Women's Day 2019: जानें अपनी दिव्यांगता को हराते हुए 'मिस डेफ एशिया 2018' का खिताब जीतने वाली निष्ठा की कहानी
'विश्व विकलांग दिवस' के मौके पर उन्हें विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार 2018 से सम्मानित किया गया.
नई दिल्ली:
आज पूरी दुनिया में महिलाओं ने अपने सफलता का परचम लहराया है. हर बाधा को पार करते हुए वो सपने को साकार करने में जुटी हुई है. महिला दिवस (Women's Day 2019) के मौके पर आज हम ऐसी सशक्त महिला से मिलेंगे जिन्होंने अपने दृढ़ निश्चय के साथ अपनी शारीरिक विकलांगता पर जीत हसिल की है. 23 वर्षीय दिल्ली की निष्ठा डुडेजा जन्म से सुन नहीं सकती थी लेकिन फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी और खुद को साबित करने में लगी रही. नतीजम इस साल 'विश्व विकलांग दिवस' के मौके पर उन्हें विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार 2018 से सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार उन्हें शिक्षा, खेल,कला और संस्कृति के क्षेत्र में उनकी समग्र उपलब्धि और उत्कृष्टता के लिए 'रोल मॉडल' श्रेणी के तहत मिला है.
मिस डेफ एशिया अवाॅर्ड जीतने वाली बनी पहली भारतीय
निष्ठा ने हाल ही में प्राग, चेक गणराज्य में मिस और मिस्टर डेफ वर्ल्ड-यूरोप-एशिया ब्यूटी पेजेंट 2018 के 18वें संस्करण में 'मिस डेफ एशिया 2018' (Miss Deaf Asia-2018 ) खिताब जीता है. यह खिताब जीतने वाली वह पहली भारतीय हैं. वहीं इस खिताब से पहले, उन्होंने जयपुर में 'मिस डेफ इंडिया' का खिताब भी जीता था. निष्ठा एक सामान्य परिवार से आती है. उनके पिता वेदप्रकाश डुडेजा भारतीय रेलवे में कार्यरत है और मां पूनम डुडेजा एक गृहणी हैं.
कहते है हर शख्स की कामयाबी के पीछे उसकी और उसके परिवार की तमाम संघर्ष की कहानी जुड़ी होती है. तो ऐसे में हमने भी निष्ठा से कुछ सवाल किए है. जिसका जवाब उन्होंने बहुत ही बेबाकी के साथ दिया है.
हमने निष्ठा से जब पूछा कि उन्हें अबतक कि तरह कि चुनौतियों का सामना करना पड़ा है? इसके जवाब में उन्होंने कहा, 'यह मेरे लिए सम्मान और गर्व की भावना है कि मुझे रोल मॉडल श्रेणी मे इस राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है. मेरे जीवन की यात्रा काफी घटनापूर्ण रही है और मैंने अपने अनुभव से बहुत कुछ सीखा है. मैंने बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया है लेकिन हमेशा कुछ नया करने की कोशिश जारी रखी. मैंने ब्यूटी पेजेंट्स में अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण के साथ जीत हासिल की है. मेरे माता-पिता ने हमेशा जीवन में हार न मानने के लिए प्रेरित किया.
सरकार की योजनाएं दिव्यांगों के लिए कितनी मददगार साबित हुई है? इसपर निष्ठा ने बताया, 'हाल ही के दिनों मे सरकार ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए है. 2016 में पारित नए अधिनियम में पुनर्वास और सशक्तिकरण के उद्देश्य से विकलांगता की नई नई श्रेणियां शामिल है. यह अलग-अलग विकलांग व्यक्तियों को शामिल करने वाले अधिक समावेशी विकास को सुनिश्चित करेगा. हालांकि केवल सरकार ही सबकुछ करे हमे यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए. हमे एक समाज के रूप में नवीनतम तकनीकी समाधानों के माध्यम से विकलांगो की रोकथाम और शमन के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए आगे आना चाहिए.'
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वहीं निष्ठा ने अभिभावकों को आग्रह करते हुए सुझाव दिया कि वो अपने नवजात बच्चे का 'बेरा टेस्ट' ज़रूर करवाएं ताकि समय पर ही सुनने की क्षमता का पता चल सकें. हमारे देश में सर्वश्रेष्ठ तकनीक मौजूद है परंतु जागरूकता का अभाव है. हमें इसके बारे में जागरूकता बढ़ानी चाहिए ताकि हर बच्चे का समय से इलाज किया जा सके.
निष्ठा से जब हमने पूछा कि सरकार का 'विकलांग' से 'दिव्यांग' शब्द ने उनेक जीवन को कितना आसान किया है. इस पर उन्होंने कहा, 'यह कहना उचित नहीं होगा की सरकार ने केवल 'विकलांग' को 'दिव्यांग' शब्द में बदला है. दरअसल, वर्तमान सरकार ने कई दिव्य-अनुकूल उपायों को लिया है जैसे दिवयंगजन के लिए सरकारी नौकरी मे 4% और उच्च शिक्षा में 5% जो कोटा मे बढ़ोतरी है. यह एक बहुत ही साकारात्मक कदम है और दिव्यांगों के सशक्त करने की दिशा में बड़ा कदम है.'
वहीं अपनी बेटी कि उपलब्धियों पर निष्ठा के पिता का कहना है, 'ईश्वर का तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होनें हमें ताकत और संयम दिया ताकि हम उनके द्वारा दिए हुए दायित्व को पूरा कर सकें. मुझे अपनी बेटी निष्ठा पर गर्व है साथ ही यह विश्वास है कि निष्ठा अपने समर्पण और कड़ी मेहनत से आगे भी लोगों को प्रेरित करती रहेगी.'
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बचपन से रह चुकी है होशियार
निष्ठा अपने स्कूल के दिनों से बहुत ही उज्ज्वल छात्रा थी, जो अपने जीवन में कुछ नया सीखने के लिए उत्सुक रहती थी. उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय जूडो और लॉन टेनिस मैच में भारत का प्रतिनिधित्व किया और कई पदक भी जीता है. निष्ठा ने सात साल की उम्र से ही जूडो खेलना शुरू कर दिया था. साथ ही वह 12 साल की उम्र से अंतरराष्ट्रीय लॉन टेनिस खिलाड़ी रही हैं जिसमें कई एआईटीए, एशियाई टूर टेनिस और आईटीएफ टूर्नामेंट खेली हैं. फिलहाल वो अभी मीठीबाई कॉलेज, मुंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए कर रही हैं.
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