राफेल डील पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा, इस 5 POINTS में जानें
राफेल डील पर 29 पेज के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सौदे के खिलाफ दायर चारों याचिकाओं को खारिज कर दिया
नई दिल्ली:
राफेल डील पर 29 पेज के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सौदे के खिलाफ दायर चारों याचिकाओं को खारिज कर दिया. कोर्ट ने जहां एक ओर राफेल डील के फैसले की प्रकिया में किसी खामी को नहीं माना, वही ऑफसेट पार्टनर को लेकर सरकार की ओर से किसी को फायदे पहुंचाने की मंशा से इंकार किया. साथ ही कोर्ट ने कहा कि राफेल की कीमतों का तुलनात्मक समीक्षा करना कोर्ट का काम नहीं है.
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1. राफेल डील प्रकिया में खामी नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हमने कोर्ट में पेश किए रिकॉर्ड पर गौर किया. हमने सीनियर एयरफोर्स अधिकारियों से भी विभिन्न पहलुओं पर बात की. हम इस बात से संतुष्ट है कि राफेल डील की फैसले की प्रकिया पर संदेह करने की कोई ज़रूरत नहीं है.
2. सरकार को 126 एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता
कोर्ट ने कहा इसमे कोई संदेह नहीं कि एयरक्राफ्ट की ज़रूरत थी. ये भी सच है कि 126 राफेल की खरीद को लेलर डील पर लम्बी चली बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची थी. हम 126 एयरक्राफ्ट के बजाए 36 एयरक्राफ्ट की खरीद पर सरकार की फैसले पर सवाल नहीं उठा सकते. हम सरकार को 126 एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकते.
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3. रक्षा जरूरतों की अनदेखी नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इसमे कोई सन्देह नहीं कि एयरक्राफ्ट की ज़रूरत थी . कोई भी देश ऐसे हालात (रक्षा ज़रूरतों की) अनदेखी नहीं कर सकता , जबकि उसके प्रतिद्वंद्वी देश न केवल चौथी जेनरेशन , बल्कि पांचवी जनरेशन तक के एयरक्राफ्ट हासिल कर चुके है. कोर्ट के लिए ये सही नहीं होगा कि वो खरीद के हर पहलू पर एक अथॉरिटी की तरह विचार करे.
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4. कीमत पर विचार करना कोर्ट का काम नहीं
हमारे सामने रखे सबूतों से साफ है कि सरकार ने संसद में बेसिक एयरक्राफ्ट की कीमत के खुलासा के सिवाय, बाकी पूरी कीमत का खुलासा नहीं किया है. सरकार का कहना है कि ऐसा करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है और ये दो देशों के बीच समझौते का उल्लंघन होगा. हालांकि कीमत की जानकारी कैग को दी गई है और कैग की रिपोर्ट संसद की लोक लेखा समिति को सौपी गई है. रिपोर्ट का एक हिस्सा ही संसद में रखा गया है और सार्वजनिक हुआ है.
कोर्ट ने कहा कि हमने खुद एयरक्राफ्ट की कीमतों का तुलनात्मक अध्ययन गौर से किया. सरकार का कहना है कि इस डील से व्यवसायिक फायदा हुआ है.
हमे नहीं लगता है कि ये कोर्ट का काम है कि वो इस तरह के मामलो में कीमतों को लेकर कोई तुलना करें. हम इस मसले पर ज़्यादा कुछ नही कहेंगे कि रिकॉर्ड पहले से ही गोपनीय रखा गया है.
5. ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार की भूमिका नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस दलील को माना कि रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार की भूमिका नहीं, बल्कि इससे तय करने का अधिकार फ्रांसीसी कंपनी डसाल्ट का था. कोर्ट ने कहा कि ऐसे सबूत नहीं कि किसी को सरकार ने कमर्शियल फेवर किया हो, क्योंकि ऑफसेट पार्टनर चुनने का उसे अधिकार ही नहीं है. कोर्ट ने कहा इस तरह के मामलों में किसी व्यक्ति विशेष का नजरिया दुबारा जांच का आधार नहीं हो सकता.
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