सुप्रीम कोर्ट में बोले सिंघवी, महिलाओं के खतना की प्रक्रिया इतनी भी क्रूर नहीं, 9-10 अगस्त को भी जारी रहेगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को भी मुस्लिम दाऊदी बोहरा समुदाय की लड़कियों का खतना करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई जारी रही।
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को भी मुस्लिम दाऊदी बोहरा समुदाय की लड़कियों का खतना करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई जारी रही। सुनवाई के दौरान खतना के समर्थन में खड़े संगठन की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि खतना करने का तरीका इतना क्रूर नहीं है जितना इसे बताया जा रहा है।
उन्होंने कहा,' हमारा समाज 100 प्रतिशत साक्षरता की ओर बढ़ने वाला प्रगतिशील समाज है। खतना की प्रक्रिया इतनी क्रूर नहीं है, जैसा याचिकाकर्ता बता रहे हैं।'
सिंघवी ने मामले को संविधान पीठ को भेजने की मांग करते हुए कहा कि बोहरा समाज में यह चलन सदियों से चला आ रहा है और यह एक अनिवार्य धार्मिक नियम है। इस पर विस्तृत सुनवाई की जरुरत है।
वहीं इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि कैसे किसी को बिना वैज्ञानिक आधार के जननांग का हिस्सा काटने की इजाज़त दी जा सकती है।
इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई 9-10 अगस्त को भी जारी रहेगी।
खतने की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल
गौरतलब है कि सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रथा को लेकर कई सवाल उठाए थे।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह प्रथा न सिर्फ महिलाओं की निजता के अधिकार का उल्लंघन करती है बल्कि यह लैंगिक संवेदनशीलता का भी मामला है। साथ ही यह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक भी हो सकती है।
उन्होंने कहा कि महिला का खतना आदमी को खुश करने के लिए किया जाता है जैसे कि वह एक जानवर हो। आखिर यह दायित्व किसी महिला पर ही क्यों हो कि वह अपने पति को खुश करे।
वहीं जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह किसी भी व्यक्ति के पहचान का केंद्र बिंदु होता है और यह कृत्य ( खतना) उसकी पहचान के खिलाफ है।
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केंद्र सरकार ने भी इस प्रथा का किया है विरोध
केंद्र सरकार ने अदालत में दायर इस याचिका का समर्थन किया है जिसमें दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों का खतना किए जाने की प्रथा का विरोध किया गया है।
केंद्र सरकार ने याचिका का समर्थन करते हुए कहा है कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है और वह इस पर रोक का समर्थन करता है।
इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से कहा जा चुका है कि इसके लिए दंड विधान में सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है।
आखिर क्या है मामला?
खतना एक दर्दनाक और खतरनाक परंपरा है। महिला जननांग के एक हिस्से क्लिटोरिस को रेजर ब्लेड से काट कर खतना किया जाता है। वहीं कुछ जगहों पर क्लिटोरिस और जननांग की अंदरूनी स्किन को भी थोड़ा सा हटा दिया जाता है।
सात साल की उम्र में मुस्लिम लड़की का खतना किया जाता है। इस दौरान जननांग से काफी खून बहता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, खतना चार तरीके का हो सकता है- पूरी क्लिटोरिस को काट देना, जननांग की सिलाई, छेदना या बींधना, क्लिटोरिस का कुछ हिस्सा काटना।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिहाड़ की और से दायर इस याचिका पर 9-10 अगस्त को भी सुनवाई जारी रहेगी। इससे पहले अदालत ने इस याचिका पर पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था।
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