दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं के खतने पर सुनवाई करेगी संवैधानिक पीठ
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित महिलाओं के खतना पर सवाल उठाने वाली याचिका को एक संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में प्रचलित महिलाओं के खतना पर सवाल उठाने वाली याचिका को एक संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया. समुदाय की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी के अनुरोध पर मुद्दे को संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया गया. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की एक पीठ ने कहा कि वे संवैधानिक पीठ के विचार के लिए सवाल तैयार करेंगे.
तीन न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा इससे पहले हुई सुनवाई में केंद्र ने दाऊदी बोहरा के बीच खतने को शारीरिक अखंडता के साथ-साथ निजता और सम्मान के उल्लंघन रूप में वर्णित किया था.
हालांकि समुदाय ने धर्म और धार्मिक परपंराओं की स्वतंत्रता के आधार पर इसका बचाव किया था.
देशभर में मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाली परंपरा 'खतना' के विरोध और समर्थन में लोग दो भागों में विभाजित हो गए है लेकिन आज भी अधिकत्तर लोगों को इसकी पूर्ण जानकारी से नहीं है. तो आइए हम आपको बताते है कि असल में खतना किसे कहते है?
आखिर क्या है महिलाओं के साथ होने वाली क्रुर प्रकिया खतना?
1. इसमें महिला जननांग के एक हिस्से क्लिटोरिस को ब्लेड से काट कर खतना किया जाता है। वहीं कुछ जगहों पर क्लिटोरिस और जननांग की अंदरूनी स्किन को भी थोड़ा सा हटा दिया जाता है। ताकि उनमें सेक्स की इच्छा कम हो.
2. 15 साल से कम उम्र की मुस्लिम लड़की का खतना किया जाता है। इस दौरान जननांग से काफी खून बहता है। मुस्लिम समुदाय के लोग इसे धार्मिक परंपरा बताकर सही ठहराने की कोशिश करते हैं.
3. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, खतना चार तरीके का हो सकता है- पूरी क्लिटोरिस को काट देना, जननांग की सिलाई, छेदना या बींधना, क्लिटोरिस का कुछ हिस्सा काटना.
और पढ़ें: तीन तलाक अध्यादेश का मुस्लिम महिलाओं ने किया स्वागत, ओवैसी बोले- बढ़ेगा अन्याय
बता दें कि दाउदी बोहरा मुस्लिम समुदाय 'खतना प्रथा' एक रिवाज के तौर पर काफी प्रचलित है लेकिन इस प्रथा को निभाने के लिए मुस्लिम बच्चियों को एक असहाय दर्द से गुजरना पड़ता है.
वहीं इस मामले पर खतना के समर्थन में खड़े संगठन की ओर से पेश हुए वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि खतना करने का इतना भी क्रूर भी नहीं है जितना इसे बताया जा रहा है.
गौरतलब है कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा था, 'यह संविधान के अनुच्छेद-21 का उल्लंघन है क्योंकि इसमें बच्ची का खतना कर उसको आघात पहुंचाया जाता है.'
केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था कि सरकार याचिकाकर्ता की दलील का समर्थन करती है कि यह भारतीय दंड संहिता (IPC) और बाल यौन अपराध सुरक्षा कानून (पोक्सो एक्ट) के तहत दंडनीय अपराध है.
दूसरी तरफ अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने अदालत को बताया कि इस परंपरा (खतना) पर 42 देशों ने रोक लगा दी है, जिनमें 27 अफ्रीकी देश हैं.
(इनपुट आईएनएस से)
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