पद्म पुरस्कारों की घोषणा, 34 की सूची जारी की, इन लोगों ने समाज में दिया बड़ा योगदान
पद्म पुरस्कारों के लिए नामांकन की आखिरी तिथि 15 सितंबर, 2023 थी. इस बार 34 पद्म श्री पुरस्कार विजेताओं की सूची जारी की है.
नई दिल्ली:
इस साल के पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है. इस सूची में अधिकतर ऐसे लोग शामिल हैं जो गुमनाम हैं. ये वे लोग जो साधारण जीवन जीकर समाज में बड़ा योगदान कर रहे हैं. सरकार में उनके इस योगदान को पहचान दी है. गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या के मौके पर पद्म पुरस्कार-2024 का ऐलान किया गया है. पद्म पुरस्कारों के लिए नामांकन की आखिरी तिथि 15 सितंबर, 2023 थी. इस बार 34 पद्म श्री पुरस्कार विजेताओं की सूची जारी की है.
पारबती बरुआ: भारत की पहली मादा हाथी महावत हैं. उन्होंने पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्र में अपने लिए जगह बनाने को लेकर रूढ़िवादिता पर विजय हासिल की.
जागेश्वर यादव: जशपुर के आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता है. इन्होंने गरीबी रहने वाले बिरहोर और पहाड़ी कोरवा लोगों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया.
चामी मुर्मू: चामी मुर्मू सरायकेला खरसावां से आदिवासी पर्यावरणविद् है. वे महिला सशक्तिकरण की अगुवाई करती हैं.
गुरविंदर सिंह: गुरविंदर सिंह सिरसा के दिव्यांग सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने बेघरों, निराश्रितों, महिलाओं, अनाथों और दिव्यांगजनों की भलाई के लिए काम किया.
सत्यनारायण बेलेरी: सत्यनारायण बेलेरी कासरगोड के चावल किसान हैं. पारंपरिक चावल की 650 से अधिक किस्मों को संरक्षित करने के लिए उनके कार्य को जाना जाता है.
संगथंकिमा: संगथंकिमा आइजोल के सामाजिक कार्यकर्ता हैं. मिजोरम का सबसे बड़ा अनाथालय संगथंकिमा टीम चला रहे हैं.
हेमचंद मांझी: हेमचंद मांझी नारायणपुर के एक पारंपरिक औषधीय चिकित्सक हैं. वे 5 दशकों से अधिक समय से ग्रामीणों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करते हैं. उन्होंने 15 वर्ष की उम्र से जरूरतमंदों की सेवा करना आरंभ किया था.
दुखु माझी: दुखु माझी पुरुलिया के सिंदरी गांव के आदिवासी पर्यावरणविद् हैं. वे प्रकृति के काफी करीब हैं.
के चेल्लाम्मल: के चेल्लाम्मल ने दक्षिण अंडमान के जैविक किसान ने सफलता से 10 एकड़ का जैविक फार्म तैयार किया.
यानुंग जमोह लेगो: यानुंग जमोह लेगो अरुणाचल प्रदेश के हर्बल चिकित्सा विशेषज्ञ हैं.
सोमन्ना: सोमन्ना मैसूरु के आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता हैं.
सरबेश्वर बसुमतारी: सुरबेश्वर बसुमतारी चिरांग के आदिवासी किसान हैं.
प्रेमा धनराज: ये सर्जन और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।
उदय विश्वनाथ देशपांडे: उदय विश्वनाथ देशपांड अंतर्राष्ट्रीय मल्लखंभ कोच हैं।
यज़्दी मानेकशा इटालिया: यज्दी मानेकशा इटालिया के सिकल सेल एनीमिया में विशेषज्ञ माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं।
शांति देवी पासवान और शिवन पासवान: दोनों गोदना चित्रकारों की जोड़ी हैं। ये सामाजिक विषमता पर पेंटिंग करते हैं। ये मधुबनी पेंटिंग तैयार करते हैं।
रतन कहार: रतन कहार की रचना ‘बोरो लोकेर बिटी लो’ काफी लोकप्रिय हुई।
अशोक कुमार विश्वास: अशोक कुमार विश्वास चित्रकार हैं। मौर्य युग की टिकुली कला को पुनर्जीवित किया। 8 हजार महिलाओं को प्रशिक्षित किया.
बालकृष्णन सदनम पुथिया वीटिल: बालकृष्णन सदनम पुथिया वीटिल बीते छह दशकों से कल्लुवाझी कथकली को लेकर वैश्विक प्रशंसा अर्जित कर रहे हैं.
उमा माहेश्वरी डी: उमा माहेश्वरी डी पहली महिला हरिकथा प्रतिपादक हैं। उन्हें विश्व स्तर पर विभिन्न रागों में प्रदर्शन किया है.
गोपीनाथ स्वैन: गोपीनाथ स्वैन ने 9 दशकों से अधिक समय से कृष्ण लीला का प्रदर्शन कर रहे सौ वर्षीय दिग्गज.
स्मृति रेखा चकमा: स्मृति रेखा चकमा ने बुनकर पर्यावरण-अनुकूल सब्जियों से रंगे सूती धागों को पारंपरिक डिजाइनों में बदल रहे हैं.
ओमप्रकाश शर्मा: ओमप्रकाश शर्मा ने 200 साल पुराने मालवा क्षेत्र के पारंपरिक नृत्य नाटक ‘माच’ का 7 दशकों से अधिक वक्त तक प्रचार किया.
नारायणन ई.पी: नारायणन ई.पी थेय्यम के पारंपरिक कला रूप को बढ़ावा देने का काम किया।
भागवत पधान: भागवत पधान सबदा नृत्य के दायरे को व्यापक मंचों तक विस्तारित किया।
सनातन रुद्र पाल: 5 दशकों से सनातन रुद्र पाल मूर्तिकार हैं।
बदरप्पन एम: 87 वर्षीय वल्ली ओयिल कुम्मी नृत्य गुरु, परंपरा से हटकर महिलाओं को भी प्रशिक्षित करते हैं.
जॉर्डन लेप्चा: जॉर्डन लेप्चा सिक्किम के बांस शिल्पकार.
माचिहान सासा: माचिहान सासा शिल्पकार हैं।
गद्दाम सम्मैया: गद्दाम सम्मैया 5 दशकों से सामाजिक मुद्दों को उठा रहा है।
जानकीलाल: जानकीलाल तीसरी पीढ़ी के कलाकार जो 6 दशकों से लुप्त होती बहरूपिया कला में महारत हैं.
दसारी कोंडप्पा: अंतिम बुर्रा वीणा ने स्वदेशी कला को समर्पित कर दिया.
बाबू राम यादव: बाबू राम यादव एक पीतल शिल्पकार हैं
नेपाल चंद्र सूत्रधार: नेपाल चंद्र सूत्रधार ने पुरुलिया शैली के विशेषज्ञों में से एक.
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