बच्चों के साथ यौन अपराध करने वालों से माता-पिता नहीं कर सकेंगे समझौता, हाई कोर्ट ने दिया ये आदेश
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति पंकज जैन की पीठ ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए 11 मई को कहा कि माता-पिता को बच्चे की गरिमा से समझौता करने की अनुमति नहीं दी
highlights
- बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामले में हाई कोर्ट का अहम फैसला
- माता-पिता वापस नहीं ले सकते आरोपित के खिलाफ केस
- बच्चे के बालिग होने तक हुआ कोई भी समझौता अमान्य
चंडीगढ़:
बच्चों के यौन शोषण संबंधित अपराधों के मामले में अब माता-पिता की ओर से दी गई शिकायत वापस नहीं ली जा सकेगी. पंजाब और हरियाणा की हाई कोर्ट ने इस बारे में अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर पीड़ित बच्चे के माता-पिता का आरोपित के साथ समझौता हो भी गया है, तो भी ये शिकायत वापस नहीं ली जा सकेगी, क्योंकि ये बच्चे के अधिकारों के खिलाफ होगा. इस बारे में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि यौन अपराध के शिकार एक बच्चे के माता-पिता आरोपी के साथ समझौता नहीं कर सकते.
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति पंकज जैन की पीठ ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए 11 मई को कहा कि माता-पिता को बच्चे की गरिमा से समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. न्यायमूर्ति पंकज जैन की पीठ ने सिरसा के मामले में कहा, 'बच्चे, या उसके माता-पिता द्वारा ऐसा कोई कदम, जो बच्चे की गरिमा से समझौता करे, उस स्थिति तक नहीं उठाया जा सकता है जहां यह अधिनियम के मूल उद्देश्य को निष्प्रभावी करता है.'
हाई कोर्ट ने मुकदमे की प्रक्रिया में तेजी लाने का दिया निर्देश
अदालत ने कहा कि दंड प्रक्रिया की धारा 482 (एक प्राथमिकी रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय की शक्तियां) के तहत दिए गए अधिकार का प्रयोग संवैधानिक जनादेश के निर्वहन में अधिनियमित कानून के उद्देश्य के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय संधियों से उत्पन्न दायित्व को नाकाम करने के लिए नहीं किया जा सकता है.' अदालत ने संबंधित निचली अदालत को मुकदमे की सुनवाई में तेजी लाने और 6 महीने की अवधि के भीतर इसे समाप्त करने का भी निर्देश दिया.
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हाई कोर्ट ने बताया, क्यों नहीं किया जा सकता समझौता
हरियाणा के सिरसा के महिला पुलिस थाना, डबवाली में 2019 में भादंवि की धारा 452 (घर में प्रवेश) और 506 (आपराधिक धमकी) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम और पॉक्सो अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. अदालत ने कहा कि पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दर्ज एफआईआर को समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है. अदालत ने कहा, 'बच्चे (बच्चे के बालिग होने तक) द्वारा स्वयं निष्पादित कोई भी अनुबंध/समझौता वर्तमान मामले में अमान्य होगा और इस प्रकार इसे वैधता प्रदान नहीं की जा सकती है.' न्यायमूर्ति जैन ने कहा, 'माता-पिता को एक अनुबंध के माध्यम से बच्चे की गरिमा से समझौते की इजाजत नहीं दी जा सकती.' (इनपुट: एजेंसी)
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