महाराष्ट्र: वर्जिनिटी टेस्ट कराना अब पड़ सकता है मंहगा, महिला को बाध्य करने पर हो सकती है जेल
महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को कहा कि वह किसी महिला को कौमार्य परीक्षण के लिए बाध्य करने को शीघ्र ही दंडनीय अपराध की श्रेणी में शामिल करेगी.
नई दिल्ली:
किसी भी महिला को वर्जिनिटी टेस्ट (Virginity Test) के लिए बाध्य करना अब आपको जेल की सलाखों के लिए पहुंचा सकता है. महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को कहा कि वह किसी महिला को कौमार्य परीक्षण के लिए बाध्य करने को शीघ्र ही दंडनीय अपराध की श्रेणी में शामिल करेगी. दरअसल, राज्य के कुछ समुदायों में यह परंपरा है. इन समुदायों में नवविवाहित महिला को यह साबित करना होता है कि शादी से पहले वह वर्जिन यानी कुंआरी थी.
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बता दें कि कुछ समय पहले बंगाल के एक प्रोफेसर ने वर्जिनिटी की तुलना 'सीलबंद बोतल' से की थी. राज्यमंत्री रंजीत पाटिल ने बुधवार को इस मुद्दे पर कुछ सामाजिक संगठनों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. शिवसेना प्रवक्ता नीलम गोरहे भी इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थीं. मंत्री रंजीत पाटिल ने बताया कि कौमार्य परीक्षण (virginity test) को यौन हमले का एक प्रकार समझा जाएगा.... विधि एवं न्याय विभाग के साथ परामर्श के बाद एक परिपत्र जारी किया जाएगा, जिसमें इसे 'दंडनीय अपराध' घोषित किया जाएगा.
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उन्होंने आगे कहा कि प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने वाला यह रिवाज कंजरभाट भाट और कुछ अन्य समुदायों में है. इसी समुदाय के कुछ युवकों ने इसके खिलाफ ऑनलाइन अभियान शुरु किया है. इस बीच, पाटिल ने यह भी कहा कि उनका विभाग यौन हमले के मामलों की हर दो महीने पर समीक्षा करेगी और यह सुनिश्चित करेगा कि अदालतों में ऐसे मामले कम लंबित रहें.
दरअसल, समाज की कुरीतियों में से एक 'वर्जिनिटी टेस्ट' को खत्म करने को लेकर पुणे के कुछ युवकों ने मुहिम छेड़ी थी. महाराष्ट्र सरकार का यह फैसला पुणे में एक समुदाय विशेष द्वारा व्हाट्सएप पर चलाए जा रहे इस मुहिम की ही सफलता माना जा रहा है. गौरतलब है कि वर्जिनिटी टेस्ट सदियों पुरानी प्रथा है जिसके तहत नव-विवाहित महिला की वर्जिनिटी टेस्ट की जाती है. इस टेस्ट के बाद उस समाज के बडे़ लोग संबंधित महिला को पवित्र या अपवित्र घोषित करते हैं. आज के आधुनिक भारत में आज वर्जिनिटी टेस्ट एक दुलर्भ चीज है. और अब यह कुछ छोटे जगहों या जाति तक ही सीमित है.
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कंजरभाट जाति में आज भी इस टेस्ट को किया जाता है और शादी होने के बाद इस टेस्ट के आधार पर ही नव-विवाहित महिला को पवित्र घोषित किया जाता है. लेकिन आज के समाज में ऐसी कुरीतियों को दूर करने के लिए नवयुवक काम कर रहे हैं. पुणे के पास इन दिनों इस कूरीति के खिलाफ विशेष अभियान चलाया जा रहा है. इस मुहिम के तहत महिलाओं के अधिकारी की बात की जा रही है साथ ही इस टेस्ट को महिलाओं और समाज के खिलाफ बताया जा रहा है. आज युवा व्हाट्सएप की मदद से अपने आसपास के लोगों को इस प्रथा के विरोध में आवाज उठाने के लिए प्रेरित कर रहे है.
बता दें कि बीते कई दशकों में बड़ी संख्या में महिलाओं ने इस कूरीति को झेला. इनमें से ही एक महिला 55 वर्षीय लीलाबाई ने बताया कि उन्हें भी इस टेस्ट से करीब चार दशक पहले होकर गुजरना पड़ा था. लीलाबाई ने बताया कि उस समय उनकी उम्र 12 साल थी. उस समय मैं जवान थी और मुझे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि यह मेरे साथ क्या और क्यों हो रहा है. लीलाबाई इस प्रथा के खिलाफ कई वर्षों तक अपना रोष प्रकट करती रही हैं. हालांकि उस दौरान वह इस प्रथा को रोकने के लिए कुछ नहीं कर पाईं. यही वजह थी कि वह अपनी बेटी को भी इससे नहीं बचा सकीं. लेकिन अब वह अपने कंजरभट समाज में इस प्रथा का विरोध जोरशोर से कर रही हैं.
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