्यों?
दरअसल, बलूचिस्तान के लोग खुद को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं मानते हैं. बलूचों का मानना है कि 1947 में आजादी के बाद जिन्ना के पाकिस्तान ने धोखे से उनकी रियासत को गुलाम बना लिया था जबकि ब्रिटिश राज के साथ हुए समझौते के मुताबिक आज के बलूचिस्तान और उस वक्त की कलत रियासत को आजाद मुल्क का दर्जा हासिल होना चाहिए था. बलूचिस्तान में ऐसे कई बागी संगठन हैं, जो हथियार उठाकर अपने इलाके की आजादी के लिए कई दशकों से संघर्ष कर रहे हैं. बलूच लिबरेशन आर्मी यानी BLA भी इनमें से एक है और इसी BLA ने रविवार को चीनी इंजीनियर्स की बस पर हुए हमले को अंजाम दिया है. बलूचिस्तान पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 43 फीसदी हिस्सा है जबकि उसकी आबादी पाकिस्तान की कुल आबादी का महज छह फीसदी ही है.
पाकिस्तानियों के ऊपर खतरा क्यों?
बलूचिस्तान की धरती तमाम तरह के खनिजों से भरपूर है और पाकिस्तान आर्मी इस इलाके पर कब्जा बनाए रखने के लिए किसी भी हद कर जा सकती है. साल 2006 में तो जनरल परवेज मुशर्रफ के शासनकाल के दौरान पाकिस्तान आर्मी ने दिग्गज बलूच लीडर नवाब अकबर खान बुग्ती की हत्या कर दी थी. अकबर खान कोई आम अलगाववादी लीडर नहीं थे. वो बलूचिस्तान के गवर्नर रह चुके थे और बलूच ट्राइब के सबसे बड़े बुग्ती कबीले के लीडर थे. नवाब बुग्ती की मौत के बाद बलूचिस्तान के बागी एकजुट हो गए और अब उनके निशाने पर पाकिस्तानी फौज के साथ साथ चीन के नागरिक भी है. बलूचिस्तान में अपने लोगों पर हो रहे लगातर हमलों से चीन भी बेचैन है और उसकी सरकार पाकिस्तान को कई बार इन हमलों को रोकने में नाकाम रहने के लिए लताड़ भी लगा चुकी है.
क्या चीन और बलूचिस्तान के बीच होगा युद्ध?
साल 2014 में पाकिस्तान ने चीन के लोगों की सुरक्षा के लिए एक स्पेशल प्रोटेक्शन यूनिट भी बनाई ती जिसमें चार हजार की संख्या में सुरक्षाबलों को लगाया गया था. CPEC प्रोजेक्ट्स से जुड़े चीनी लोगों रहने के लिए अलग बिल्डिंग्स और कैंप्स भी लगाए गए हैं. लेकिन हमले रुकने का नाम नहीं ले रहै हैं. एक संभावना ये भी जताई जा रहा है कि पाकिस्तान में अपने लोगों पर हो रहे हमलों के मद्देनजर चीन बलूचिस्तान में अपनी फौज भी तैनात सकता है. और अगर ऐसा होता है तो ये बलूचिस्तान की बागियों और चीन के बीची सीधी जंग का आगाज होगा.
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