'चिट्टा' के नशे में बर्बाद हो रहे पहाड़ों के युवा, विदेशी तस्करों की मिलीभगत भी आ रही सामने
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बढ़ रहा है चिट्टा का कारोबार, युवा हो रहे हैं नशे के आदी
नई दिल्ली:
पहाड़ों की खूबसूरत वादियां नशे के चंगुल में फंसती जा रही हैं। सीधे-सादे युवा सफेद रंग के पाउडर 'चिट्टा' के शिकार होते जा रहे हैं। देवभूमि के रूप में प्रचलित हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड 'उड़ता हिमाचल और उत्तराखंड' बन रहा है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश नशे में तीसरे नंबर पर आ गया है। वहीं इस समस्या में सबसे खतरनाक बात यह सामने आ रही है कि नशे के इस कारोबार में विदेशी तस्करों की मिलीभगत भी है।
हाईकोर्ट ने भी सरकार को चेताया
साल 2017 में शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज के एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने तत्कालीन राज्य सरकार को आगाह किया था कि 40 फीसदी युवा नशे के आदी हो गए हैं।
नशे पर सीएम जयराम एक्शन में
पंजाब से सटा होने की वजह से नशे की सप्लाई पहाड़ों में आसानी से हो रही है। इसे देखते हुए सीएम जयराम का कहना है कि राज्य में चौकसी बढ़ाने के साथ दूसरे राज्यों की सरकारों से बात कर इस पर रोक लगाई जाएगी। इसके अलावा कड़ा कानून बनाकर तस्करों पर लगाम लगाने की पूरी कोशिश भी की जाएगी।
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28 अगस्त यानी मंगलवार को जयराम ठाकुर की पहल पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की चंडीगढ़ में संयुक्त बैठक हुई। चारों राज्यों ने मिलकर ड्रग माफिया पर शिकंजा कसने की बात कही है।
हिमाचल प्रदेश में 'चिट्टा' का बढ़ा अवैध कारोबार
हिमाचल प्रदेश के गृह सचिव बीके अग्रवाल भी मानते हैं कि पहले ब्राउन शुगर या स्मैक का चलन था, लेकिन हाल ही में 'चिट्टा' का इस्तेमाल बढ़ा है। गृह विभाग के अनुमान के मुताबिक जनवरी से जून, 2017 में हेरोइन, स्मैक और ब्राउन शुगर के कुल 1,177 मामले सामने आए। जबकि 2018 में यह बढ़कर 3,360 मामले हो गए। 2017 में 695 गिरफ्तारियां हुई थीं तो 2018 में गिरफ्तारियों की संख्या बढ़कर 831 हो गई है।
उत्तराखंड का भी बुरा हाल
उत्तराखंड में नशे के कारोबार को लेकर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को ना सिर्फ फटकार लगाई है। बल्कि चिट्टा, ड्रग्स, चरस, स्मैक और गांजा पर लगाम लगाने के लिए स्पेशल ट्रास्क फोर्स बनाने का आदेश दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में नशे का सालाना कारोबार 500 करोड़ रुपए का है। 2017 में पुलिस ने 13 जिलों से 10 करोड़ रुपये की कीमत से भी ज्यादा कीमत के नशे की खेप बरामद की है। इसमें से 70 फीसदी से ज्यादा देहरादून में जब्त हुआ। इस दौरान 1091 लोगों की गिरफ्तारी हुई।
नशे की गिरफ्त में क्यों पहुंच रहे युवा
सवाल यह है कि आखिर किस वजह से युवा नशे की तरफ जा रहे हैं। एक वजह तो बेरोजगारी है। हिमाचल प्रदेश के रोजगार कार्यालयों में लगभग 82,88,048 बेरोजगार पंजीकृत हैं। वहीं, उत्तराखंड में 94,582 महिला बेरोजगार और 88,364 पुरुष बेरोजगार पंजीकृत हैं। इतनी संख्या में जब युवा बेरोजगार होंगे तो उनकी हताशा बढ़ेगी और उनका नशे की तरफ आकर्षित होना अतिशोयक्ति नहीं होगी।
इसके साथ माता-पिता बच्चों के लाड़ प्यार के चक्कर में उनकी हर अच्छी बुरी आदत को नजर अंदाज करते हैं। इसकी वजह से बच्चा वो काम करने लगता है जो परिवार को संकट में डाल देता है और अपना जीवन भी बर्बाद कर लेता है।
नशे के कारोबार में विदेशियों का भी हाथ
नशे के कारोबार में विदेशियों के भी हाथ सामने आ रहे हैं। ड्रग माफिया में अफ्रीकी और नाइजीरियाई तस्करों के शामिल होने के भी सबूत सामने आए हैं। पुलिस ने कुछ विदेशी ड्रग तस्करों को पकड़ा भी है। फिर भी आशा की जा रही है पड़ेसी राज्यों की मदद से नशे के इस कारोबार पर रोक लग सकेगी।
क्या होता है 'चिट्टा'
चिट्टा हेरोइन का संशोधित प्रकार है। इसकी एक से दो डोज लेने पर ही व्यक्ति इसका आदी हो जाता है। चिट्टा बेहद ही महंगा होता है। इसका एक डोज पांच सौ रुपए तक बिकता है। यह एक सफेद रंग का पाउडर होता है जिसे नोट पर रखकर आग लगाकर सूंघते हैं।
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